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काशी का दुर्गाकुंड मंदिर: मां कूष्मांडा की झलक पाने को उमड़ा भक्तों का सैलाब, नवरात्र में दर्शन-पूजन का है विशेष महात्म्य

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी Published by: उत्पल कांत Updated Sun, 10 Oct 2021 11:09 AM IST
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सार

 शारदीय नवरात्र के चौथे दिन वाराणसी के दुर्गाकुंड स्थित मां कूष्मांडा देवी के दर्शन के लिए सड़कों पर मध्यरात्रि के बाद से ही श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा।

 

Navratri 2021 durgakund temple in varanasi  Devotees long line for Maa Kushmanda darshan there is special significance of worship in Navratri
काशी का दुर्गाकुंड मंदिर - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी विश्व की तीन लोक से न्यारी काशी में मां आद्य शक्ति अदृश्य रूप में दुर्गाकुंड मंदिर में विराजमान हैं।  शारदीय नवरात्र के चौथे दिन वाराणसी के दुर्गाकुंड स्थित मां कूष्मांडा देवी के दर्शन के लिए सड़कों पर मध्यरात्रि के बाद से ही श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा।

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तड़के तीन बजे मंगला आरती के बाद पट खुले। इसी के साथ दर्शन-पूजन के लिए भक्त बढ़ने लगे जो अनवरत जारी है।  मां की सड़कों पर जय जयकार गूंज रहे हैं। मंदिर के द्वार से लेकर त्रिदेव मंदिर के आगे तक पुरुषों की लंबी लाइन लगी है।  देवी के धाम में शहर के अलावा आसपास के इलाकों के भी लोग कतारबद्ध होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
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भीड़ उमड़ने की वजह से पुलिस ने दुर्गा मंदिर जाने वाले सभी रास्तों को बांस-बल्लियों से घेर दिया है। नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा-आराधना की जाती है। शारदीय नवरात्र की रौनक अब दिखने लगी है। देवी के दरबारों के अलावा घरों में कहीं दुर्गा शप्तसती के सस्वर पाठ हो रहे हैं तो कहीं मनौतियों की पूर्ति के लिए विशेष अनुष्ठान। कूष्मांडा देवी के दरबार में रविवार तो बड़ी संख्या में भक्तों का रेला पहुंचा है। बेला, गुलाब, अड़हुल के फूलों और हरी पत्तियों से मां के गर्भगृह को सजाया गया है। 

काशी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक

माता कूष्मांडा का यह सिद्ध मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यह मंदिर आदिकालीन है। वैसे तो हर समय दर्शनार्थियों का आना लगा रहता है लेकिन शारदीय नवरात्र के चौथे दिन यहां मां कुष्मांडा के दर्शन और पूजा के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। काशी के पावन भूमि पर कई देवी मंदिरों का भी बड़ा महात्मय है। दुर्गाकुंड मंदिर काशी के पुरातन मंदिरों मे से एक है। इस मंदिर का उल्लेख 'काशी खंड' में भी मिलता है। यह मंदिर वाराणसी कैंट स्टेशन से करीब पांच किमी की दूरी पर है। 

लाल पत्थरों से बने इस भव्य मंदिर के एक तरफ दुर्गा कुंड है। इस मंदिर में माता दुर्गा यंत्र के रूप में विराजमान है। मंदिर के निकट ही बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, और माता काली की मूर्तियां अलग से मंदिरों में स्थापित हैं। इस मंदिर के अंदर एक विशाल हवन कुंड है, जहां रोज हवन होते हैं। कुछ लोग यहां तंत्र पूजा भी करते हैं।

ये हैं मंदिर की मान्यताएं

मान्यता है कि  मंदिर में देवी का तेज इतना भीषण है कि मां के सामने खड़े होकर दर्शन करने मात्र से ही कई जन्मों के पाप जलकर भस्म हो जाते हैं। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी  में रानी भवानी ने कराया था। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित किया गया।

मान्यता है कि शुंभ-निशुंभ  का वध करने के बाद मां दुर्गा ने थककर इसी मंदिर में विश्राम किया था। पौराणिक मान्यता के मुताबिक जिन दिव्य स्थलों पर देवी मां साक्षात प्रकट हुईं वहां निर्मित मंदिरों में उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। ऐसे मंदिरों में चिह्न पूजा का ही विधान हैं।

 यहां प्रतिमा के स्थान पर देवी मां के मुखौटे और चरण पादुकाओं का पूजन होता है। साथ ही यहां यांत्रिक पूजा भी होती है। यही नहीं, काशी के दुर्गा मंदिर का स्थापत्य बीसा यंत्र पर आधारित है। बीसा यंत्र यानी बीस कोण की यांत्रिक संरचना जिसके ऊपर मंदिर की आधारशिला रखी गयी है।

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