सावनः एक लोटा जल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी, जानिए मार्कंडेय महादेव धाम की कहानी
वाराणसी शहर से करीब 29 किलोमीटर दूर गंगा-गोमती के संगम पर कैथी गांव में विराजते हैं मार्कंडेय महादेव। पुराणों में वर्णित है कि यमराज को भी यहां से पराजित होकर लौटना पड़ा था।

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सावन मास में मार्कंडेय महादेव धाम में रामनाम लिखा बेलपत्र व एक लोटा जल चढ़ाने मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। सावन का सोमवार व त्रयोदशी पर यहां जलाभिषेक करना एक अग्निष्टोम यज्ञ के समान माना जाता है। शहर से करीब 29 किलोमीटर दूर गंगा गोमती के संगम पर कैथी गांव में मार्कंडेय महादेव विराजते हैं। पुराणों के अनुसार यमराज को भी यहां से पराजित होकर लौटना पड़ा था।

मार्कंडेय महादेव का मंदिर शैव-वैष्णव एकता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध है। चौबेपुर के पास वाराणसी-गाजीपुर मार्ग के दाहिनी ओर स्थित कैथी गांव को काशीराज दिवोदास द्वारा बसाई गई दूसरी काशी भी कहते हैं। शिव पुराण की कथा के अनुसार, मृकंड ऋ षि पुत्रहीन थे। संतान के लिए उन्होंने सपत्नी गंगा गोमती केसंगम पर बालू का शिव विग्रह बनाकर भगवान शिव की आराधना शुरू की।
भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने पुत्र की कामना रखी। पुत्र योग न होने के बाद भी भगवान शिव ने उन्हें अल्पायु पुत्र दिया। उनका नाम मार्कंडेय ऋषि पड़ा। जब वे सात वर्ष के हुए तो उन्हें पता चला कि वह अल्पायु हैं। तब उन्होंने भी शिवविग्रह बना कर भगवान शिव की आराधना की।
तपस्वी मार्कंडेय की आयु पूर्ण होने पर प्राण हरण के लिए जब यमराज पहुंचे उस समय वे आराधना में लीन थे। भगवान शंकर भक्त की रक्षा के लिए पहुंचे। भगवान शिव के कारण यमराज को बैरंग लौटना पड़ा और मारकंडेय ऋ षि अमर हो गए।
तभी से ही यहां मंदिर में शिव जी व दाहिने दीवाल में मार्कंडेय महादेव की स्थापना कर लोग पूजन अर्चन करने लगे। यहां पूर्वांचल के वाराणसी, गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, गोरखपुर, कुशीनगर, आजमगढ़, जौनपुर समेत कई प्रमुख शहरों से लोग आकर संगम में डुबकी लगाकर बाबा को जलाभिषेक करते हैं।