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सावन में एक लोटा जल और रामनाम लिखा बेलपत्र चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी, जानिए मार्कंडेय महादेव धाम की कहानी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी Published by: वाराणसी ब्यूरो Updated Sat, 11 Jul 2020 09:45 AM IST
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Yamraj returned after defeating Markandeya Dham in varanasi
shiv temple - फोटो : shiv temple
वाराणसी शहर से करीब 29 किलोमीटर दूर गंगा-गोमती के संगम पर कैथी गांव में विराजते हैं मार्कंडेय महादेव। पुराणों में वर्णित है कि यमराज को भी यहां से पराजित होकर लौटना पड़ा था। मान्यता है कि सावन में एक लोटा जल और रामनाम लिखा बेलपत्र चढ़ाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
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सावन का सोमवार व त्रयोदशी पर यहां जलाभिषेक करना एक अग्निष्टोम यज्ञ के समान माना जाता है। चौबेपुर के पास वाराणसी-गाजीपुर मार्ग के दाहिनी ओर स्थित कैथी गांव को काशीराज दिवोदास की बसाई दूसरी काशी कहते हैं। मार्कंडेय महादेव का मंदिर शैव-वैष्णव एकता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हैं।
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विभिन्न प्रकार की परेशानियों से ग्रसित लोग अपने दु:खों को दूर करने के लिए यहां आते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दूसरे दिन श्रीराम नाम लिखा बेल पत्र अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। पुत्र प्राप्ति स्थल गंगा-गोमती के तट पर बसा कैथी गांव मार्कंडेय जी के नाम से विख्यात है।



यह गर्ग, पराशर, शृंगी, उद्याल आदि ऋषियों की तपोस्थली रहा है। इसी स्थान पर राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए शृंगी ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था जिसके परिणाम स्वरूप राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए थे। 

यही वह तपोस्थली है, जहां राजा रघु द्वारा ग्यारह बार हरिवंशपुराण का परायण करने पर उन्हें उत्तराधिकारी प्राप्त हुआ था। पुत्र कामना के लिए यह स्थल काफी दुर्लभ है। हरिवंशपुराण का परायण तथा संतान गोपाल मंत्र का जाप कार्य सिद्धि के लिए विशेष मायने रखता है।

भगवान शिव ने की यमराज से रक्षा

शिव पुराण की कथा के अनुसार मृकंड ऋषि तथा उनकी पत्नी मरंधती पुत्रहीन थे। संतान के लिए उन्होंने गंगा गोमती के संगम पर बालू का शिव विग्रह बनाकर भगवान शिव की आराधना शुरू की। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने पुत्र रत्न की कामना रखी। पुत्र योग न होने के बाद भी भगवान शिव ने उन्हें पुत्र दिया। उनका नाम मार्कंडेय ऋषि पड़ा।

जब वे सात वर्ष के हुए तो उन्हें पता चला कि वह अल्पायु हैं। तब उन्होंने भी शिवविग्रह बना कर भगवान शिव की आराधना शुरू की। तपस्वी मार्कंडेय की आयु पूर्ण होने पर प्राण हरण के लिए जब यमराज पहुंचे तो उस समय वे आराधना में लीन थे। यमराज का त्रास देखकर भगवान शंकर अपने भक्त की रक्षा के लिए पहुंचे। उन्होंने यमराज से रक्षा की।

भगवान शिव के कारण यमराज को बैरंग लौटना पड़ा और मारकंडेय ऋषि अमर हो गए। तभी से ही यहां मंदिर में शिव जी व दाहिने दीवाल में मार्कंडेय महादेव की स्थापना कर लोग पूजन अर्चन करने लगे। यहां पूर्वांचल के वाराणसी, गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, गोरखपुर, कुशीनगर, आजमगढ़, जौनपुर समेत कई प्रमुख शहरों से लोग आकर संगम में डुबकी लगाकर बाबा को जलाभिषेक करते हैं। पुजारी श्यामू गिरि, गौरव गिरि, पप्पू गिरि बताते हैं कि सावन मास में रामनाम लिखा बेलपत्र व एक लोटा जल चढ़ाने मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।
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