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पितृपक्ष में महिलाएं भी कर सकती हैं पूर्वजों का श्राद्ध, गरुण पुराण और मार्कंडेय पुराण में है वर्णन

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी Published by: हरि User Updated Wed, 29 Sep 2021 09:31 AM IST
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सार

धर्म सिंधु ग्रंथ के साथ ही मनुस्मृति, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में भी बताया गया है कि महिलाओं को तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार है। इनके अलावा वाल्मीकि रामायण में भी बताया गया है कि सीताजी ने राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था।

Women can also perform Shradh of ancestors in Pitru Paksha,Garun Puran and Markandeya Puran
पितृपक्ष
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पितृपक्ष के दौरान महिलाएं भी अपने पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण कर सकती हैं। श्राद्ध करने की परंपरा को जीवित रखने और पितरों को स्मरण रखने के लिए पुराणों में इसका विधान किया गया है।

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काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री पं. दीपक मालवीय ने बताया कि परिवार में पुरुषों के न होने पर महिलाएं भी श्राद्धकर्म कर सकती हैं। इस बारे में धर्म सिंधु ग्रंथ के साथ ही मनुस्मृति, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में भी बताया गया है कि महिलाओं को तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार है। इनके अलावा वाल्मीकि रामायण में भी बताया गया है कि सीताजी ने राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था।
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ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र ने बताया कि मार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि अगर किसी का पुत्र न हो तो पत्नी ही बिना मंत्रों के श्राद्ध कर्म कर सकती है। पत्नी न हो तो कुल के किसी भी व्यक्ति द्वारा श्राद्ध किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य ग्रंथों में बताया गया है कि परिवार और कुल में कोई पुरुष न हो तो सास का पिंडदान बहू भी कर सकती है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अगर घर में कोई बुजुर्ग महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होगा।

विवाहित महिलाओं को है श्राद्ध करने का अधिकार

महिलाएं श्राद्ध के लिए सफेद या पीले कपड़े पहन सकती हैं। केवल विवाहित महिलाओं को ही श्राद्ध करने का अधिकार है। श्राद्ध करते वक्त महिलाओं को कुश और जल के साथ तर्पण नहीं करना चाहिए। साथ ही काले तिल से भी तर्पण न करें। ऐसा करने का महिलाओं को अधिकार नहीं है।

बहू या पत्नी कर सकती हैं श्राद्ध
पुत्र या पति के नहीं होने पर कौन श्राद्ध कर सकता है, इस बारे में गरुड़ पुराण के 11वें अध्याय में बताया गया है कि ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री भी शामिल है। अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा, भांजा, नाती, पोता आदि कोई भी श्राद्ध कर सकता है। इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है। इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्ध, तर्पण कर सकती है।

सीताजी ने दिया राजा दशरथ को पिंडदान

काशी विद्वत परिषद के महांत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि वनवास के दौरान जब श्रीराम लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान गया पहुंचे तो श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने गए। उसी दौरान माता सीता को राजा दशरथ के दर्शन हुए, जो उनसे पिंडदान की कामना कर रहे थे। इसके बाद माता सीता ने फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फल्गु नदी के किनारे राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया। इससे राजा दशरथ की आत्मा प्रसन्न हुई और सीताजी को आशीर्वाद दिया।
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