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2011 से अधूरी पड़ी है सड़कें, आए दिन हो रहे हादसे, थापखेड़ा गांव के ग्रामीणों ने बताई समस्याएं
नोएडा ब्यूरो
Updated Wed, 14 May 2025 09:06 PM IST
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थापखेड़ा गांव को ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने कागजों पर भले ही दो दशक पहले आदर्श गांव घोषित कर दिया हो, लेकिन यहां के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह रहे हैं। लोगों का आरोप है कि साल 2011 में अधूरी छोड़ी गई सड़कें आज तक पूरी नहीं बन पाई हैं। लोगोंं का आरोप है कि गांव के मुख्य मार्ग के अलावा गलियों तक की स्थिति बदहाल हो चुकी है। बरसात के समय में निकल पाना मुश्किल होता है। आए दिन सड़क हादसे हुआ करते हैं। कई बार प्राधिकरण के अधिकारियों से शिकायत किए जाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ग्रेटर नोएडा के थापखेड़ा गांव में सोमवार को आयोजित हुए अमर उजाला संवाद में ग्रामीणों ने समस्याएं बताईं। लोगों का आरोप है कि पूरा गांव आज भी बोरवेल के पानी के सहारे जीवनयापन कर रहा है। पानी की पाइप सप्लाई लाइन बिछे दशकों बीते जा रहे हैं, लेकिन आज तक एक बूंद पानी नहीं आया है। इसके अलावा जगह-जगह पर सीवर टूटे पड़े हुए हैं। ओवर फ्लो होकर बहा करते हैं। सड़कों पर गंदा पानी भरा रहता है। लोगों का आरोप है कि बिजली के पोलों पर लगी स्ट्रीट लाइटें शोपीस बन कर रह गई हैं। नियमित सफाई नहीं होने के कारण चारों ओर गंदगी फैली रहती है। जिस कारण विभिन्न तरह की बीमारियां गांव में फैली रहती हैं। नालियों की सफाई नहीं होने के कारण सड़कों पर ओवरफ्लो होकर बहती रहती हैं। गांव के बाहर बने तालाब की सालों से सफाई नहीं हुई है। बारातघर भी देखरेख के अभाव में जर्जर हो रहा है। जिसके चलते प्रयोग नहीं किया जा सकता है। सामूहिक काम-काज करने में लोगों को काफी परेशानियां होती हैं। इंटर कॉलेज स्कूल नहीं होने के कारण बच्चों को गांव से काफी दूर पढ़ाई करने के लिए जाना पड़ता है। जिससे बच्चों को काफी परेशानियां होती हैं। समय की बर्बादी होने के साथ शारीरिक परिश्रम अधिक होने की वजह से बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है। इसके अलावा गांव में खेल का मैदान नहीं होने के कारण युवाओं को सरकारी भर्तियों और खेलों के अभ्यास करने के लिए 15 से 20 किमी दूर जाना पड़ता है। जिससे अधिक रुपये के साथ ही समय की बर्बादी होती है। कई बार प्राधिकरण के अधिकारियों से मांग की गई है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होने के कारण समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है।ग्रामीणों का आरोप है कि प्राधिकरण ने भूमि अधिग्रहण करते समय 10 प्रतिशत प्लॉट देने का वादा किया था, लेकिन अभी तक छह फीसदी ही मिल पाए हैं। बाकी के चार फीसदी प्लॉट अभी तक नहीं मिल पाए हैं। अधिकारियों के कार्यालय के चक्कर लगाकर थक चुके हैं, अब तो उम्मीद ही खत्म हो रही है। दो-दो पीढ़ियां बीती जा रही हैं अधिकारी ध्यान ही नहीं दे रहे हैं।
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