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नौ साल से सीढ़ी का इंतजार कर रही सरकारी स्कूल की बिल्डिंग, बच्चे आज तक नहीं चढ़ पाए दूसरी मंजिल पर
शिक्षा विभाग की लापरवाही का ऐसा मामला सामने आया है, जो सुनकर हर कोई हैरान रह जाए। पुन्हाना थाना के गोकलपुर गांव के सरकारी स्कूल में लगभग नौ साल पहले पांच कमरों की दो मंजिला इमारत तो बना दी गई, लेकिन उसमें चढ़ने के लिए सीढ़ी लगाना विभाग भूल गया। नतीजा यह है कि पिछले नौ वर्षों से छात्र और शिक्षक दोनों उस इमारत की दूसरी मंजिल तक पहुंच ही नहीं पाए हैं। धीरे-धीरे यह इमारत अब जर्जर हो चुकी है और कभी भी हादसे का कारण बन सकती है।
गांव गोकलपुर का यह स्कूल अब लोगों के बीच चर्चा का विषय बन चुका है। ग्रामीण इसे मजाक में ‘दुनिया की पहली बिना सीढ़ी वाली इमारत’ कहने लगे हैं। करीब नौ साल पहले शिक्षा विभाग ने बच्चों के पढ़ाई के लिए पांच कमरों का निर्माण कराया था। उद्देश्य था कि बढ़ती संख्या के बीच बच्चों को अतिरिक्त कक्ष मिल सकें। लेकिन निर्माण के बाद सीढ़ी लगाना शायद विभाग की नजरों से छूट गया। इमारत में चढ़ने का रास्ता न होने के कारण उसका उपयोग आज तक नहीं हो सका। बिना देखरेख के इमारत धीरे-धीरे खराब होने लगी है। दीवारों का प्लास्टर उखड़ रहा है और छत में दरारें आ गई हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि जल्द ही इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो इमारत कभी भी हादसे का कारण बन सकती है। गांव के ही मुरसलीम खान, साजिद खान ने बताया की जब बिल्डिंग बनी थी, तो हमें लगा था कि बच्चों के लिए यह नई सुविधा होगी। लेकिन नौ साल बीत गए, न सीढ़ी बनी और न कमरों का इस्तेमाल हुआ। अब तो हालात इतने खराब हो गए हैं कि कभी भी दीवार गिर सकती है। स्कूल की इस हालत से बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार बड़े-बड़े दावे करती है कि हर बच्चे को अच्छी शिक्षा देंगे, लेकिन यहां नौ साल से बच्चे सीढ़ी का इंतजार कर रहे हैं। अगर सीढ़ी नहीं लगानी थी, तो दो मंजिला बिल्डिंग बनाने का क्या मतलब था।
हाल ही में राजस्थान में एक स्कूल भवन गिरने से हुए बड़े हादसे का जिक्र करते हुए ग्रामीणों ने कहा कि अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो यहां भी ऐसी घटना हो सकती है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की जान हमेशा खतरे में रहती है। केवल बिना सीढ़ी वाली इमारत ही नहीं, बल्कि स्कूल में बने कुछ अन्य कमरे भी अधूरे पड़े हैं। कई कमरों की छत तक नहीं डाली गई। वहीं कुछ पुराने कमरे इतने जर्जर हो गए हैं कि बच्चों के लिए उनमें बैठना भी जोखिम भरा हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह हालात विभाग के उन दावों की पोल खोलते हैं, जिनमें बच्चों को बेहतर पढ़ाई और सुरक्षित वातावरण देने की बात की जाती है।
स्कूल के अध्यापक सतबीर कुमार पीआरटी का कहना है कि उन्होंने कई बार विभाग को लिखित में इसकी जानकारी दी। उन्होंने अधिकारियों को बताया कि बिल्डिंग में सीढ़ियां नहीं हैं और कई कमरे बिना छत के हैं। लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। बच्चों ने आज तक उस बिल्डिंग की दूसरी मंजिल देखी तक नहीं। अगर इस तरह लापरवाही रही तो कोई बड़ा हादसा हो सकता है।
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