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Kinnaur: कल्पा का ऐतिहासिक शोकच मेला हुआ संपन्न, लोगों ने पारंपरिक परिधानों में डाली नाटी
जनजातीय जिला किन्नौर के कल्पा में शोकच मेला सोमवार को संपन्न हो गया। समापन पर लोगों ने पारंपरिक परिधान पहनकर नाटी डाली। यह मेला तीन साल के अंतराल पर आयोजित होता है। शोकच मेला ब्रह्मा, विष्णु और माता भगवती के उस पौराणिक वचन का प्रतीक है, जो सदियों पहले इस पावन भूमि पर दिया गया था। प्रचलित कथाओं के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा और विष्णु मथुरा से किन्नौर के धारे नामक स्थान पर गुप्त रूप में विराजमान हुए। कुछ समय के बाद युवारंगी गांव से संबंध रखने वाले भेड़ पालक को भगवान ब्रह्मा, विष्णु की प्रतिमा दिखाई दी और भेड़ पालक ने उसे उठाकर अपने घर ले गया। इसके बाद कई दिन तक मूर्तियों के मिलने का सिलसिला चलता रहा, तो उस भेड़ पालक के परिवार ने उन मूर्तियों को कल्पा देवी चंडिका के पास ले जाने का निर्णय लिया। रास्ते में तितली खोना नामक स्थान पड़ता है, वहां पर माता भगवती ने उनकी शक्ति को परखने के लिए एक वृद्ध महिला का रूप धारण किया और तितली खोना नामक स्थान पर उनका रास्ता रोका। जब देवों ने उन्हें नाने कहकर संबोधित किया, तो माता अपने वास्तविक रूप में आईं। इसी मिलन के दौरान एक वचन हुआ कि पोस्ट (स्थान) में ब्रह्मा, विष्णु हमेशा आगे विराजेंगे, परंतु क्षेत्र का समस्त कार्य और संचालन माता भगवती के मार्गदर्शन में होगा। इसी वचन के बाद इस क्षेत्र से राक्षसी शक्तियों का नाश हुआ और देव संस्कृति की स्थापना हुई। मेले की सबसे खास बात यह है कि ब्रह्मा, विष्णु की पुरानी मूर्तियों को लाने और उनकी सेवा पूजा का अधिकार ठुरक्यान परिवार के पास है। मान्यता है कि उनके पूर्वजों ने ही ब्रह्मा, विष्णु को यहां स्थापित किया था। मेले के दौरान भगवान स्वयं साक्षात रूप में ठुरच्या परिवार के घर पधारते हैं, जहां उन्हें पूरे सम्मान के साथ भीतर ले जाया जाता है। धूप बत्ती और खजाना भंडार की देखरेख का जिम्मा भी इसी वंश के पास है।
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