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भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर बन गई बात, हट जाएगा 50% टैरिफ?
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Thu, 23 Oct 2025 12:44 PM IST
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भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से लंबित पड़ा व्यापार समझौता अब अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। सूत्रों के अनुसार, इस समझौते पर जल्द ही मुहर लग सकती है, जिससे भारतीय निर्यातकों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। समझौते के तहत कई भारतीय उत्पादों पर वर्तमान में लागू 50 फीसदी तक के टैरिफ को घटाकर लगभग 15 से 16 फीसदी तक करने की योजना है।
सूत्रों के मुताबिक, इस समझौते में ऊर्जा क्षेत्र एक अहम केंद्र बिंदु है। अमेरिका ने रूस से तेल खरीद को लेकर भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी का दंडात्मक शुल्क लगाया था। अब भारत इस बोझ से राहत पाने के लिए धीरे-धीरे रूसी कच्चे तेल के आयात में कटौती करने पर सहमत हो सकता है।
फिलहाल भारत अपने कुल कच्चे तेल आयात का लगभग 34 फीसदी हिस्सा रूस से खरीदता है। जबकि अमेरिका से भारत लगभग 10 फीसदी तेल और गैस आयात करता है। सूत्र बताते हैं कि भारत सरकार अब अपनी तेल कंपनियों को अमेरिका और अन्य देशों से आयात बढ़ाने की सलाह देने की तैयारी में है। इस दिशा में रूस को भी संकेत भेजे जा चुके हैं।
समझौते का एक अहम हिस्सा कृषि क्षेत्र से जुड़ा है। भारत अमेरिकी गैर-आनुवंशिक (गैर-जीएम) मक्का और सोयामील के लिए अपने बाजार को खोलने की तैयारी कर रहा है। चीन की ओर से अमेरिकी मक्का आयात में कमी के बाद अमेरिका नए खरीदारों की तलाश में है, और भारत इस खाली जगह को भर सकता है।
सूत्र बताते हैं कि भारत अमेरिका से गैर-जीएम मक्का आयात का कोटा बढ़ाने पर विचार कर रहा है, जबकि इस पर 15 फीसदी का शुल्क बरकरार रहेगा। इसी तरह गैर-जीएम सोयामील के आयात को मंजूरी देने पर भी बात आगे बढ़ रही है। हालांकि, अमेरिकी डेयरी उत्पादों पर टैरिफ में कटौती को लेकर दोनों देशों के बीच अभी सहमति नहीं बन पाई है। भारत फिलहाल उच्चस्तरीय चीज और अन्य डेयरी उत्पादों को संवेदनशील श्रेणी में रखे हुए है।
सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि इस बहु-प्रतीक्षित व्यापार समझौते की औपचारिक घोषणा 26 से 28 अक्तूबर के बीच क्वालालंपुर में होने वाले आसियान शिखर सम्मेलन में की जा सकती है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्मेलन में शामिल होने की संभावना कम है, लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत की ओर से शिरकत कर सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते का असर न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी बड़ा होगा। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत ने अब तक संतुलन बनाए रखा है, लेकिन इस डील के बाद ऊर्जा नीति में एक बड़ा झुकाव अमेरिका की ओर देखने को मिल सकता है। यह बदलाव औपचारिक रूप से घोषित नहीं किया जाएगा, बल्कि सरकारी तेल कंपनियों के आयात रुझानों के जरिए धीरे-धीरे लागू होगा।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत ने पिछले वित्त वर्ष में 137 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात किया था। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार 71.41 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 11.8 फीसदी अधिक है। इस अवधि में अमेरिका को भारत का निर्यात 13.4 फीसदी बढ़कर 45.82 अरब डॉलर हो गया है, जबकि अमेरिकी उत्पादों का भारत में आयात भी तेजी से बढ़ा है।
अगर यह समझौता तय समय पर साइन हो जाता है, तो यह न केवल दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जाएगा, बल्कि भारत के निर्यातकों के लिए भी राहत भरी खबर होगी। वहीं ऊर्जा क्षेत्र में इस डील का असर भारत की दीर्घकालिक रणनीति पर भी दिखेगा एक ऐसा संतुलन जो मॉस्को और वाशिंगटन, दोनों की नजरों में भारत की भूमिका को और अहम बना देगा।
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