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Iran Israel Conflict: Is Pakistan betraying Iran? Why is it not supporting even a Muslim country?
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Iran Israel Conflict: पाकिस्तान क्या ईरान को धोखा दे रहा है? मुस्लिम देश का भी क्यों साथ नहीं दे रहा?
वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: अभिलाषा पाठक Updated Mon, 23 Jun 2025 07:53 PM IST
ईरान पर हुए अमेरिकी हमलों का असर उसके पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी दिख रहा है. जिस अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर नोबेल शांति पुरस्कार देने के लिए नॉमिनेट किया था, उसने ही बिना देरी किए ईरान में तीन परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हवाई हमला (US Attacks Iran) कर दिया है. इसके बाद क्षेत्रीय स्थिति पर चर्चा के लिए पाकिस्तान ने सोमवार, 23 जून को राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (NSC) की एक आपात बैठक बुलाई है.पाकिस्तान में राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की किसी बैठक की अध्यक्षता प्रधान मंत्री करते हैं और इसमें नागरिक और सैन्य नेतृत्व, दोनों के शीर्ष अधिकारी शामिल होते हैं. यह पाकिस्तान में सुरक्षा विचार-विमर्श के लिए सबसे बड़ा मंच है.
ईरान-इस्राइल युद्ध के हालिया घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान इस्लामी ईरान के खिलाफ यहूदी राष्ट्र इस्राइल का अप्रत्यक्ष रूप से साथ देगा। भारत के विभाजन पश्चात पाकिस्तान के जन्म लेने के बाद दावा किया गया था कि वह शरीयत प्रदत्त गणतंत्र के रूप में मुसलमानों की सांस्कृतिक, मजहबी और संवेदनशीलता का प्रतिनिधित्व करेगा। क्या ऐसा है? भारतीय उपमहाद्वीप में 55 करोड़ से अधिक मुसलमान बसते हैं। इस पृष्ठभूमि में विश्व के इस भूखंड में कितने मुसलमान इस्राइल का साथ देना और कितने इस्राइल-अमेरिका के हाथों ईरान को बर्बाद होते देखना पसंद करेंगे? आखिर पाकिस्तान किसका प्रतिनिधित्व कर रहा है— इस्लाम या फिर औपनिवेशिक शक्तियों का?
जब इस्राइल ने ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई को मौत के घाट उतारने की धमकी दी, तब अमेरिका ने इसका मौन समर्थन करते हुए ईरान पर ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण’ का दबाव बढ़ा दिया। इसी कालखंड में 18 जून को पाकिस्तान के ‘वास्तविक सत्ता-नियंता’ सेना प्रमुख आसिम मुनीर वाशिंगटन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ भोजन की मेज पर ईरान के खिलाफ आगे की कार्ययोजना तैयार कर रहे थे। ऐसा लगता है कि ईरान के खिलाफ अमेरिका पाकिस्तान से सटी ईरान की लगभग एक हजार किलोमीटर लंबी सीमा का उपयोग किसी लॉन्चपैड के रूप में कर सकता है। वस्तुतः पाकिस्तान का यह दोहरा चरित्र उसकी बुनियाद में ही अंतर्निहित है। यह न तो किसी ऐतिहासिक अपरिहार्यता का प्रतिफल है, न ही किसी सांस्कृतिक निरंतरता और भूगोलजन्य आवश्यकता का परिणाम। यह एक विशुद्ध कृत्रिम राष्ट्र है, जिसका निर्माण ब्रितानियों ने मुस्लिम समाज में एक बड़े वर्ग, जोकि ‘काफिर-कुफ्र’ अवधारणा से उद्वेलित था— उनके और वामपंथियों के सहयोग से किया था। परंतु यह भी अकाट्य सच है कि पाकिस्तान का निर्माण ब्रिटिश साम्राज्य की दूरगामी भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी था।
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