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उत्तराखंड के दर्द की कहानी आपको रुला देगी
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 19 Sep 2025 12:34 PM IST
उत्तराखंड के पहाड़ इन दिनों प्रकृति के सबसे भयावह रूप के गवाह बन रहे हैं। देर रात और तड़के आने वाली आपदाएं मानो पूरे प्रदेश को झकझोर रही हैं। बादल फटने और अतिवृष्टि की घटनाओं ने अब तक सौ से अधिक लोगों की जान ले ली है। रात के अंधेरे में जब लोग चैन की नींद में सो रहे होते हैं, उसी समय आपदा मौत बनकर घरों और गांवों को निगल रही है। सबसे दर्दनाक यह है कि अचानक आई इन आपदाओं में लोगों को संभलने का मौका तक नहीं मिल पाता।
छह अगस्त की सुबह पौड़ी जिले में पांच बजे का वक्त था। लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की शुरुआत करने ही वाले थे कि अचानक बादल फटा और देखते ही देखते नाले उफान पर आ गए। घर, खेत और दुकानें पलभर में बह गईं। कई परिवारों के अपने हमेशा के लिए बिछुड़ गए। गांव की गलियों में सिर्फ चीखें और मातम रह गया।
24 अगस्त की रात एक बजे थराली में बादल फटने की घटना हुई। रात का सन्नाटा एक पल में तबाही के शोर में बदल गया। लोग नींद से हड़बड़ाकर उठे लेकिन भागने का मौका तक नहीं मिला। देखते ही देखते घर ढह गए, खेत बर्बाद हो गए और कई लोग मलबे में दबकर जान गंवा बैठे। जिनके घर बचे भी, उनके सामने रोटी-पानी की समस्या खड़ी हो गई।
15 सितंबर की रात करीब डेढ़ बजे से शुरू हुई बारिश सुबह तक कहर बनकर बरसती रही। राजधानी देहरादून में इस तबाही ने अब तक 26 लोगों की जान ले ली है। 13 लोग अब भी लापता हैं। जिन परिवारों ने अपने प्रियजनों को खो दिया है, उनकी आंखों में सिर्फ आंसू और दिल में गहरा दर्द है। बच्चे अपने माता-पिता को खोज रहे हैं और बूढ़े मां-बाप अपने जवान बेटों की तस्वीरों से लिपटकर रो रहे हैं।
देहरादून की त्रासदी के सिर्फ तीन दिन बाद, 18 सितंबर को चमोली जिले के नंदानगर तहसील क्षेत्र में रात दो बजे बादल फटा। पहाड़ों से गड़गड़ाहट की आवाज़ आई और अचानक मलबा गांवों पर टूट पड़ा। लोग नींद से हड़बड़ाकर बाहर निकले, लेकिन कुछ ही पल में उनका सबकुछ छिन गया। चमोली के कई गांव आज मलबे और तबाही के ढेर में तब्दील हो चुके हैं।
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि देर रात और तड़के का समय अतिवृष्टि के लिए सबसे अनुकूल होता है। विशेषज्ञ विक्रम सिंह बताते हैं – “रात के समय कूलिंग अधिक होती है। अगर उस समय लो प्रेशर सिस्टम बनता है तो भारी बारिश की संभावना ज्यादा होती है।”
वहीं, वैज्ञानिक सीएस तोमर का कहना है – “रात 11 बजे से सुबह पांच बजे तक का वक्त सबसे खतरनाक है। इसी समय बादल फटने या अतिवृष्टि की घटनाएं ज्यादा होती हैं।”
हर आपदा के बाद प्रशासन राहत और बचाव कार्य में जुटता है, लेकिन तब तक कई परिवार उजड़ चुके होते हैं। सवाल यह है कि आखिर क्यों हर साल यही त्रासदी दोहराई जाती है? क्यों पहाड़ों के लोग बार-बार अपनी नींद और अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं?
देहरादून की घटना में अपनी बेटी खो चुकी एक मां रोते हुए कहती है – “मेरी बच्ची को तो पानी बहा ले गया… उसकी किताबें और खिलौने अब मलबे में दबे पड़े हैं। मैं उसे ढूंढ भी नहीं पा रही हूं।”
चमोली में अपने घर के खंडहर पर खड़े एक बुजुर्ग कहते हैं – “सारी ज़िंदगी की कमाई मिट्टी में मिल गई। अब तो खुद जीने का मन भी नहीं करता।”
उत्तराखंड की इन घटनाओं ने साबित कर दिया है कि प्रकृति के सामने इंसान कितना असहाय है। रात का सन्नाटा इन दिनों लोगों के लिए डर का दूसरा नाम बन गया है। हर घर में अब यही दुआ की जाती है कि अगली रात सुरक्षित बीते। लेकिन पहाड़ का हर निवासी यह भी जानता है कि जब बादल फटते हैं तो सबकुछ पलभर में तबाह हो जाता है।
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