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चाबहार पोर्ट पर अमेरिकी छूट खत्म, भारत को बड़ा नुकसान
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Sat, 20 Sep 2025 10:04 AM IST
नई दिल्ली के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है। अमेरिका ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को प्रतिबंधों से मिली छूट को 29 सितंबर से खत्म करने का ऐलान कर दिया है। इस कदम से भारत की वर्षों की मेहनत और अरबों रुपये का निवेश प्रभावित हो सकता है। भारत ने न केवल इस बंदरगाह के विकास में 85 मिलियन डॉलर (करीब 749 करोड़ रुपये) झोंक दिए हैं, बल्कि 120 मिलियन डॉलर (लगभग 1057 करोड़ रुपये) की योजनाएं भी पाइपलाइन में हैं। चाबहार को अब तक भारत की सबसे महत्वाकांक्षी और रणनीतिक परियोजनाओं में से एक माना जाता रहा है, जो पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान, यूरोप और पश्चिम एशिया तक सीधी पहुंच का रास्ता खोलता है।
ट्रंप प्रशासन के दौर में जब ईरान पर कठोर प्रतिबंध लगाए गए थे, तो चाबहार को मानवीय और आर्थिक सहायता के लिहाज से छूट मिली थी। इसकी वजह से ही भारत ने इस पोर्ट के विकास में तेजी लाई। मई 2024 में भारत ने 10 साल तक इसके संचालन का समझौता भी किया था। लेकिन अब अमेरिकी फैसला न केवल इस समझौते को कमजोर करता है, बल्कि भारत की क्षेत्रीय संपर्क नीति पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। भारतीय कंपनियों के सामने जुर्माने और प्रतिबंध का खतरा मंडराने लगा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि छूट खत्म होते ही चाबहार से जुड़ी गतिविधियां – निवेश, उपकरणों की सप्लाई, रेलवे परियोजना और वित्तीय लेन-देन – सभी अमेरिकी प्रतिबंधों की जद में आ जाएंगी। बंदरगाह विकास के लिए विदेशी उपकरण लाना महंगा और जटिल हो जाएगा। शिपिंग और फाइनेंस की लागत में भारी इजाफा होगा। इसका असर भारतीय कंपनियों के ठेकों और कारोबार पर सीधे तौर पर देखने को मिलेगा।
चाबहार बंदरगाह की अहमियत सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है। ओमान की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य के करीब स्थित होने के कारण इसका सैन्य और सामरिक महत्व भी है। भारत ने 2018 में सरकारी कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड के माध्यम से यहां शाहिद बेहेस्ती टर्मिनल का संचालन अपने हाथों में लिया था। तभी से यह पोर्ट पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया से जुड़ने की भारत की रणनीति का मुख्य हिस्सा बना हुआ है। हाल के वर्षों में यहां से 80 लाख टन से अधिक माल की आवाजाही हुई है और 2026 तक इसे ईरान के रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की योजना भी है।
कूटनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि भारत ने पहले भी ट्रंप प्रशासन की नीतियों के चलते ईरान से तेल आयात बंद कर दिया था, जिससे चीन को अप्रत्याशित लाभ मिला। चीन ईरान का लगभग एकमात्र बड़ा ग्राहक बन गया और उसने सस्ते दामों पर कच्चे तेल की आपूर्ति सुरक्षित कर ली। अब चाबहार पर अमेरिकी छूट खत्म होने से भारत की कीमत पर चीन को एक बार फिर फायदा हो सकता है। चाबहार को हमेशा पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का रणनीतिक जवाब माना गया है, जो चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा है। ऐसे में भारत की योजनाएं कमजोर होने से ग्वादर की अहमियत और चीन की पकड़ और मजबूत हो जाएगी।
यह फैसला उस समय आया है जब भारत और अमेरिका के बीच पहले से ही टैरिफ विवाद और व्यापारिक मतभेदों के कारण रिश्तों में खटास है। चाबहार के मामले में अमेरिकी दबाव भारत को दोहरी मुश्किल में डाल रहा है। एक तरफ भारत को अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं की रक्षा करनी है, वहीं दूसरी तरफ उसे अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को भी संभालना है। लेकिन मौजूदा हालात बताते हैं कि चाबहार की छूट खत्म होना भारत के लिए न केवल आर्थिक नुकसान का कारण बनेगा, बल्कि उसकी पूरी कनेक्टिविटी डिप्लोमेसी को भी कमजोर कर देगा।
चाबहार पोर्ट भारत के लिए सिर्फ एक व्यापारिक गलियारा नहीं, बल्कि चीन के बढ़ते प्रभाव का जवाब और क्षेत्रीय संतुलन का साधन रहा है। अमेरिकी फैसले ने इस परियोजना को अनिश्चितता के घेरे में डाल दिया है। अगर भारत ने समय रहते विकल्प नहीं खोजे तो आने वाले वर्षों में यह सिर्फ आर्थिक घाटे की वजह नहीं बनेगा, बल्कि क्षेत्रीय कूटनीतिक समीकरणों में भी भारत की स्थिति को कमजोर कर सकता है।
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