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What was discussed with Dr. Pratik Joshi's father before going to London?
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लंदन जाने से पहले डॉ. प्रतीक जोशी के पिता से क्या बात हुई थी?
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Sat, 14 Jun 2025 09:22 AM IST
गुजरात के अहमदाबाद में गुरुवार को हुए भीषण विमान हादसे में राजस्थान के बांसवाड़ा जिले का एक पूरा डॉक्टर परिवार काल के गाल में समा गया। एयर इंडिया की फ्लाइट एआई-171 जो लंदन के लिए रवाना हुई थी, टेक ऑफ के कुछ ही मिनट बाद मेघाणी नगर इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस विमान में सवार डॉ. प्रतीक जोशी, उनकी पत्नी डॉ. कौमी और उनके तीन मासूम बच्चे मिराया, नकुल और प्रद्युत — सभी की मौत हो गई।
यह कोई साधारण यात्रा नहीं थी। यह एक सपना था, जो वर्षों की मेहनत, संघर्ष और प्रतीक्षा के बाद साकार हो रहा था। लंदन में स्थाई जीवन शुरू करने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी। डॉ. प्रतीक जोशी पेसिफिक मेडिकल कॉलेज, उदयपुर में कार्यरत थे और उन्होंने हाल ही में इस्तीफा देकर लंदन के एक प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान में जॉइन करने का निर्णय लिया था। दो महीने से वे बांसवाड़ा में अपने घर पर थे, वीजा की प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार कर रहे थे।
परिजनों ने बताया कि बच्चों का वीजा मिलने में देर हो रही थी, जिस कारण फ्लाइट टालनी पड़ी थी। जैसे ही दस्तावेज पूरे हुए, प्रतीक और कौमी अपने तीनों बच्चों के साथ लंदन के लिए रवाना हुए। घर से निकले तो चेहरे पर नई जिंदगी शुरू करने की चमक थी। परिवार, रिश्तेदार, मोहल्ले के लोग सभी उन्हें विदा कर रहे थे, किसी को क्या पता था कि ये विदाई हमेशा के लिए होगी।
बांसवाड़ा की रातीतलाई कॉलोनी का वह घर आज सन्नाटे में डूबा है, जहां कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं। डॉ. जेपी जोशी और उनकी पत्नी — जो खुद चिकित्सक हैं — इस हादसे में अकेले रह गए हैं। उन्होंने अपने बेटे, बहू और तीनों नातियों को खुद अहमदाबाद एयरपोर्ट तक छोड़ा था। बेटे के गले लगे थे, पोते-पोतियों को चूमा था, और हाथ हिलाकर विदा की थी — यह सोचते हुए कि अब अगली मुलाकात लंदन में होगी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
जब विमान हादसे की खबर आई तो शुरुआत में उन्हें विश्वास नहीं हुआ। जैसे-जैसे नामों की सूची सामने आने लगी, उम्मीदों की डोर टूटती गई। जोशी दंपती अब भी अहमदाबाद में हैं। उनके चेहरे पर वो गम है जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। एक पिता जिसने अपने बेटे को डॉक्टर बनने के लिए पढ़ाया, एक माँ जिसने बहू को बेटी से बढ़कर माना, अब सबकुछ खो बैठे हैं।
डॉ. प्रतीक और डॉ. कौमी दोनों ही शांत, विनम्र और सेवा-भाव रखने वाले इंसान थे। पेसिफिक हॉस्पिटल के चेयरमैन आशीष अग्रवाल ने बताया कि कौमी दो दिन पहले ही अस्पताल आई थीं, सभी से मिलकर लंदन जाने की जानकारी दी थी। उनके चेहरे पर खुशी थी, एक नई शुरुआत की उम्मीद थी। किसी को नहीं पता था कि यह आखिरी मुलाकात है।
कलेक्टर डॉ. इंद्रजीत यादव और एसपी हर्षवर्धन अगरवाला खुद परिजनों से संपर्क में हैं। उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकार हरसंभव मदद करेगी। बांसवाड़ा के लोग स्तब्ध हैं। अस्पताल का स्टाफ, कॉलोनी के लोग, जोशी परिवार के मित्र — सभी की आंखें नम हैं।
इस हादसे ने सिर्फ एक परिवार नहीं छीना, बल्कि एक भविष्य को ही लील लिया। तीन मासूम बच्चे — जिनकी जिंदगी की असली शुरुआत भी नहीं हुई थी, अब किसी तस्वीर में मुस्कराते नजर आएंगे। उनके खिलौने, किताबें, स्कूल बैग्स — सब वहीं रखे हैं, लेकिन उन्हें पकड़ने वाले हाथ अब नहीं रहे।
ये हादसा 1993 के औरंगाबाद विमान हादसे की याद दिलाता है, जब इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट एक ट्रक से टकरा गई थी और बांसवाड़ा के ही हेम और सुधा की जान चली गई थी। अब तीन दशक बाद, वही जमीन फिर बांसवाड़ा की खुशियों को लील गई।
इस हादसे ने हमें एक बार फिर याद दिलाया है कि जिंदगी अनिश्चित है। हम भविष्य की योजनाएं बनाते हैं, टिकट बुक करते हैं, वीजा का इंतजार करते हैं — लेकिन ऊपरवाला कब किसे बुला ले, कोई नहीं जानता। इसलिए जिंदगी को हर दिन खुलकर जीना चाहिए। अपनों को गले लगाना चाहिए, “कल मिलते हैं” कहने से पहले यह सोचना चाहिए कि अगर वह ‘कल’ कभी न आया तो क्या बचेगा?
आज बांसवाड़ा शोक में डूबा है। लेकिन यह शोक सिर्फ एक जिले का नहीं है, यह पूरे देश की पीड़ा है। क्योंकि यह सिर्फ एक हादसा नहीं, एक स्वप्न का टूटना है। एक परिवार का सफर बीच में ही खत्म हो गया — वो भी उस वक्त, जब मंजिल बस कुछ ही घंटों की दूरी पर थी।
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