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Why did the youth suddenly become angry in Ladakh, this is the story behind it.
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लद्दाख में अचानक क्यों भड़क गए युवा, इसके पीछे की ये है कहानी
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Wed, 24 Sep 2025 03:44 PM IST
बुधवार को लेह-लद्दाख की सड़कों पर जो कुछ हुआ, उसने पूरे देश का ध्यान खींच लिया। छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर चल रहा शांतिपूर्ण आंदोलन अचानक हिंसक हो गया। युवा प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी दफ्तर पर हमला कर दिया, जमकर पत्थरबाजी की और एक पुलिस वाहन को आग के हवाले कर दिया। पुलिस ने हालात संभालने के लिए आंसू गैस और लाठीचार्ज का सहारा लिया। लेकिन सवाल यह है कि आखिर आंदोलन इतनी तेजी से हिंसा की ओर क्यों बढ़ा?
अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्य को दो हिस्सों में बांटा गया। जम्मू-कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश मिला, जबकि लद्दाख को बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया। उस समय केंद्र सरकार ने दावा किया था कि इससे लद्दाख को सीधे दिल्ली से विकास का लाभ मिलेगा। लेकिन चार साल बाद हालात कुछ और ही बयान कर रहे हैं।
लद्दाख के लोगों को सबसे बड़ा झटका यह लगा कि उनके भूमि और नौकरियों पर विशेष अधिकार समाप्त हो गए। पहले यहां सिर्फ स्थानीय लोग ही जमीन खरीद सकते थे और नौकरियों में प्राथमिकता पाते थे। लेकिन अब बाहरी लोगों को भी जमीन खरीदने और नौकरियां पाने का रास्ता खुल गया। इससे स्थानीय लोगों को अपनी पहचान और भविष्य दोनों पर खतरा महसूस होने लगा।
क्यों भड़का आंदोलन?
पिछले एक महीने से लद्दाख में लोग आंदोलनरत हैं। पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक इसके प्रतीकात्मक नेता बनकर सामने आए हैं। वह और उनके साथियों ने भूख हड़ताल शुरू की। यह आंदोलन लंबे समय तक शांतिपूर्ण रहा। लेकिन जैसे-जैसे भूख हड़ताल पर बैठे लोगों की हालत बिगड़ने लगी और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा, वैसे-वैसे माहौल में गुस्सा बढ़ता गया।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि सरकार सिर्फ बैठकें करती है, लेकिन ठोस कदम नहीं उठाती। अगली वार्ता 6 अक्तूबर को प्रस्तावित है, लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इतनी देर तक इंतजार करना संभव नहीं है। 35 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे 15 लोगों में से दो गंभीर रूप से बीमार हो चुके हैं। यही कारण है कि बुधवार को गुस्सा फूट पड़ा और विरोध ने हिंसक रूप ले लिया।
प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगें
1. लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले।
2. लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।
3. स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों और जमीन पर विशेष अधिकार बहाल हों।
4. लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग-अलग संसदीय सीट दी जाए।
यह मांगें सिर्फ भावनात्मक नहीं बल्कि व्यावहारिक भी हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, लद्दाख की 97% आबादी अनुसूचित जनजाति से आती है। 2019 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी अनुशंसा की थी कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।
लद्दाख में बीजेपी को अब तक एक बड़ी ताकत के रूप में देखा जाता था। लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि केंद्र की नीतियों से उनकी पहचान और अधिकार छिन रहे हैं। यही गुस्सा बुधवार को बीजेपी दफ्तर पर हमले के रूप में सामने आया। सुरक्षा वाहन में आग लगाना और पत्थरबाजी इस नाराजगी की चरम अभिव्यक्ति थी।
स्थिति को काबू करने के लिए पुलिस को आंसू गैस और लाठीचार्ज करना पड़ा। अतिरिक्त सुरक्षाबल तैनात किए गए हैं ताकि स्थिति और न बिगड़े। डीसीपी ने बताया कि अभी स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन हालात नाजुक बने हुए हैं।
संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों को विशेष अधिकार देती है, जिससे उनकी जनजातीय पहचान और संसाधन सुरक्षित रहते हैं। लद्दाख की जनजातीय बहुल आबादी चाहती है कि उन्हें भी वही सुरक्षा मिले। अगर यह मांग पूरी होती है, तो स्थानीय लोगों की जमीन, नौकरियां और संसाधन बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षित रहेंगे।
लद्दाख का आंदोलन महज एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पहचान, अधिकार और अस्तित्व की लड़ाई है। 2019 में केंद्र सरकार ने ‘नए विकास मॉडल’ का वादा किया था, लेकिन आज लोग खुद को असुरक्षित और ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल ने इस आंदोलन को नैतिक ताकत दी है, लेकिन भूख और पीड़ा ने गुस्से को हिंसा में बदल दिया।
अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है। 6 अक्तूबर की बैठक निर्णायक हो सकती है। सवाल यही है कि क्या सरकार आंदोलन को शांत करने के लिए ठोस कदम उठाएगी या लद्दाख की आग और भड़क जाएगी?
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