देश की संसद में बजट पेश होने का समय करीब है, ऐसे में जहां एक ओर देश भर के उद्योगपतियों को इस बजट से बड़ी उम्मीदें हैं, तो वहीं मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल के कॉटन हब कहे जाने वाले, खरगोन जिले के उद्योगों से जुड़े उद्योगपति भी केन्द्र सरकार की ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं। इन्होंने देश के वित्तमंत्री से मांग की है कि वे कॉटन को लेकर विस्तृत योजना बनाएं, जिससे कॉटन के दम तोड़ते उद्योगों को संजीवनी के रूप में कुछ राहत मिल सके। क्योंकि भारत रॉ कॉटन में चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में नंबर एक पर आ गया है। इसलिए अब उस कॉटन को प्रक्रिया कर निर्यात करने की बढ़िया पॉलिसी बनना चाहिए। साथ ही देश के कॉटन उत्पादन करने वाले 10 बड़े राज्यों में, वैल्यू एडिशन इंडस्ट्री लगाई जाए। इसके लिए हमारे पास स्किल, योग्य उम्मीदवार और सारे साधन जो इसके लिए हो सकते हैं, वह सभी उपलब्ध हैं। इसीलिए व्यापारियों ने मांग की है कि इस बजट में कॉटन को ध्यान रखते हुए इसके वैल्यू एडिशन को बढ़ाया जाए।
टैक्स कम ज्यादा करने से नही पड़ता कोई असर
मध्यप्रदेश कॉटन एसोशिएशन के प्रदेश अध्यक्ष कैलाश अग्रवाल के अनुसार यहां के कॉटन की मांग, देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। हमारे प्रदेश में करीब दो लाख हेक्टेयर में कॉटन की फसल लगाई जाती है, साथ ही यहां के कॉटन का रेशा भी अच्छा होता है। इसके चलते यहां के कॉटन की हमेशा ही डिमांड रहती है। देश में 40% एमएसएमई हैं, और कॉटन का निर्यात यही एमएसएमई करती हैं। इसलिए टैक्स को कम ज्यादा करने से व्यापारी पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। बल्कि, जो निर्यात की या कच्चे माल की पॉलिसी रहती हैं, उन्हें ठीक तरह से बनाया जाए, तो उससे बहुत फर्क पड़ता है, लेकिन फिलहाल जीएसटी एडवांस लेने से यहां के कॉटन उद्योगपतियों की कमर टूट रही है।
दी जाए निर्यात सब्सिडी
इधर जिले के ही एक और कॉटन व्यपारी कल्याण अग्रवाल के अनुसार चूंकि खरगोन जिले की भूमि करीब 87% सिंचित है। इसके चलते यहां कपास बहुत बड़े क्षेत्र में लगाया जाता है। जिले की प्रमुख फसल कपास है। हमारे देश से कपास बड़ी मात्रा में निर्यात होता है, लेकिन अभी विश्व में कपास और रुई के भाव घटे हैं। वहीं हमारे यहां लगातार दो सालों से इसकी एमएसपी बढ़ने के चलते अब कपास विदेशों से आयात होने लगा है। इसलिए पहली मांग यह है कि यदि एमएसपी बढ़ती है तो निर्यात सब्सिडी देकर इसको बैलेंस को बराबर करना पड़ेगा।
काकड़ा बेचने के बाद भी फंसी रहती है बड़ी लागत
उनकी दूसरी मांग है कि कपास में आरसीएम होता है, जिसके कारण हमें कपास पर ही इनपुट टैक्स भर देना पड़ता है। जबकि रुई और काकड़ा बेचने के बाद भी एक बहुत बड़ी लागत जिनिंग उद्योग की उसमें फंसी रहती है, जो करोड़ों में होकर उद्योगों की जमा पूंजी के बराबर होती है। इसलिए माल बिकने के बाद जीएसटी लगे यह उनकी प्रमुख मांग है। वहीं टेक्सटाइल इंडस्ट्री को एमएसपी की दृष्टि से सोचकर यदि निर्यात पर इंटेंसिव बढ़ाया जाए, तो यह उद्योग निश्चित रूप से वापस अपने पुराने वैभव पर लौट सकता है।
विश्व व्यापी मंदी से है कॉटन इंडस्ट्री परेशान
खरगोन के ही एक और कॉटन व्यपारी नरेंद्र गांधी के अनुसार, वर्तमान में निमाड़ क्षेत्र के साथ ही पूरे देश के जिनिंग उद्योग काफी संकट से गुजर रहे हैं। विश्व व्यापी मंदी से कॉटन इंडस्ट्री काफी परेशान है। इसलिए वे चाहते हैं कि बजट में वित्त मंत्री सीतारमण इस और ध्यान दें कि, कॉटन इंडस्ट्री को कैसे बढ़ावा दिया जाए। पिछले कुछ सालों में कॉटन इंडस्ट्री की कई फैक्ट्रियां बंद हुई थीं, और वर्तमान में भी बहुत सारी इंडस्ट्री बंद हो गई हैं। इसलिए वे अपेक्षा करते हैं कि एक विस्तृत ऐसी पॉलिसी हो जिससे देश की टेक्सटाइल और कॉटन इंडस्ट्री का सुचारू रूप से संचालन होता रहे।
बंद हो रही कॉटन इंडस्ट्री पर नहीं है सरकार का ध्यान
कॉटन व्यापारी नरेंद्र गांधी के अनुसार पिछले दो या तीन सालों से हमारी कई कॉटन इंडस्ट्री बंद होती चली जा रही है, लेकिन शासन का इस ओर ध्यान नहीं है। कॉटन इंडस्ट्री जीएसटी में भी आरसीएम से काफी परेशान हैं। पहले कपास क्रय मूल्य पर जीएसटी भरना पड़ता है और ऐसे में बड़े स्तर पर पूंजी ब्लॉक होती है। इसको लेकर शासन को बार-बार निवेदन भी किया गया है, लेकिन पिछले पांच सालों से शासन का इस ओर ध्यान नहीं है। इसलिए वे इस बजट में अपेक्षा करते हैं कि वित्त मंत्री जीएसटी और आरसीएम के बारे में विस्तृत सोचेंगी, और इसको हटाएंगी, यही कॉटन इंडस्ट्री की मुख्य मांग है।