मध्यप्रदेश में पिछले कुछ दिनों से लगातार किसान आंदोलन की राह पर हैं। इसको लेकर बीते आठ दिनों में ही प्रदेश भर में किसानों के दो अलग-अलग संगठनों के द्वारा दो विशाल रैलियां हरेक जिला मुख्यालय पर निकाली गई थी। वहीं, अब प्रदेश के बड़वानी जिले के पानसेमल तहसील स्थित खेतिया ग्रामीण अंचल के किसान इन दिनों धरने पर बैठे हुए हैं। बीते तीन दिनों से किसानों का यह धरना खेतिया कृषि उपज मंडी प्रांगण में जारी है, जो कि भारतीय किसान संघ की तहसील इकाई के बैनर तले किया जा रहा है।
वहीं, किसानों का कहना है कि जिले में अति वर्षा से उनकी फसलें बर्बाद हुई थीं, जिसका उन्हें अभी तक उचित मुआवजा नहीं मिला है और जब तक उन्हें अपनी फसलों का मुआवजा नहीं मिल जाता तब तक यह अनिश्चित कालीन धरना जारी रहेगा। उन्होंने इसको लेकर कई बार प्रशासन को ज्ञापन और मौखिक व लिखित रूप से अवगत भी कराया है। आज उनके धरने का तीसरा दिन है, लेकिन कोई भी जिम्मेदार अधिकारी अब तक उनकी सुध लेने नहीं पहुंचा है। हालांकि, बताया जा रहा है कि नगर के नायब तहसीलदार सुनिल सीसौदिया ने किसानों से इसको लेकर बातचीत की है और अपने वरिष्ठों को सूचना दिए जाने का आश्वासन भी दिया है।
अतिवृष्टि से मक्का, सोयाबीन और कपास की फसल हुई बर्बाद
इस दौरान धरने पर बैठे भारतीय किसान संघ के जिला महामंत्री कमल सिंह तोमर ने बताया, यह यह धरना भारतीय किसान संघ बड़वानी जिले के किसानों के साथ ही पानसेमल तहसील इकाई के किसानों के द्वारा पिछले तीन दिनों से लगातार चल रहा है। यह अनिश्चित कालीन धरना है, इसकी वजह यह है कि पूरे बड़वानी जिले में अतिवृष्टि से फसलें बर्बाद हुई हैं और खास कर यहां खेतिया क्षेत्र में जो मक्का की फसल है, वह लगभग 80 से 85 प्रतिशत तक खराब हो चुकी है और मक्का की उपज में इसके चलते भुट्टे भी नहीं आ पाए हैं। साथ ही कपास और सोयाबीन की फसलों की भी यही स्थिति है।
सर्वे नहीं होने तक जारी रहेगा धरना
वहीं, धरने पर बैठे किसान कमल तोमर ने बताया कि उनकी सरकार से मांग है कि अतिवृष्टि से खराब हुई फसल का जल्द से जल्द मुआवजा दिया जाए, जिसमें जिन किसान भाइयों का बीमा है उन्हें बीमा के अनुसार राशि उपलब्ध कराई जाए और जिनका बीमा नहीं था, उन्हें शासन के निर्देशानुसार आरबीसी 6-4 के तहत राशि दी जाए। वहीं, उन्होंने बताया कि यह धरना हमारा अनिश्चित कालीन तब तक जारी रहेगा, जब तक की शासन के लोग किसानों के खेतों में जाकर फसलों का सर्वे नहीं कर लेते और उस सर्वे रिपोर्ट की एक कॉपी किसान को उपलब्ध नहीं करा देते।