आज भले ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आधुनिकता का दौर हो, लेकिन सागर जिले की रहली तहसील के छोटे से गांव काछी पिपरिया में एक परिवार पिछले 208 वर्षों से एक अनूठी परंपरा निभा रहा है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत के रूप में आज भी कायम है।
दरअसल, भाद्रपद पूर्णिमा पर हर साल गांव में मेले का आयोजन होता है, जिसे पुतरियों का मेला कहा जाता है। इस मेले की शुरुआत करीब 208 साल पहले स्वर्गीय दुर्गाप्रसाद पाण्डेय ने की थी। वे मूर्तिकला और चित्रकला में निपुण थे, उन्होंने लगभग एक हजार मूर्तियां बनाकर अपने घर को संग्रहालय में बदल दिया था। धार्मिक कथाओं और कृष्ण लीलाओं पर आधारित जीवंत झांकियां सजाकर उन्होंने धर्मजागरण का कार्य प्रारंभ किया, जो आगे चलकर पुतरियों के मेले के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
चार पीढ़ियों से जारी विरासत
दुर्गाप्रसाद पाण्डेय के बाद उनके पुत्र बैजनाथ प्रसाद पाण्डेय, फिर तीसरी पीढ़ी के जगदीश प्रसाद पाण्डेय ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। अब चौथी पीढ़ी भी पूरी निष्ठा से इसे निभा रही है। इस परंपरा के माध्यम से पाण्डेय परिवार न केवल धर्मजागरण करता रहा है, बल्कि व्यसनमुक्ति और गौ-पालन का संदेश भी देता आया है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस आयोजन के लिए पाण्डेय परिवार ने न कभी शासन से सहायता मांगी और न ही संस्कृति विभाग ने अब तक इसकी सुध ली। पूरा आयोजन परिवार अपने संसाधनों और परिश्रम से करता है।
ये भी पढ़ें:
छह घंटे से कीचड़ में पड़ा था शव, पुलिस उठाने पहुंची तो अचानक खड़ा हो गया सरपंच, बोला- मैं जिंदा हूं
परंपरा सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं
आधुनिकता के दौर में इस मेले के प्रति लोगों का आकर्षण भले ही घटा हो, लेकिन पाण्डेय परिवार ने इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का संकल्प लिया है। उनका मानना है कि यह परंपरा सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश देने का माध्यम भी है।
ये भी पढ़ें:
अवैध संबंध में हत्या, पहली ने छोड़ा, दूसरी मां नहीं बन सकी, तीसरी पत्नी ने पति को ही मरवा डाला; कहानी