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Putriyon Ka Mela is held in Kachhi Pipariya of Sagar tradition has been going on for 207 years
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Putriyon Ka Mela: सागर के काछी पिपरिया में लगता है पुतरियों का मेला, 207 साल से कायम है परंपरा
न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, सागर Published by: सागर ब्यूरो Updated Wed, 18 Sep 2024 07:59 PM IST
सागर जिले की रहली तहसील के एक छोटे से गांव काछी पिपरिया में करीब दो सौ सात साल पुरानी परंपरा आज भी कायम है। भाद्रपद की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष गांव में मेला लगता है। इस मेले की पुतरियों के मेले के रूप में ख्याति है। प्राचीनकाल में पाण्डेय परिवार द्वारा प्रारम्भ की गई मूर्तियों की झांकी की परंपरा चौथी पीढ़ी तक बरकरार है। प्राचीन काल में ग्रामीणों में शिक्षा की कमी एवं संसाधनों के आभाव में धर्मजागरण मूर्तिकला एवं चित्रकला के द्वारा झांकियों के माध्यम से किया जाता रहा।
करीब 207 साल पहले स्वर्गीय दुर्गा प्रसाद पाण्डेय द्वारा काछी पिपरिया गांव में पुतरियों के मेले की शुरुआत की गई थी। पाण्डेय मूर्तिकला एवं चित्रकला में पारंगत थे। उन्होंने लगभग एक हजार मूर्तियों का निर्माण कर अपने निवास को एक संग्रहालय के रूप में विकसित कर धार्मिक कथाओं के अनुसार कृष्ण लीलाओं की सजीव झांकियां सजाकर धर्मजागरण का कार्य प्रारम्भ किया था। जो बाद में पुतरियों के मेले के रूप में जाना जाने लगा।
स्वर्गीय दुर्गा प्रसाद पाण्डेय के बाद उनके पुत्र स्वर्गीय बैजनाथ प्रसाद पाण्डेय ने इस मेले को आगे बढ़ाया। तीसरी पीढ़ी के जगदीश प्रसाद पाण्डेय ने अपने पूर्वजों की परंपरा को संजोकर रखते हुए आज तक बरकरार रहा है। चौथी पीढ़ी भी पूरी सिद्दत के साथ इस कार्य सहभगिता करती आ रही है।
पाण्डेय परिवार के द्वारा लगातार चार पीढ़ियों से झांकियों के द्वारा धर्मजागरण के साथ व्यसन मुक्ति, गो पालन का सन्देश देने का पुण्य कार्य अपने स्वयं के व्यय एवं परिश्रम के द्वारा दिया जा रहा है। इस कार्य के लिए पाण्डेय परिवार के द्वारा न तो शासन से कोई सहायता की मांग की गई न ही संस्कृति विभाग द्वारा इस अनूठे आयोजन की सुध ली गई। आधुनिकता के दौर में इस मेले के प्रति लोग का आकर्षण लगातार कम हो रहा है। परंतु पाण्डेय परिवार इस परंपरा को सतत आने वाली पीढ़ियों तक जारी रखने का मनसूबा रखता है।
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