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Ujjain News: Baba Mahakal decorated with Vaishnav Tilak on Jaljhulani Ekadashi
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Ujjain Mahakal: जलझूलनी एकादशी पर वैष्णव तिलक से सजे बाबा महाकाल, भस्म आरती में भक्तों को दिए दर्शन
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन Published by: उज्जैन ब्यूरो Updated Wed, 03 Sep 2025 07:42 AM IST
आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी है, इसे परिवर्तिनी एकादशी, जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। ये व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण, भगवत पुराण आदि ग्रंथों में एकादशी व्रत के बारे में बताया गया है। आज भादौ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी पर आज सुबह भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल के दरबार में हजारों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा। इस दौरान भक्तों ने देर रात से ही लाइन में लगकर अपने ईष्ट देव बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिए अपनी बारी आने का इंतजार किया तो वहीa बाबा महाकाल भी भक्तों को दर्शन देने के लिए सुबह 4 बजे जागे। आज पूरा मंदिर परिसर जय श्री महाकाल की गूंज से भी गुंजायमान हो गया।
श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में भादव माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि वार बुधवार सुबह 4 बजे भस्म आरती हुई। इस दौरान वीरभद्र जी से आज्ञा लेकर मंदिर के पट खुलते ही पण्डे पुजारियों ने गर्भगृह में स्थापित सभी भगवान की प्रतिमाओं का पूजन किया। जिसके बाद भगवान महाकाल का जलाभिषेक दूध, दही, घी, शक्कर पंचामृत और फलों के रस से किया गया। पूजन के दौरान प्रथम घंटाल बजाकर हरि ओम का जल अर्पित किया गया। पुजारियों और पुरोहितों ने इस दौरान बाबा महाकाल का विशेष शृंगार कर कपूर आरती के बाद बाबा महाकाल को नवीन मुकुट के साथ फूलों की माला धारण कराई गई। जिसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से भगवान महाकाल के शिवलिंग पर भस्म अर्पित की गयी। आज सुबह भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल को वैष्णव तिलक लगाकर शृंगारित किया गया। इन दिव्य दर्शनों का लाभ हजारों भक्तों ने लिया और जय श्री महाकाल का जयघोष भी किया जिससे पूरा मंदिर परिसर जय श्री महाकाल की गूंज से गुंजायमान हो गया। भस्म आरती में बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने बाबा महाकाल का आशीर्वाद लिया। मान्यता है की भस्म अर्पित करने के बाद भगवान निराकार साकार स्वरूप में दर्शन देते हैं।
आज योगनिद्रा में करवट बदलते हैं भगवान विष्णु
स्कंद पुराण के वैष्णव खण्ड में एकादशी महात्म्य अध्याय में कहा गया है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे देवशयन एकादशी कहा जाता है। इसके बाद भाद्रपद शुक्ल एकादशी को वे अपनी योगनिद्रा में करवट बदलते हैं, इस कारण इस तिथि को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं।
गणेश उत्सव, बुधवार और एकादशी का विशेष योग
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. सतीश नागर के मुताबिक आज यह एकादशी बुधवार को आई है। अभी गणेश उत्सव भी चल रहा है। ऐसे में इस तिथि का महत्व और अधिक बढ़ गया है। ज्योतिष में बुधवार का कारक ग्रह बुध को माना गया है। ये बुद्धि, वाणी और व्यापार का कारक ग्रह है। इसलिए बुधवार को बुध ग्रह की विशेष पूजा करनी चाहिए। बुधवार के स्वामी गणेश जी माने जाते हैं और एकादशी तिथि के स्वामी विष्णु जी हैं, इसलिए आज इन तीनों देवताओं की विशेष पूजा करने का शुभ योग बन रहा है।
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