मरुस्थली बाड़मेर की महिलाओं ने इस दीपावली पर परंपरा और पर्यावरण संरक्षण को नया आयाम देने की पहल की है। नया आगाज संस्थान से जुड़ी महिलाओं ने गाय के गोबर से दीपक बनाकर एक स्वदेशी नवाचार की शुरुआत की है। यह कदम न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता हुआ प्रयास है, बल्कि ग्रामीण रोजगार और पर्यावरण संरक्षण को भी मजबूत कर रहा है।
गुजरात से ली ट्रेनिंग, बाड़मेर में शुरू हुआ नवाचार
संस्थान की सचिव शोभा गौड ने बताया कि कुछ समय पहले उन्हें गाय के गोबर से दीये बनाने का विचार आया। इसके बाद उन्होंने महिलाओं का एक समूह बनाया और गुजरात के मेहसाणा जिले में दो दिन की ट्रेनिंग दिलवाई। ट्रेनिंग के बाद नवरात्रि में बाड़मेर में इस काम की शुरुआत हुई। यह जोधपुर संभाग का पहला ऐसा महिला समूह है जो गाय के गोबर से पारंपरिक दीपक तैयार कर रहा है।
बढ़ी मांग, प्रदेशभर से मिल रहे हैं ऑर्डर
महिला समूह की मेहनत अब रंग ला रही है। कुछ ही दिनों में इन गोबर के दीयों की बाजार में जबरदस्त मांग बढ़ गई है। बाड़मेर के साथ-साथ राजस्थान के अन्य जिलों से भी ऑर्डर मिल रहे हैं। महिलाएं दिनभर के घरेलू कार्यों के बाद तीन से चार घंटे दीये बनाने में लगाती हैं। एक दिन में लगभग ढाई से तीन किलो दीये तैयार हो जाते हैं, जिससे उन्हें चार से पांच सौ रुपये की आमदनी होती है। इससे न केवल परिवार को आर्थिक सहारा मिल रहा है, बल्कि आत्मनिर्भरता की राह भी खुल रही है।
पर्यावरण के लिए फायदेमंद और पूर्णतः स्वदेशी उत्पाद
महिलाओं का कहना है कि वे गौशाला से गाय का शुद्ध गोबर लाती हैं, जिसे दो से तीन दिन धूप में सुखाया जाता है। सूखे गोबर को पीसकर पाउडर बनाकर उसमें मिट्टी मिलाई जाती है, जिससे दीये आकार लेते हैं।
यह भी पढ़ें- जैसलमेर बस आग हादसे के चित्तौड़गढ़ से जुड़े तार: परिवहन विभाग से DVR जब्त; पंजीयन प्रक्रिया की होगी CBI जांच?
इन दीयों को सूखने के बाद रंगकर बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है। महिलाएं कहती हैं कि गाय का गोबर पवित्र और पर्यावरण हितैषी है। यह जलकन के बाद खेतों के लिए खाद का भी काम करता है, जिससे यह उत्पाद दोहरी उपयोगिता वाला बन जाता है।
‘रोजगार और परंपरा दोनों का संगम’
शोभा गौड ने बताया कि उनका उद्देश्य सिर्फ रोजगार कमाना नहीं, बल्कि अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाना है। उन्होंने कहा कि हमारा सपना है कि हर महिला कुछ ऐसा करे जिससे समाज और पर्यावरण दोनों को लाभ मिले। गोबर के दीये बनाना इसी दिशा में एक छोटा कदम है।
यह भी पढ़ें- राजस्थान बस अग्निकांड: ‘जब बस और हादसा एक तो मुआवजा अलग क्यों?’, टीकाराम जूली का सरकार की राहत नीति पर सवाल