Year Ender 2025: राहुल गांधी की 1300 KM यात्रा, 10 माह का समय बेकार; तेजस्वी यादव का सपना बिहार चुनाव में टूटा
Bihar Result : वर्ष 2025 परिणाम का रहा। बिहार के मामले में तो। इसने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से लेकर बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव तक को परिणाम की वास्तविकता से परिचित कराया। 2025 में बिहार की राजनीति ने क्या-क्या देखा?
विस्तार
आज इस साल का अंतिम दिन है तो पिछले साल की शुरुआत नजर आ रही है। बिहार के चुनावी साल की। 2024 में लोकसभा चुनाव होने बाद से ही माहौल बन रहा था, लेकिन जनवरी में सबसे पहले चुनावी माहौल बनाया था लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने। लगभग 10 महीने का समय दिया था राहुल गांधी ने। कम-से-कम 1300 किलोमीटर की यात्रा की। और, उनके साथी तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने की तारीख तक किए बैठे थे। दूसरी तरफ, सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने सिर्फ दो चालें चलीं। एक से सामने वाले को कमजोर और दूसरे से खुद को मजबूत किया। परिणाम ऐतिहासिक रहा। मतलब, 2025 राजनीति के रूप में परिणाम का वर्ष रहा।
जनवरी में मैदान में उतर गए थे राहुल गांधी
2024 लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी का रवैया चौंकाने वाला था। वजह था लालू यादव का बगैर कांग्रेस से समझौता हुए टिकट बांटना। सो, राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को नया दिखाने के लिए जनवरी 2025 से ही मेहनत शुरू कर दी। जनवरी में आकर नेताओं से मिल गए। माहौल देख गए। 19 दिन के भीतर दूसरी बार 5 फरवरी को आए तो कांग्रेस को बदलने का प्लान लेकर। स्वतंत्रता सेनानी और दलित चेहरे स्वर्गीय जगलाल चौधरी की जयंती पर पहली बार बड़ा आयोजन कर पहुंचे। आए तो उनका ही नाम गलत बोल दिया और उनके बेटे से मिले भी नहीं। इन बातों की चिंता किसी ने नहीं पहुंचाई। खैर, राहुल गांधी ने जो कांग्रेस के लिए योजना बनाई थी- फरवरी में ही उसपर अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया। दक्षिण से कृष्णा अल्लावरु को लेकर बिहार प्रभारी बनाया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और अगड़े नेता अखिलेश प्रसाद सिंह को पदमुक्त किया। दलित नेता राजेश राम को यह कुर्सी दी। इसके बाद एक-एक कर कांग्रेस ने अगड़ों से लगभग पीछा छुड़ा लिया। यह गलती या सही किया, कांग्रेस जाने। लेकिन, एक बड़ी गलती उसे स्वीकार करनी ही पड़ेगी।
चुनाव में सत्ता की जगह आयोग पर निशाना
बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर में होगा, यह तय था। लेकिन पूरे समय कांग्रेस ने राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा पर लगा दिया। राहुल गांधी उसके पहले भी आए, बाद भी। लगभग 10 महीने कम-ज्यादा कर मेहनत करते दिखे राहुल गांधी। लेकिन, वोटर अधिकार यात्रा में निशाने पर रहा भारत निर्वाचन आयोग। मुद्दा बनाया गया मतदाताओं से मताधिकार छीनने का। हकीकत मतदान के दौरान सामने आई, जब मतदाताओं ने मताधिकार छीने जाने को लेकर कहीं बड़ा हंगामा नहीं किया। मतलब, जिसपर कांग्रेस ने पूरी ऊर्जा खपाई- वह मुद्दा ही जमीन पर नहीं दिखा। सत्ताधारी दलों की जगह सारी ऊर्जा चुनाव आयोग के खिलाफ माहौल बनाकर उसे गलत साबित करने में खपाती रही कांग्रेस। कांग्रेस के नेता मतदान और खासकर चुनाव परिणाम के बाद इस बात को स्वीकारते भी नजर आए, हालांकि तब तक देर हो चुकी थी।
तेजस्वी सीटें बांटने में पीछे, शपथ में आगे-आगे
बिहार चुनाव 2025 नंबर में होना था। इसके पहले अक्टूबर का पूरा महीना पर्व-त्योहार के नाम था। लोक आस्था का महापर्व छठ खत्म होते ही चुनाव होगा। समय नहीं बचेगा। यह सत्ता पक्ष ने समझ लिया। सीटों पर बात फाइनल करने में महागठबंधन पूरी तरह से नाकाम रहा। बगैर बंटवारा फाइनल हुए प्रत्याशी नहीं घोषित करने का एलान बेकार गया, क्योंकि लोकसभा चुनाव की तरह ही अंतत: प्रत्याशियों ने जाकर नामांकन भी कर दिया। कई सीटों पर महागठबंधन के दल भी एक-दूसरे के सामने आ गए। कई पर प्रत्याशी बैठाना भी पड़ा। इसके पहले, कांग्रेस की अपनी जिद रही और महागठबंधन के अंदर मुकेश सहनी को भी कांग्रेस की अनिच्छा के बावजूद तेजस्वी यादव खूब तवज्जो देते रहे। तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री के रूप में अपनी शपथ की तारीख घोषित करते रहे और उधर कांग्रेस ने मतदान के कुछ दिन पहले औपचारिक रूप से अपने एक नेता को भेजकर एलान कराया कि महागठबंधन में सीएम का चेहरा तेजस्वी यादव होंगे।
कांग्रेस ने तेजस्वी का अंक कैसे काट दिया?
यह नौबत इसलिए आई, क्योंकि वोटर अधिकार यात्रा के बाद राहुल गांधी से जब इसपर सवाल पूछा गया था तो उन्होंने सीधे-स्पष्ट सवाल को टाल तेजस्वी यादव की राह में रोड़े गिरा दिए थे। मतदान से पहले कांग्रेस ने भले तेजस्वी यादव को चेहरा बता दिया, लेकिन दोनों दलों में भी कई सीटों पर आमने-सामने की नौबत दिखी। कई जगह महागठबंधन के बाकी दलों के बीच भी टकराव। और, सबसे अहम बात कि सामने वाले से लड़ाई की जगह खुद में जंग दिखाकर महागठबंधन के दल कमजोर प्रदर्शन के लिए चुनाव में उतरे।
राहुल गांधी बोले- PM मोदी ने विधायकों और सांसदों की शक्तियां छीन लीं, निर्णय लेने की शक्ति तक नहीं
एनडीए की वह दो चाल, जिससे महागठबंधन निढाल
वर्ष 2025 में सबसे ज्यादा क्या याद किया गया, अगर आप बिहार या बाहर रहने वाले किसी बिहारी से पूछें तो जवाब मिलेगा 2005 के पहले का प्रदेश, लालू-राबड़ी का शासनकाल। एनडीए ने एक चाल यह चली कि सामने वाला कमजोर हो जाएा। भाजपा ने सोशल मीडिया की पूरी टीम को प्रिंट, विजुअल के पुराने क्लिप्स निकालने में लगाया और फिर अभियान चलाकर बताया गया कि कैसे-क्यों कोर्ट ने बिहार में जंगलराज की बात कही थी। पुरानी खबरें दिखाई गईं। नए नेताओं के विजुअल्स को उससे जोड़ा गया। नाट्य रूपांतरण दिखाया गया। जदयू ने भी इस अभियान में भाजपा की पूरी मदद की। नीतीश कुमार के लाए बदलाव पर फोकस करते हुए उसने पुराने और नए बिहार के अंतर को दिखाना शुरू किया। महागठबंधन जहां बिखरा दिखता था, वहीं एनडीए एकजुट होकर जंगलराज का डर दिखाता रहा। एनडीए ने सामने वाले को कमजोर करने के लिए एक बड़ी चाल यह चली तो दूसरी तरफ खुद को मजबूत करने के लिए चुनाव की अधिसूचना से पहले सारी कमियों को पूरा करने पर फोकस कर दिया।
नीतीश का चेहरा, नीतीश का एलान... परिणाम सामने
मुख्यमंत्री की यात्राओं के दौरान जनसमूहों की जो भी मांगें दिखी थीं, उन सभी को पूरा किया गया। मानदेय और प्रोत्साहन राशि बढ़ाने का एलान सीधे मुख्यमंत्री ही करते रहे। चुनाव की घोषणा के पहले महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए तत्काल 10 हजार रुपये देने और बाकी काम की प्रगति के आधार पर जारी करने घोषणा हुई। मतलब, खुद को मजबूत करने के लिए भी एनडीए ने अगस्त-सितंबर का पूरा उपयोग किया। यहां तक कि चुनाव की अधिसूचना से पहले, अक्टूबर के सात दिनों का भी एनडीए ने अपनी दूसरी चाल को कामयाब बनाने में किया। नतीजा 14 नवंबर को सामने आया, जब एनडीए 202 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ विधानसभा पहुंचा तो महागठबंधन राजद के 25 समेत कुल 35 पर जाकर रह गया। कुल 243 में से पांच सीटें असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी और एक मायावती के पार्टी ने हासिल की।
जिनकी जयंती पर आए थे राहुल गांधी, उनका ही नाम भूले; जगलाल चौधरी के बेटे से भी नहीं मिले
17 अगस्त 2025 से एक सितंबर तक चली थी वोटर अधिकार यात्रा
राहुल गांधीने ने 17 अगस्त से वोटर अधिकार यात्रा शुरू की थी। यह यात्रा सासाराम (रोहतास) से शुरू होकर पटना के गांधी मैदान में एक सितंबर को समाप्त हुई। इसमें राहुल गांधी ने बिहार के लगभग 20-23 जिलों से होकर लगभग 1,300 किलोमीटर की दूरी तय की, जिसका लक्ष्य मतदाताओं को उनके मताधिकार के प्रति जागरूक करना और मतदाता सूची के विवादित पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ लोगों को संगठित करना था। यात्रा के दौरान उन्होंने राजद के तेजस्वी यादव समेत अन्य विपक्षी नेताओं के साथ कई स्थानों पर रैली और रोड शो किए।