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Satta Ka Sangram: कल अररिया पहुंचेगा चुनावी रथ, चार सीटों पर NDA का कब्जा, एक-एक कांग्रेस-मजलिस के पास; जानें

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पूर्णिया Published by: शबाहत हुसैन Updated Tue, 28 Oct 2025 03:00 PM IST
सार

Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार में आगामी 6 और 11 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। प्रदेश के चुनावी माहौल का जायजा लेने और राजनीतिक दलों के नेताओं से उनके वोट मांगने के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए अमर उजाला का चुनावी रथ 'सत्ता का संग्राम' बुधवार को अररिया पहुंचेगा। यहां जनता के मुद्दे जानने के बाद नेताओं के जवाब को तोला जाएगा।

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Satta Ka Sangram: Amar Ujala election campaign vehicle will reach Araria Seemanchal tomorrow
अररिया में सत्ता का संग्राम - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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कल 29 अक्तूबर 2025 दिन बुधवार की सुबह आठ बजे ‘चाय पर चर्चा’ आपके शहर अररिया में होगी। अमर उजाला पर कार्यक्रम लाइव टेलीकास्ट होंगे। उसके बाद दोपहर 12 बजे युवाओं से चर्चा की जाएगी। फिर शाम 4 बजे से कार्यक्रम में सभी पार्टी के नेता/प्रत्याशियों, उनके प्रतिनिधि/समर्थकों और आम लोगों से सवाल-जवाब किए जाएंगे। ऐसे में आइये जानते हैं अररिया का इतिहास।

अररिया का इतिहास
अररिया जिले का इतिहास ब्रिटिश काल के दौरान शुरू हुआ, जब इसे बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था के लिए एक उप-मंडल के रूप में स्थापित किया गया था। 14 जनवरी 1990 को अररिया को पूर्णिया जिले से अलग कर एक स्वतंत्र जिला घोषित किया गया। यह इलाका प्राचीन मिथिला क्षेत्र का हिस्सा रहा है और मौर्य तथा गुप्त राजवंशों के अधीन भी रहा। अररिया नाम की उत्पत्ति के बारे में यह माना जाता है कि यह आर एरिया (R. Area) शब्द से निकला है, जो ब्रिटिश काल में फोर्ब्स के बंगले के पास स्थित आवासीय क्षेत्र को संदर्भित करता था। धीरे-धीरे इसका उच्चारण बदलकर अररिया हो गया।

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ऐतिहासिक विकास
प्राचीन काल में अररिया मिथिला क्षेत्र का हिस्सा था, जिसे विदेह साम्राज्य के रूप में जाना जाता था और जहां जनक वंश का शासन था। मौर्य तथा गुप्त साम्राज्यों के समय में यह क्षेत्र उत्तर भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों का एक अहम केंद्र रहा। बाद में यह कई स्थानीय राजवंशों और जमींदारों के अधीन भी आया। ब्रिटिश शासनकाल में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद प्रशासनिक सुधारों के तहत 1864 में अररिया, मटियारी, डिमिया, हवेली और बहादुरगंज के कुछ हिस्सों को मिलाकर अररिया उप-मंडल की स्थापना की गई। इस समय से यह इलाका प्रशासनिक दृष्टि से एक संगठित इकाई के रूप में विकसित होने लगा। स्वतंत्रता के बाद भी अररिया लंबे समय तक पूर्णिया जिले के अधीन रहा। अंततः 14 जनवरी 1990 को इसे अलग कर एक स्वतंत्र जिला बनाया गया। आज अररिया पूर्णिया प्रमंडल का एक महत्वपूर्ण जिला है।

2020 के नतीजे
क्रमांक विधानसभा क्षेत्र विधायक का नाम पार्टी
1 नरपतगंज जयप्रकाश यादव भाजपा
2 रानीगंज (सु.) अक्षमित ऋषिदेव जद(यू)
3 फारबिसगंज विद्या सागर केशरी भाजपा
4 अररिया सदर अबिदुर रहमान कांग्रेस
5 जोकिहाट शाहनवाज एआईएमआईएम 
6 सिकटी विजय कुमार मंडल भाजपा

प्रशासनिक संरचना
अररिया जिला दो उपखंडों अररिया और फारबिसगंज में विभाजित है। अररिया उपखंड में छह प्रखंड शामिल हैं। जिसमें अररिया, जोकीहाट, कुर्साकांटा, रानीगंज, सिकटी और पलासी। फारबिसगंज उपखंड में तीन प्रखंड हैं: फारबिसगंज, नरपतगंज और भरगामा। जिले में कुल छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें अररिया, फारबिसगंज, रानीगंज, नरपतगंज, जोकीहाट और सिकटी। भौगोलिक दृष्टि से यह जिला नेपाल की सीमा से सटा हुआ है, जिससे इसकी रणनीतिक और सुरक्षा दृष्टि से विशेष महत्ता है। नेपाल से लगती सीमा के कारण यह क्षेत्र सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से भी प्रभावित रहता है।

प्रसिद्ध व्यक्तित्व और सांस्कृतिक विरासत
अररिया प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की कर्मभूमि रहा है। रेणु के साहित्य में इस क्षेत्र की सामाजिक और ग्रामीण जीवनशैली का गहरा चित्रण मिलता है। यहां की भाषा, लोककला, और लोकगीतों में मैथिली संस्कृति की गहरी छाप दिखाई देती है।

प्रमुख समस्याएं
अररिया जिले की सबसे बड़ी समस्या बाढ़ है। नेपाल से निकलने वाली नदियां कोसी, परमान, डाहा और अन्य छोटी नदियां हर साल बरसात के मौसम में तबाही मचाती हैं। इन नदियों के उफान से खेत-खलिहान जलमग्न हो जाते हैं, सैकड़ों घर बह जाते हैं और गांवों का आपसी संपर्क टूट जाता है। कई बार सड़कें और पुल भी बाढ़ के पानी में बह जाते हैं, जिससे राहत और बचाव कार्य में कठिनाइयां आती हैं। बाढ़ के साथ-साथ कटाव भी इस क्षेत्र की स्थायी समस्या है। हर साल कई गाँव नदी के कटाव की वजह से अपनी जमीन खो देते हैं। इससे विस्थापन और गरीबी की समस्या और बढ़ जाती है।

आर्थिक दृष्टि से भी अररिया बिहार के सबसे पिछड़े जिलों में गिना जाता है। वर्ष 2006 में भारत सरकार ने इसे देश के 250 सबसे पिछड़े जिलों में शामिल किया था। यहाँ की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है, जो प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। औद्योगिक विकास की गति धीमी है और रोजगार के अवसर सीमित हैं, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए अन्य राज्यों में पलायन करते हैं।

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शिक्षा के क्षेत्र में भी अररिया की स्थिति संतोषजनक नहीं है। जिले की साक्षरता दर मात्र 53.53 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। शिक्षा व्यवस्था में संसाधनों की कमी और ग्रामीण इलाकों में विद्यालयों की खराब स्थिति इसके प्रमुख कारण हैं।

आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों में भी कई खामियाँ देखने को मिलती हैं। बाढ़ के बाद राहत सामग्री के वितरण में देरी और समुचित व्यवस्था की कमी से लोगों को लंबे समय तक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सड़क, बिजली, जल निकासी और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी भी जिले की बड़ी समस्याओं में शामिल है। ग्रामीण सड़कों की खराब हालत से न केवल आवागमन बाधित होता है बल्कि आर्थिक गतिविधियाँ भी प्रभावित होती हैं।

सत्ता का संग्राम प्रस्तावित कार्यक्रम
सुबह 8 बजे: थाना चौक स्थित मेहमान जी की चाय की टपरी के पास
दोपहर 12 बजे: नरपतगंज प्रखंड कार्यालय थाना के सामने
शाम 4 बजे: फरबिसगंज स्टेशन चौक पर राजनेताऑ से चर्चा

विशेष कवरेज को आप यहां देख सकेंगे
amarujala.com, अमर उजाला के यूट्यूब चैनल और फेसबुक चैनल पर आप 'सत्ता का संग्राम' से जुड़े कार्यक्रम लाइव देख सकेंगे। 'सता का संग्राम' से जुड़ा व्यापक जमीनी कवरेज आप अमर उजाला अखबार में भी पढ़ सकेंगे।

इनपुट: सुमन ठाकुर, मो. 7277391624

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