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आचार्य रजनीश जयंती: भारत एक सनातन यात्रा है
अमर उजाला नेटवर्क
Published by: लव गौर
Updated Thu, 11 Dec 2025 07:15 AM IST
सार
भारत कोई भूखंड नहीं है। यह एक सनातन यात्रा है, एक अमृत पथ है, जो अनंत तक फैला हुआ है। मैं भी उस अनंत यात्रा का छोटा-मोटा यात्री हूं।
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आचार्य रजनीश
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
पृथ्वी के इस भूभाग में मनुष्य की चेतना ने पहली किरण के साथ उस सपने को देखना शुरू किया था। उस सपने की माला में कितने फूल पिरोए हैं, लाखों ऋषि, राम, कृष्ण, पतंजलि, अष्टावक्र कितने गौतम बुद्ध, कितने महावीर, कितने कबीर, रैदास, मीरा, राम-कृष्ण कितने नानक उस सपने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर गए। उस सपने को मैं अपना कैसे कहूं? वह सपना मनुष्य का, मनुष्य की अंतरात्मा का सपना है। उस सपने को हमने एक नाम दे रखा था। हम उस सपने को भारत कहते हैं। भारत कोई भूखंड नहीं है। न ही कोई राजनैतिक इकाई है, न ऐतिहासिक तथ्यों का कोई टुकड़ा है। न धन, न पद, न प्रतिष्ठा की पागल दौड़ है। भारत है एक अभीप्सा, एक प्यास-सत्य को पा लेने की। उस सत्य को, जो हमारी धड़कन-धड़कन में बसा है। उस सत्य को, जो हमारी चेतना की तहों में सोया है। वह, जो हमारा होकर भी हमसे भूल गया है। उसका पुनर्स्मरण, उसकी पुनःउद्घोषणा भारत है।
अमृतस्य पुत्रः! हे अमृत के पुत्रो। जिन्होंने इस उद्घोषणा को सुना, वे ही केवल भारत के नागरिक हैं। भारत में पैदा होने से कोई भारत का नागरिक नहीं हो सकता। जमीन पर कोई कहीं भी पैदा हो, किसी देश में, किसी सदी में, अतीत में या भविष्य में, अगर उसकी खोज अन्तस्थ की खोज है, तो ही वह भारत का निवासी है। मेरे लिए भारत और अध्यात्म एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। इसलिए भारत के पुत्र जमीन के कोने-कोने में हैं और जो संयोगवश केवल भारत में पैदा हो गए हैं, जब तक उन्हें अमृत की तलाश पागल न बना दे, तब तक वे भारत के नागरिक होने के अधिकारी नही हैं।
भारत एक सनातन यात्रा है, एक अमृत पथ है, जो अनंत से अनंत तक फैला हुआ है। इसलिए हमने कभी भारत का इतिहास नहीं लिखा। इतिहास भी कोई लिखने की बात है। साधारण-सी दो कौड़ी की रोजमर्रा की घटनाओं का नाम इतिहास है। जो आज तूफान की तरह उठती हैं और कल जिनका कोई निशान भी नहीं रह जाता। इतिहास तो धूल का बवंडर है। भारत ने इतिहास नहीं लिखा। भारत ने तो केवल उस चिरंतन की ही साधना की है, वैसे ही जैसे चकोर चांद को एकटक बिना पलक झपकाए देखता रहता है।
मैं भी उस अनंत यात्रा का छोटा-मोटा यात्री हूं। चाहता था कि जो भूल गए हैं, उन्हें याद दिला दूं, जो सो गए हैं, उन्हें जगा दूं और भारत अपनी आंतरिक गरिमा व गौरव को, अपनी हिमाच्छादित ऊंचाइयों को पुनः पा ले, क्योंकि भारत के भाग्य के साथ पूरी मानवता की किस्मत जुड़ी हुई है। यह केवल किसी एक देश की बात नहीं है। अगर भारत अंधेरे में खो जाता है, तो आदमी का कोई भविष्य नहीं है और अगर हम भारत को पुनः उसके पंख दे देते हैं, पुनः उसका आकाश दे देते हैं, पुनः उसकी आंखों को सितारों की तरफ उड़ने की चाह से भर देते हैं, तो हम केवल उनको ही नहीं बचाते हैं, जिनके भीतर प्यास है। हम उन्हें भी बचा लेते हैं, जो आज सोए हैं, लेकिन कल जागेंगे, जो आज खोए हैं, लेकिन कल घर लौटेंगे।
भारत का भाग्य मनुष्य की नियति है, क्योंकि हमने जैसे मनुष्य की चेतना को चमकाया था और हमने जैसे दीये उसके भीतर जलाए थे, जैसी सुगंध हमने उसमें बिखेरी थी, वैसी दुनिया में कोई भी नहीं कर सका था। यह कोई दस हजार साल पुरानी सतत साधना है, सतत योग है, सतत ध्यान है। हमने इसके लिए बाकी सब कुछ खो दिया। हमने इसके लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया, लेकिन मनुष्य की अंधेरी से अंधेरी रात में भी हमने आदमी की चेतना के दीये को जलाए रखा है, चाहे कितनी भी मद्धिम उसकी लौ हो गई हो, लेकिन दीया अब भी जलता है।
प्रस्तुति-सुरेंद्र बांसल
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अमृतस्य पुत्रः! हे अमृत के पुत्रो। जिन्होंने इस उद्घोषणा को सुना, वे ही केवल भारत के नागरिक हैं। भारत में पैदा होने से कोई भारत का नागरिक नहीं हो सकता। जमीन पर कोई कहीं भी पैदा हो, किसी देश में, किसी सदी में, अतीत में या भविष्य में, अगर उसकी खोज अन्तस्थ की खोज है, तो ही वह भारत का निवासी है। मेरे लिए भारत और अध्यात्म एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। इसलिए भारत के पुत्र जमीन के कोने-कोने में हैं और जो संयोगवश केवल भारत में पैदा हो गए हैं, जब तक उन्हें अमृत की तलाश पागल न बना दे, तब तक वे भारत के नागरिक होने के अधिकारी नही हैं।
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भारत एक सनातन यात्रा है, एक अमृत पथ है, जो अनंत से अनंत तक फैला हुआ है। इसलिए हमने कभी भारत का इतिहास नहीं लिखा। इतिहास भी कोई लिखने की बात है। साधारण-सी दो कौड़ी की रोजमर्रा की घटनाओं का नाम इतिहास है। जो आज तूफान की तरह उठती हैं और कल जिनका कोई निशान भी नहीं रह जाता। इतिहास तो धूल का बवंडर है। भारत ने इतिहास नहीं लिखा। भारत ने तो केवल उस चिरंतन की ही साधना की है, वैसे ही जैसे चकोर चांद को एकटक बिना पलक झपकाए देखता रहता है।
मैं भी उस अनंत यात्रा का छोटा-मोटा यात्री हूं। चाहता था कि जो भूल गए हैं, उन्हें याद दिला दूं, जो सो गए हैं, उन्हें जगा दूं और भारत अपनी आंतरिक गरिमा व गौरव को, अपनी हिमाच्छादित ऊंचाइयों को पुनः पा ले, क्योंकि भारत के भाग्य के साथ पूरी मानवता की किस्मत जुड़ी हुई है। यह केवल किसी एक देश की बात नहीं है। अगर भारत अंधेरे में खो जाता है, तो आदमी का कोई भविष्य नहीं है और अगर हम भारत को पुनः उसके पंख दे देते हैं, पुनः उसका आकाश दे देते हैं, पुनः उसकी आंखों को सितारों की तरफ उड़ने की चाह से भर देते हैं, तो हम केवल उनको ही नहीं बचाते हैं, जिनके भीतर प्यास है। हम उन्हें भी बचा लेते हैं, जो आज सोए हैं, लेकिन कल जागेंगे, जो आज खोए हैं, लेकिन कल घर लौटेंगे।
भारत का भाग्य मनुष्य की नियति है, क्योंकि हमने जैसे मनुष्य की चेतना को चमकाया था और हमने जैसे दीये उसके भीतर जलाए थे, जैसी सुगंध हमने उसमें बिखेरी थी, वैसी दुनिया में कोई भी नहीं कर सका था। यह कोई दस हजार साल पुरानी सतत साधना है, सतत योग है, सतत ध्यान है। हमने इसके लिए बाकी सब कुछ खो दिया। हमने इसके लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया, लेकिन मनुष्य की अंधेरी से अंधेरी रात में भी हमने आदमी की चेतना के दीये को जलाए रखा है, चाहे कितनी भी मद्धिम उसकी लौ हो गई हो, लेकिन दीया अब भी जलता है।
प्रस्तुति-सुरेंद्र बांसल