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मुड़-मुड़ के देख: परिपक्व प्रेम शांत प्रकाश बन जाता है; वही व्यक्ति महान है, जो अपनी शक्ति से दिल जीत ले
हेनरी वार्ड बीचर
Published by: पवन पांडेय
Updated Fri, 12 Dec 2025 07:51 AM IST
सार
बुजुर्गों का प्रेम, शांत, धीर, और गहराई में जलते हुए अंगारों की तरह होता है। यह वह ऊष्मा है, जिसे समय ने परखा है, जिसे अनुभव ने तराशा है, और जिसे जीवन की परीक्षाओं ने अटूट बना दिया है।
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- फोटो : istock
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विस्तार
युवावस्था का प्रेम उस ज्वाला के समान है, जो आसमान छू लेने का साहस रखती है। यह बेहद सुंदर, प्रखर, और अपनी ही गति से चकित कर देने वाली होती है। यह प्रकाश अवश्य देता है, परंतु इसकी टिमटिमाहट में एक बेचैनी, एक अनियंत्रित आकर्षण छिपा रहता है। जैसे कोई युवा आत्मा जीवन के अर्थ को पहले-पहल छूती है और उसे पाने की जल्दबाजी में स्वयं ही लपट बन जाती है।
जीवन का दूसरा चरण, यानी बुजुर्गों का प्रेम, शांत, धीर, और गहराई में जलते हुए अंगारों की तरह होता है। यह वह ऊष्मा है, जिसे समय ने परखा है, जिसे अनुभव ने तराशा है, और जिसे जीवन की परीक्षाओं ने अटूट बना दिया है। यही प्रेम स्थिर है, यही प्रेम विश्वसनीय है, और यही प्रेम वह प्रकाश देता है, जो तूफानों से भी नहीं बुझता। बुजुर्गों के दिल की कोमलता उम्र के साथ बढ़ती है, क्योंकि समय उन्हें प्रेम का सच्चा अर्थ सिखा देता है। चुनौतियां, सफलताएं, ठोकरें, आदि दिल को इतना गहरा और समझदार बना देती हैं कि उनका प्रेम परिपक्व होकर एक शांत प्रकाश बन जाता है। यही कारण है कि बुजुर्ग दिलों का प्रेम इतना सच्चा, इतना धैर्यपूर्ण और इतना भरोसेमंद होता है। वे जानते हैं कि प्रेम केवल उत्साह का नाम नहीं, बल्कि देखभाल, जिम्मेदारी, त्याग और साथ निभाने का व्रत है।
उम्र के अंतिम पड़ाव में प्रेम शब्दों से कम और मौन से अधिक बोलता है। युवावस्था में हमें लगता है कि शक्ति ही सब कुछ है। अक्सर लोग सोचते हैं कि अपनी ताकत दिखाकर वे दुनिया जीत लेंगे। लेकिन उम्रदराज होने के साथ, हम ज्ञान अर्जित करते हैं, हमारे भीतर समझ विकसित होती है और हमारा पूरा नजरिया ही बदल जाता है। उम्र और अनुभव सिखाते हैं कि महानता शक्ति में नहीं, बल्कि शक्ति के उपयोग में है। सच्चा बल वह है, जो किसी को नीचा न दिखाए, बल्कि उन्हें ऊपर उठाए। वही व्यक्ति महान है, जो अपनी शक्ति से दिल जीत ले, और अपनी ताकत का उपयोग स्वयं तथा समाज की भलाई के लिए करे।
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जीवन का दूसरा चरण, यानी बुजुर्गों का प्रेम, शांत, धीर, और गहराई में जलते हुए अंगारों की तरह होता है। यह वह ऊष्मा है, जिसे समय ने परखा है, जिसे अनुभव ने तराशा है, और जिसे जीवन की परीक्षाओं ने अटूट बना दिया है। यही प्रेम स्थिर है, यही प्रेम विश्वसनीय है, और यही प्रेम वह प्रकाश देता है, जो तूफानों से भी नहीं बुझता। बुजुर्गों के दिल की कोमलता उम्र के साथ बढ़ती है, क्योंकि समय उन्हें प्रेम का सच्चा अर्थ सिखा देता है। चुनौतियां, सफलताएं, ठोकरें, आदि दिल को इतना गहरा और समझदार बना देती हैं कि उनका प्रेम परिपक्व होकर एक शांत प्रकाश बन जाता है। यही कारण है कि बुजुर्ग दिलों का प्रेम इतना सच्चा, इतना धैर्यपूर्ण और इतना भरोसेमंद होता है। वे जानते हैं कि प्रेम केवल उत्साह का नाम नहीं, बल्कि देखभाल, जिम्मेदारी, त्याग और साथ निभाने का व्रत है।
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उम्र के अंतिम पड़ाव में प्रेम शब्दों से कम और मौन से अधिक बोलता है। युवावस्था में हमें लगता है कि शक्ति ही सब कुछ है। अक्सर लोग सोचते हैं कि अपनी ताकत दिखाकर वे दुनिया जीत लेंगे। लेकिन उम्रदराज होने के साथ, हम ज्ञान अर्जित करते हैं, हमारे भीतर समझ विकसित होती है और हमारा पूरा नजरिया ही बदल जाता है। उम्र और अनुभव सिखाते हैं कि महानता शक्ति में नहीं, बल्कि शक्ति के उपयोग में है। सच्चा बल वह है, जो किसी को नीचा न दिखाए, बल्कि उन्हें ऊपर उठाए। वही व्यक्ति महान है, जो अपनी शक्ति से दिल जीत ले, और अपनी ताकत का उपयोग स्वयं तथा समाज की भलाई के लिए करे।