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बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा: मोहम्मद यूनुस के शासन में आखिर कहां जा रहा है पड़ोसी मुल्क?

Amiya bhushan अमिय भूषण
Updated Tue, 10 Dec 2024 02:56 PM IST
सार

बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर लगातार अत्याचार हो रहे हैं। हाल ही में सत्ता परिवर्तन के बाद से स्थिति और बिगड़ गई है। हिंदू साधुओं की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मुद्दे पर क्यों चुप्पी साधे हुए है?

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Indian Foreign Secretary visit and anti-Hindu violence in Bangladesh international community silent in hindi
बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार के विरोध में प्रदर्शन करते लोग।
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विस्तार
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नस्लीय बर्बरता और हिंसा की वजह से सुर्खियों का हिस्सा बने बांग्लादेश में भारतीय विदेश सचिव के दौरे के बाद आशंकाओं का बादल अब और भी साफ होने चला है। कहना गलत नहीं होगा कि वो जो कातिल है वही निज़ाम वही मुंसिफ है वो क्या ख़ाक हिन्दू अल्पसंख्यकों के हक़ में फैसला लेगा। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में वार्षिक द्विपक्षीय वार्ता में हिस्सा लेने पहुंचे भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी की यात्रा के परिणामो के  लेकर जिस तरीके के कयास लगाए जा रहे थे ठीक वैसा ही फलाफल निकल कर सामने आया है।

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दरअसल, बांग्लादेश में हो रहे अल्पसंख्य हिन्दू उत्पीड़न पर भारतीय विदेश सचिव की बेलाग और वाज़िब बयान पर अंतरिम सरकार के निज़ाम यूनुस और उनके प्रशासन ने इसे बांग्लादेश का आंतरिक मामला भर कहकर अपनी मंशा और योजना दोनों जाहिर कर दी है। इसी बीच मज़हबी कट्टरपंथी बांग्लादेशी नेताओं के बड़बोलेपन पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी तल्ख़ पलटवार किया है। बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मोहम्मद यूनुस और उनके शासन को फासीवादी करार देते हुए बांग्लादेशी कानून के मुताबिक निज़ाम और उनके सरपरस्तों का हिसाब करने की कसम उठाई है।
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सत्ता के संरक्षण में सम्पूर्ण  बांग्लादेश में हिन्दू नरसंहार की वीभत्स योजना पर काम कर रहे कार्यवाह प्रधानमंत्री यूनुस के नोबल पुरस्कार के खिलाफ भी नागरिक समूहों ने नोबेल कमेटी के सामने आपत्ति खड़े किए हैं। इन सभी घटनाक्रमों के बीच बांग्लादेश खबरों की सुर्खियों का हिस्सा है। इन चर्चाओं मे सबसे बड़ी चर्चा फिलहाल वहां के अल्पसंख्यक हिंदू विरोधी चरित्र को लेकर है। ऐसा भी नही है कि यहां ये सब कोई पहली बार हो रहा है।

दरअसल, अतीत में भी यहां के हिंदू समुदाय को यह सब झेलना पड़ा है, लेकिन पांच अगस्त 2024 के बाद से हालात कहीं बुरे है। इस दिन यहां  एक अप्रत्याशित मगर सुनियोजित घटना उपरांत  निर्वाचित सरकार को अपदस्थ कर दिया गया था तब से बांग्लादेश की बागडोर उन हाथों में है जिनका विश्वास लोकतंत्र एवं मानवाधिकार मे कतई नहीं है और जिसका प्रमाण सत्ता प्रायोजित अनवरत् जारी हिंसा और दमन है।

बात तत्कालीन घटना की करें तो यह एक हिंदू साधु चिन्मय कृष्ण दास के गिरफ्तारी से संबंधित है। पहले इन्हें राष्ट्रद्रोह के आरोप मे फिर इनके सहयोगियों को हिरासत में लिया गया है। यहां तक कि जेल में इन साधुओं को बाहर से भोजन उपलब्ध कराने के नाते भी गिरफ्तारियां हुई है, क्योंकि अपने भोजन संबंधित नियमों के नाते ये कुछ भी और कही का भी खाना नहीं खा सकते हैं। इस नाते कई दिन बिना भोजन के भी इन लोगों ने गुजारा है।

बात इनके आंदोलन की करें तो धार्मिक उत्पीड़न और हिंसा का शिकार हिंदू समुदाय अपने एक आठ सूत्री मांग के साथ देशव्यापी प्रदर्शन कर रहा था। इस दौरान पूरे बांग्लादेश में शांतिपूर्ण सभाओं का दौर जारी था। इसी का चेहरा गौड़ीय वैष्णव परंपरा से संबद्ध संस्था इस्कॉन के चटगांव आश्रम प्रमुख साधु चिन्मय प्रभु थे। ऐसे में बजाय अराजक तत्वों पर अंकुश की जगह शासन ने विरोध के स्वर को कुचलने के लिए ये बर्बर कार्यवाही की है।

इधर, रहा सवाल आरोपों का तो ये मसला न्यायालय के विचार का है, लेकन जिस प्रकार से इसे अनावश्यक तूल दिया गया है वो बेहद खतरनाक है। पूरे देश में हिंदू विरोधी हिंसा का माहौल है। इसी क्रम में एक अप्रत्याशित दुखांत घटना भी घटी है। विरोध प्रदर्शनों के बीच एक मुस्लिम वकील की हत्या हो गई,  जिसके उपरांत हिंदू उत्पीड़न का सिलसिला सा पुनः चल पड़ा है और जिसकी परिणति चिन्मय प्रभु के पक्षकार अधिवक्ता के ऊपर आत्मघाती हमला है जिसके उपरांत वो अस्पताल में मौत से जूझ रहे हैं।

यही नही मुस्लिम अधिवक्ता हत्या मे  बिला वजह 70 हिंदू वकीलों को आरोपी बनाया गया है। इस नाते भय के कारण कोई भी वकील इनके लिए न्यायालय में खड़े होने को तैयार नहीं हैं। न्यायालय पर मतांध शासन और मजहबी भीड़ दोनों का दबाब है। इस नाते सुनवाई अब जनवरी मे होनी है। यहां न्याय की मांग कर रहे हिंदुओं पर मतांध मुस्लिम भीड़ का टूट पड़ना अब सामान्य बात है। जबकि आपत्ति व्यक्त करने पर प्रशासन उलटे इन्हीं के साथ जोर जबरदस्ती कर रहा है।
 

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बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के विरोध में सड़क पर उतरी हल्द्वानी की जनता - फोटो : अमर उजाला

बहरहाल,  इस पूरे घटनाक्रम को चटग्राम के हिंदू व्यवसायियों संग पुलिस एवं अर्द्धसैनिक बलों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार से समझा जा सकता है। भय के नाते यहां लोगों ने पुलिस मे मामला तक दर्ज नहीं कराया। इस बीच इस्कॉन जैसे विशुद्ध सेवाभावी अंतराष्ट्रीय आध्यात्मिक संस्था भी इनके निशाने पर है। इसे आतंकी संगठन घोषित करने हेतु प्रचार चलाया जा रहा है।यहां तक की न्यायालय पर अनुचित दबाब तक बनाया जा रहा है। जबकि ये संस्था भेदभाव से रहित निस्वार्थ सेवा और परोपकारी कार्यो के लिए जानी जाती है। ये लोग विभिन्न आपदाओं मे बढ़ चढ़कर राहत कार्यो चलाते रहे हैं। इसके उलट हिंदू युवतियों से दुर्व्यवहार और बलात्कार करने तथा हिंदू परिवार एवं मंदिरों पर हमला करने वालो पर कोई रोक-टोक नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि प्रशासन इस संगठित एवं सुनियोजित अपराध से अवगत् नहीं है। इन्हीं प्रवृतियों के नाते यहां इन दिनों अवयस्क हिंदू लड़कों पर ईशनिंदा के अनुचित आरोप जड़े जा रहे हैं, जिसकी परिणति हर बार जिहादी भीड़ द्वारा पुलिस बल के सामने इनकी नृशंस हत्या के रूप में घटनाएं सामने आ रही है।

दुनियाभर से इस बर्बर पाशविक कृत्य के विरोध में स्वर भी उठ रहे हैं। अमेरिका के विदेश विभाग से लेकर ब्रिटिश संसद और संयुक्त राष्ट्र संघ के पटल तक पर यह चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां तक बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी धुर विरोधी पार्टी बीएनपी के नेता तारिक रहमान ने भी इस पर चिंता व्यक्त की है।

पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का यह पुत्र फिलहाल लंदन मे है। अपने भारत विरोधी विचार और बांग्लादेश के अतिवादी संगठन जमात से निकटता के बावजूद इन्होंने कहा है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो ये सरकार नहीं चलेगी। जबकि भारत मे निर्वासन काट रही शेख हसीना ने इसके लिए सीधे तौर पर चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस को जिम्मेदार ठहराया है। बात पड़ोसी देश भारत की करें तो उसके लिए वाकई यह चिंतापूर्ण स्थिति है। बांग्लादेश संग भारत की सीमा करीब चार हजार छियानवे किलोमीटर लंबी है, जिसका एक बड़ा हिस्सा नदी पहाड़ एवं जंगल के नाते दुर्गम है। इसलिए यहां सीमा पर गश्त एवं सुरक्षा कही मुश्किल है। ऐसे में बांग्लादेश के अंदर अतिवादी इस्लाम का उभार पूरे इस क्षेत्र के लिए एक बड़ी समस्या है।

यही नहीं एक अराजक सरकार का होना और भारत विरोधी शक्तियों का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए परेशानियों का सबब है। यह भारत के आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा संग विकास के लिए भी एक गंभीर खतरा है। भारत ने बांग्लादेश संग आपसी सहमति के आधार पर कई सारी विकास परियोजनाओं को डाला है। ऐसे में हर एक  अधर मे लटकती नजर आ रही है।

इधर, एक तरफ बांग्लादेश के अल्पसंख्यक कातर नजर से भारत की ओर देख रहे हैं, वहीं दुनिया की निगाहों में सर्व शक्तिमान देश अपने पड़ोस में हो रहे इस नरसंहार को कैसे बर्दाश्त कर सकता है। भू-राजनैतिक ही नही सांस्कृतिक तौर पर भी भारत संग बांग्लादेश का रिश्ता गर्भनाल का रहा है। केवल बांग्लादेश का नवनिर्माण ही भारत की देन नहीं है।

सन् 1947 के पूर्व यह भूमि सदैव से भारत का भू-भाग रही है। ऐसे में भारत की आपत्तियां स्वाभाविक है, किंतु बांग्लादेश शासन बजाय परिस्थितियों पर नियंत्रण के जगह लगातार भारत विरोध को स्वर दे रहा है। यहां पाकिस्तान संग परमाणु करार से लेकर सैनिक कार्यवाही द्वारा भारतीय भू-भाग पर कब्जा जैसी बातें भी जोरशोर से हो रही हैं। पूरे देशभर में आए दिन भारत विरोधी रोषपूर्ण प्रदर्शन जारी है।

आवश्यकता इस प्रकरण के यथाशीघ्र पटाक्षेप की है। किंतु बांग्लादेश शासन भारत संग रिश्तों की बेहतरी के कोशिश मे कही दिख नहीं रहा है। इनके द्वारा अल्पसंख्यक हिंदू ,बौद्ध एवं ईसाइयों के दमन पर रोक का प्रयास भी नहीं हो रहा है, जबकि ये आबादी कोई छोटी नहीं है डेढ़ करोड़ से कही अधिक तो केवल यहां हिंदू है। इन सब के बावजूद मोहम्मद यूनुस सरकार पूरी तरह भारत के लिए तल्ख एवं आपत्तिजनक बयान बाजी पर उतारू है, जिसकी तपिश का असर सीमा पर भी दिख रहा है।

यहां बांग्लादेश की ओर से भारतीय सीमा पर सैन्य ड्रोनों को उड़ाया जा रहा है। यही नहीं इनके सैन्यबलों ने भारतीय सीमा में घुसकर एक मंदिर निर्माण को रोकने का भी दुस्साहसपूर्ण कृत्य किया है। ये सभी बातें तनाव को बढ़ाने वाली है। बात भारत की हो तो विपक्षी दल और उसके नेताओं के बयान भी राष्ट्रीय हित में आए हैं। कांग्रेस से लेकर केजरीवाल और ममता बनर्जी से मायावती तक ने इस मुद्दे पर केंद्रीय सरकार से सहमति व्यक्त करते हुए आवश्यक कार्यवाही की बात की है। ऐसे में भारत सरकार को इस विषय को लेकर कोई ठोस रणनीति बनानी होगी।
 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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