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Nikki Murder Case: आखिर निक्की का कातिल कौन?

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: डॉ.दिव्या गुप्ता Updated Wed, 27 Aug 2025 11:54 AM IST
सार

  • Nikki Murder Case: ये तथाकथित माता पिता और प्रति वर्ष राखी बंधवाने वाला, सदैव रक्षा की कसम खाने वाला भाई तब कहां था, जब निक्की पहली बार मार खा के आयी थी। जब निक्की स्वावलम्बी हो ही गई थी, पार्लर का काम करना शुरू कर दिया था तो फिर उस अंधे कुंए में वापस क्यों धकेला गया?

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Nikki Murder Case Domestic Violence Dowry And discrimination against daughters know Reason Why Nikki Died
Nikki Murder Case - फोटो : अमर उजाला
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हम सबने निक्की भाटी की हत्या का वीडियो देखा...

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उसकी पिटाई का वीडियो देखा...
उसके बेटे का ऑन कैमरा बयान सुना...
भाई की मर्सडीज कार देखी...
बिना आंसू बहाय पिता का बयान सुना...
और निहायत बेशर्म, बेहया बदतमीज, मगरूर पति का बयान भी सुना...

टीवी पर फिर अंग्रेजी कपड़े पहनने वाली एंकर्स ने महिला सशक्तिकरण की दुहाई दी और समाज से पूछा... 'आखिर कब बंद होगी ये दरिंदगी?' बिलकुल सही है। निकम्मा, नाकारा पति और निर्लज्ज मां जो स्त्री होते हुए अपनी बेटी समान बहू को पीटती रही। कब बंद होगा ये दहेज के नाम का तांडव?

पर मेरा प्रश्न आज कुछ और है। मेरी नाराजगी सिर्फ और सिर्फ निक्की के माता पिता के साथ है। इस सारे घटना क्रम में, मैं, सिर्फ उनका दोष मानती हूं।

पहली बात, निक्की की बड़ी बहन भी इसी घर में ब्याही थी। क्या उसका पति भी यही व्यवहार करता था? यदि हां, तो छोटी बहन की शादी उसी घर में जानते हुए क्यों की?
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दूसरा, जब दहेज मांगा जा रहा था, तब आपने विरोध क्यों नहीं किया? क्यों अपनी बेटी के सौदे के लिए तैयार हो गए?

क्या निक्की को पता था कि उसका सौदा हो रहा है? यदि हां, तो उसने विरोध क्यों नहीं किया? यदि किया तो उसकी सुनी क्यों नहीं गई?

ये तथाकथित माता पिता और प्रति वर्ष राखी बंधवाने वाला, सदैव रक्षा की कसम खाने वाला भाई तब कहां था, जब निक्की पहली बार मार खा के आयी थी। जब निक्की स्वावलम्बी हो ही गई थी, पार्लर का काम करना शुरू कर दिया था तो फिर उस अंधे कुंए में वापस क्यों धकेला गया?

निक्की पर गुस्सा आता है...

क्यों पहले ही दहेज की मांग पर शादी से इंकार नहीं किया?
क्यों सौदा करावाया अपना?
क्या उसे समझ नहीं थी कि वो मेकअप करवा कर, गहने पहन कर जो दूल्हन के रूप में जा रही है, वो तुझ से नहीं तेरे पिताजी की स्काॅर्पियो से विवाह कर रहे हैं।
जब पहली मार खाई थी तब क्यों नहीं आ गई?
आ ही गई थी तो वापस क्यों गई?
और तो और, दो बच्चे क्यों जन्म दिए?

प्रश्न ये है कि समाज में आज भी माता पिता के लिए किसी भी तरह बेटी को घर से रवाना करना जरूरी है, फिर चाहे वो मार खाए या मर जाए। उसे शिक्षित करना और सर उठा कर जीना कोई सिखाता ही नहीं। स्वाभिमान और अभिमान में अंतर होता है। स्वाभिमान हर व्यक्ति का हर हाल में अधिकार है।

लोग क्या कहेंगे, हमारी बिरादरी क्या कहेगी के मकड़ जाल में जकड़े ये माता पिता कब तक अपनी बेटियों को हैवानों को बेचते रहेंगे। कब तक अपनी बेटियों को स्वाभिमान से जीना नहीं सिखाएंगे। कब उन्हें ये आश्वासन देंगे कि बेटा हम चट्टान की तरह तेरे पीछे खड़े हैं। डोली में गई है, अर्थी पर आना वाली बात अब पुरानी हुई।

ये कहानी एक निक्की की नहीं, अनगिनत बेटियों की है। उन बच्चों की है जिन्होंने अपने मासूम बचपन में देखा कि उनकी माँ को कैसे जलाया गया? 

समाज में परिवर्तन उस ससुराल से नहीं, पहले माता पिता से होगा जो बेटे और बेटी में भेदभाव करते हैं। बेटियों को अपने घर से रवाना करने के लिए दहेज के नाम का सौदा करने को राजी हो जाते हैं। समाज में परिवर्तन चाहते हैं तो, बेटियों को शिक्षित करिए और बेटों को संस्कार दीजिए।


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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