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पर्दे के पीछे क्या है: समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव को क्यों याद आया इंडी गठबंधन?
सार
अखिलेश यादव कह रहे हैं कि उप चुनाव में 80 प्रतिशत सीटें इंडी गठबंधन के दलों ने जीती हैं तो आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। फिर क्यों अखिलेश यादव को इंडी गठबंधन याद आ रहा है?
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सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव।
- फोटो : ANI
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विस्तार
इंडी गठबंधन पिछले एक वर्ष से निष्क्रिय है। न कांग्रेस से इंडी गठबंधन को लेकर आवाज उठ रही है और न किसी अन्य सहयोगी दल से, लेकिन चार राज्यों में विधानसभा के पांच उप चुनावों के नतीजे के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की एक सोशल मीडिया पोस्ट ने फिर से इंडी गठबंधन को लेकर चर्चा छेड़ी है।
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अखिलेश यादव ने अपनी सोशल मीडिया 'एक्स' की पोस्ट में लिखा कि गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल में हुए उप चुनाव में 80 प्रतिशत सीटों पर इंडी गठबंधन से संबद्ध दलों की जीत बता रही है कि भाजपा अपने अंतिम दौर में है। हालांकि, अखिलेश यादव ने यह स्पष्ट नहीं किया कि इंडी गठबंधन में शामिल यह दल आपस में एक-दूसरे से उप चुनाव में क्यों भिड़े हुए थे?
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इसी साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। स्पष्ट है कि मुख्य मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए), जिसमें भाजपा और जनता दल (यू) समेत कुछ छोटे दल शामिल हैं और इंडी गठबंधन, जिसमें मुख्य रूप से राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और अन्य छोटे दल हैं, के बीच होना है। राजद अन्य दलों को बहुत अधिक सीटें देगा, ऐसा अभी से स्पष्ट है।
समाजवादी पार्टी को बिहार में शायद दोहरे आंकड़े में सीट मिल पाएं। अगले साल पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव हैं। तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी एकला चलो की नीति पर शुरू से चल रही हैं। वो इंडी गठबंधन के किसी अन्य दलों को कुछ देंगी, ऐसा लगता नहीं है। पश्चिम बंगाल में ममता का मुकाबला भाजपा के साथ कांग्रेस और वामदलों से भी होना है। हां, अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी जरूर ममता बनर्जी को बाहर से समर्थन दे देगी।
अखिलेश ने क्यों छेड़ा इंडी गठबंधन का राग?
आखिर क्या कारण है कि अखिलेश यादव इंडी गठबंधन के राग को छेड़ रहे हैं। वैसे भी वो इन दिनों उत्तर प्रदेश में अति सक्रिय हैं, क्योंकि वर्ष 2027 में यहां विधानसभा चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव-2024 में समाजवादी पार्टी की स्थिति उत्तर प्रदेश में अच्छी रही थी। समाजवादी पार्टी को यह उम्मीद जागी है कि उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापसी कर सकती है। हालांकि, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में काफी अंतर होता है।
वर्ष 2017 से उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर समाजवादी पार्टी वर्ष 2027 में मौका नहीं चूकना चाहती। अखिलेश यादव अपना सबकुछ दांव पर लगा देना चाहते हैं। यही कारण कि वह लखनऊ और उत्तर प्रदेश के बाकी जिलों में सक्रिय बने हुए हैं।
वर्ष 2027 में अखिलेश यादव इंडी गठबंधन के दूसरे दलों को ज्यादा सीटें देंगे, ऐसा भी नहीं होने वाला है। यह भी संभव है कि कांग्रेस, जो उत्तर प्रदेश में फिर से जमीन तलाश रही है, वो अलग राह पकड़ ले।
अब उप चुनाव की 5 सीटों की बात कर लेते हैं। गुजरात की जिन दो सीटों पर उप चुनाव हुआ, उसमें से एक गुजरात की विसावदर सीट आम आदमी पार्टी के पास ही थी। उसके विधायक के भाजपा में शामिल होने के बाद यह सीट खाली हो गई थी। उप चुनाव में आम आदमी पार्टी के ही ईटालीया गोपाल की जीत हुई है। विसावदर सीट पर कांग्रेस का प्रत्याशी भी खड़ा था, जो तीसरे नंबर पर रहा। गुजरात की दूसरी सीट कडी, जो भाजपा के पास थी और अब फिर भाजपा ने जीती है, यहां भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी आमने-सामने खड़े थे।
केरल की नीलम्बूर सीट, जहां कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला हुआ। कांग्रेस ने यह सीट कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ पार्टी से छिन ली है। पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच के मुख्य मुकाबला था। यह सीट पहले आम आदमी पार्टी के पास थी और उसने फिर जीत ली। पश्चिम बंगाल की कालीगंज सीट भी तृणमूल कांग्रेस के पास थी। यहां के विधायक के निधन के बाद उनकी बेटी को तृणमूल कांग्रेस ने टिकट दिया, वही जीती भी।
जैसा अखिलेश यादव कह रहे हैं कि उप चुनाव में 80 प्रतिशत सीटें इंडी गठबंधन के दलों ने जीती हैं तो आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। फिर क्यों अखिलेश यादव को इंडी गठबंधन याद आ रहा है? यह भी सत्य है कि जिस तरह से कांग्रेस उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में अपनी खोई जमीन को पुनः हासिल करने के लिए सक्रिय है, उससे इंडी गठबंधन के अन्य दल निश्चित रूप से असहज हो सकते हैं।
यह सभी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में एकजुट हुआ हैं, लेकिन अपने निजी स्वार्थ को छोड़ना इनके लिए आसान नहीं है। भविष्य में यह दल एकजुट होंगे, यह कहना भी मुश्किल है।
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