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यूनुस का दांव: यूएनजीए से इतर सार्क के पुनरुद्धार का जिक्र, सर्जियो गोर ने खास तवज्जो नहीं दी, मंशा का पता...

अमर उजाला Published by: दीपक कुमार शर्मा Updated Thu, 25 Sep 2025 06:52 AM IST
सार
यूएन महासभा के इतर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने सार्क के पुनरुद्धार के मुद्दे का जो दांव खेला, उस पर भारत में अमेरिका के मनोनीत राजदूत सर्जियो गोर ने भले खास तवज्जो न दी हो, लेकिन इससे यूनुस की मंशा का तो पता चलता ही है।
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Bangladesh Interim Govt head Yunus Sergio Gor meeting revival of SAARC on sidelines of UNGA motive clear
भारत में अमेरिका के मनोनीत राजदूत सर्जियो गोर के साथ मोहम्मद यूनुस - फोटो : X@ChiefAdviserGoB

विस्तार
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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस का संयुक्त राष्ट्र महासभा के इतर भारत में अमेरिका के मनोनीत राजदूत सर्जियो गोर के समक्ष सार्क के पुनरुद्धार का मुद्दा उठाना नाहक विवाद पैदा करने की उनकी आदत को ही दर्शाता है। गोर, जो दक्षिण और मध्य एशिया के लिए अमेरिका के विशेष दूत भी नियुक्त किए गए हैं, से मुलाकात के दौरान यूनुस यह तक बोल गए कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार सार्क को फिर से ताकतवर बनाने की दिशा में तेज प्रयास कर रही है।



बांग्लादेश में छात्र आंदोलन के बहाने हुए तख्तापलट के बाद से वहां के हालात को जिस अकुशलता के साथ यूनुस ने संभाला है, उसे देखते हुए गोर के सामने उन्होंने जो भी बोला, वह बड़बोलापन ही कहा जाएगा। मजे की बात यह है कि इस मुलाकात का विवरण जो अमेरिका की तरफ से जारी किया गया है, उसमें सार्क का उल्लेख भी नहीं है। उल्लेखनीय है कि सार्क शिखर सम्मेलन हर दो साल में आयोजित किया जाता है, लेकिन 2014 में काठमांडो में हुए शिखर सम्मेलन के बाद से यह स्थगित है।


दरअसल, 2016 में सार्क की मेजबानी पाकिस्तान को करनी थी, लेकिन उरी आतंकवादी हमले के कारण उस शिखर सम्मेलन पर रोक लग गई। हालांकि, पाकिस्तान की तमाम उकसाने वाली हरकतों के बावजूद भारत ने इस संगठन से खुद को अलग नहीं किया है और विभिन्न क्षेत्रों में सार्क की गतिविधियों का समर्थन करना भी जारी रखा है। दरअसल, जब किसी देश की हैसियत बढ़ने लगती है, तो साथ के छोटे देश इसे संकट की तरह देखते हैं। लेकिन ऐसा सोचने वाला बांग्लादेश अकेला नहीं है। अमेरिकी टैरिफ के तूफान के बावजूद तमाम अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने तो भारत की विकास दर पर भरोसा जताया ही है, हाल ही में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने भी मौजूदा वित्त वर्ष के लिए भारत की वृद्धि का अनुमान 40 आधार अंक बढ़ाकर 6.7 फीसदी कर दिया है, जो समग्र अर्थव्यवस्था के लिए आश्वस्त करने वाली खबर है। लेकिन इन शुभ संकेतों के बीच भारत के लिए उन शक्तियों पर नजर रखना भी महत्वपूर्ण है, जो हरदम उस पर दबाव बनाने की ताक में बैठी हैं।

एक तरफ अमेरिका है, जो मनमाने टैरिफ से भारत पर दबाव बना रहा है, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान-चीन और बांग्लादेश के त्रिकोण पर भी भारत की नजर होगी। ऐसे में, जरूरी है कि भारत बाहरी दबावों के प्रति सतर्क रहते हुए अपनी नीतिगत प्राथमिकताओं पर अडिग रहे। जहां तक बात सार्क के पुनरुद्धार की है, तो यह महाशक्तियों के दबाव से नहीं, बल्कि तभी संभव है, जब सभी सदस्य देश क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए सही मायनों में प्रतिबद्ध हों।   

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