{"_id":"692504df52551f06530df3aa","slug":"claims-of-record-reduction-in-inflation-but-reality-is-low-income-and-high-expenses-2025-11-25","type":"story","status":"publish","title_hn":"महंगाई में रिकॉर्ड कमी का दावा, लेकिन हकीकत आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया","category":{"title":"Opinion","title_hn":"विचार","slug":"opinion"}}
महंगाई में रिकॉर्ड कमी का दावा, लेकिन हकीकत आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया
निरंतर एक्सेस के लिए सब्सक्राइब करें
सार
विज्ञापन
आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ सब्सक्राइब्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
फ्री ई-पेपर
सभी विशेष आलेख
सीमित विज्ञापन
सब्सक्राइब करें
सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट में महंगाई में रिकॉर्ड कमी का दावा
- फोटो :
अमर उजाला प्रिंट
विस्तार
हाल ही में, भारत के सांख्यिकी मंत्रालय ने बताया कि अक्तूबर में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति गिरकर 0.25 प्रतिशत पर आ गई है, जो जनवरी 2012 के बाद सबसे कम है। दरअसल, इस महीने खाद्य मुद्रास्फीति घटकर -5.02 प्रतिशत रह गई। कीमतों में यह गिरावट आधार प्रभाव से और भी बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, अक्तूबर 2024 में खाद्य महंगाई 9.7 प्रतिशत थी, जिससे अक्तूबर 2025 की तुलना का प्रभाव बदल जाता है। सच्चाई तो यह है कि न हर चीज सस्ती हुई है और न ही हर जगह दाम घटे हैं। तेल में 11.1 फीसदी, पर्सनल केयर में 23.8 फीसदी और फलों में 6.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। केरल में सीपीआई 8.5 फीसदी है। दिलचस्प बात यह है कि यह विपक्षी शासित राज्यों कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और तमिलनाडु में राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है। कृषि प्रधान और कम शहरीकृत राज्यों में मुद्रास्फीति भी राष्ट्रीय औसत से कम देखी जा रही है। बिहार में मुद्रास्फीति सबसे निचले स्तर पर है, जो -1.97 फीसदी है। उसके बाद उत्तर प्रदेश में -1.71 फीसदी, मध्य प्रदेश में -1.62 फीसदी, असम में -1.5 फीसदी, ओडिशा में -1.39 फीसदी और छत्तीसगढ़ में -1.2 फीसदी है। सवाल यह है कि क्या इन राज्यों के लोग (खासकर बिहार में, जहां ‘महंगाई’ चुनाव में एक बड़ा मुद्दा थी) दिखावे पर यकीन करते हैं या अच्छा महसूस करते हैं।एच जी वेल्स के शब्दों में, हालांकि घरेलू लोगों के लिए कम मुद्रास्फीति के दावे उतने ही बेतुके लगते हैं, जितना कि यह कहना कि ठोस धरती तरल थी। यह निराशावाद वैश्विक है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति लगभग 2.2 प्रतिशत (और चीन में 0.2 फीसदी) के निचले स्तर पर चल रही है। फिर भी, मुद्रास्फीति में गिरावट की खबरों पर जनता की प्रतिक्रिया उसे खारिज करने से लेकर एक ईमानदार सवाल तक होती है: महंगाई कम होती दिखती क्यों नहीं? यह राजनीतिक अर्थ-भ्रम की बात है। राजनेता ब्याज दरों में गिरावट को कीमतों में गिरावट के रूप में प्रस्तुत करने में तत्पर रहते हैं। फिर यह तथ्य भी है कि कीमतों में वृद्धि की दर भले ही धीमी हो, लेकिन घरेलू उपभोग की वस्तुओं की कुल कीमतें ऐतिहासिक शिखर पर हैं। कम मुद्रास्फीति के आभास ने बढ़ती महंगाई पर वैश्विक आक्रोश को और भड़का दिया है।
कुछ दिनों पहले, ट्रंप ने टैरिफ की आलोचना करने वालों को मूर्ख कहकर उनका मजाक उड़ाया और अमेरिकी परिवारों को 2,000 डॉलर का लाभांश देने की घोषणा की। उन्होंने बीफ, केला, कोको, कॉफी, टमाटर, चाय और एवोकाडो पर हर देश पर लगाए गए टैरिफ वापस ले लिए। ट्रंप की रेटिंग गिरकर 36 फीसदी पर आ गई है, ऐसे में सबसे जरूरी बात है खर्च करने की क्षमता। मौसमी राजनीतिक फैसले लेने की प्रथा सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं है। भारत में, बिहार चुनाव व दिवाली से ठीक पहले जीएसटी दरों में कटौती की गई थी। हर चुनाव नकद लाभ हस्तांतरण के कारवां के साथ आता है। योजनाएं हमेशा चुनावों का इंतजार नहीं करतीं, बल्कि बीच में भी आ सकती हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राशन कार्डधारकों को रियायती दामों पर दालें, चीनी व नमक उपलब्ध कराने के लिए एक नई योजना शुरू की। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता 25 दिसंबर को सौ अटल कैंटीन का शुभारंभ करेंगी, जिसमें पांच रुपये में भोजन मिलेगा।
जीवनयापन की लागत को लेकर गुस्सा दुनिया भर में दिखाई दे रहा है। अमेरिका के हालिया चुनावों में रिपब्लिकन डेमोक्रेट्स से हार गए हैं। पूंजीवाद की राजधानी और वॉल स्ट्रीट के केंद्र न्यूयॉर्क ने समाजवादी जोहरान ममदानी को चुना है, जो किराया स्थिर रखने का वादा करते हैं। इस नाराजगी को कम करने के लिए ट्रंप ने 50 साल के बंधक का विचार पेश किया है। ब्रिटेन में, कीर स्टार्मर के नेतृत्व वाली लेबर सरकार आंतरिक गृहयुद्ध और निगेल फराज की रिफॉर्म पार्टी के उदय का सामना कर रही है। भयभीत स्टार्मर और चांसलर रेचेल रीव्स कल्याणकारी योजनाओं के लिए धन जुटाने हेतु अमीरों पर कर बढ़ाने की तैयारी में हैं। फ्रांस में, प्रधानमंत्री लेकोर्नू ने राष्ट्रपति मैक्रों की विवादास्पद पेंशन सुधार योजना को बंद कर दिया। जर्मनी में, ओलाफ सोल्ज को भी जीवनयापन की बढ़ती लागत को लेकर जनता का आक्रोश सहना पड़ रहा है। जापान में, प्रधानमंत्री साने ताकाइची के नेतृत्व वाली नई सरकार द्वारा 14 खरब येन से अधिक के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा किए जाने की उम्मीद है, ताकि परिवारों को नुकसान कम हो। जीवनयापन की लागत का संकट मजदूरी और मुद्रास्फीति के समीकरण से बढ़ रहा है।
हालांकि, 2022 से मजदूरी में सुधार हुआ है, लेकिन वास्तविक मजदूरी में कोई सुधार नहीं हुआ है, क्योंकि मुद्रास्फीति ने क्रय शक्ति को कम कर दिया है। व्हाइट हाउस के अनुसार, बाइडन शासन में श्रमिकों की क्रय शक्ति में 2,900 डॉलर से ज्यादा की कमी आई थी। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) से जुड़ी अर्थव्यवस्थाओं में वास्तविक मजदूरी 2021 के स्तर से नीचे बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा तैयार व्यापक नमूने में, न्यूनतम मजदूरी मुद्रास्फीति से नीचे बनी हुई है। 160 में से 70 से अधिक देशों में वास्तविक मजदूरी वृद्धि नकारात्मक है। 2025 के जी-20 दस्तावेज के अनुसार, विषम वितरण के कारण, शीर्ष व निचले 10 फीसदी के बीच का अंतर भारत और इंडोनेशिया में सबसे ज्यादा है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में श्रम का हिस्सा घटकर 52.3 प्रतिशत रह गया है और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में तो और भी कम है। भारत में, मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा कि 'कर्मचारियों के वेतन में कॉरपोरेट मुनाफे के अनुरूप वृद्धि नहीं हुई है', जो कि नई ऊंचाइयों पर है। उन्होंने चेतावनी दी कि इसका असर कर्मचारियों पर पड़ेगा, क्योंकि इससे खपत कम हो जाएगी।
चाहे जो भी हो, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, मेक्सिको और अमेरिका में श्रमिकों की आय में हिस्सेदारी घट रही है। लोकतांत्रिक देशों में सरकारें इस प्रभाव को कम करने के लिए कदम उठा रही हैं। इससे घाटा बढ़ गया है-ओईसीडी के 31 देश घाटे में हैं और केवल छह के पास अधिशेष है। जी-7 देशों में से पांच राजकोषीय घाटे में हैं, जिनमें अमेरिका सात प्रतिशत और 370.64 खरब डॉलर (जीडीपी का 125 प्रतिशत) ऋण के साथ सबसे ऊपर है। भारत में, चुनावी रियायतों के विस्तार ने राज्यों के घाटे और कर्ज को बढ़ा दिया है। आईएमएफ ने पहले ही कहा है कि वैश्विक कर्ज, जो अब 1,110 खरब डॉलर पर है, असहनीय है। ट्रंप बढ़ते घाटे के बावजूद टैरिफ नियंत्रण जारी रखना चाहते हैं, और फेडरल रिजर्व से ब्याज दरों में कटौती करने के लिए कह रहे हैं। वैश्विक सरकारें एक दुविधा का सामना कर रही हैं। नौकरियों और आय वृद्धि के बिना, जीवनयापन की लागत को कम करने के उपाय कर्ज के बोझ और जीवनयापन की लागत को भी बढ़ा रहे हैं। edit@amarujala.com