{"_id":"692500a1b3ef678a2500d6e7","slug":"four-new-labor-codes-implemented-but-not-in-long-term-interest-of-workers-2025-11-25","type":"story","status":"publish","title_hn":"मुद्दा: चार नई श्रम संहिताएं लागू, लेकिन मजदूरों के दूरगामी हित में नहीं","category":{"title":"Opinion","title_hn":"विचार","slug":"opinion"}}
मुद्दा: चार नई श्रम संहिताएं लागू, लेकिन मजदूरों के दूरगामी हित में नहीं
निरंतर एक्सेस के लिए सब्सक्राइब करें
सार
विज्ञापन
आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ सब्सक्राइब्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
फ्री ई-पेपर
सभी विशेष आलेख
सीमित विज्ञापन
सब्सक्राइब करें
अधिकतर मजदूर संगठनों का मानना है कि नई श्रम संहिता श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है
- फोटो :
अमर उजाला प्रिंट
विस्तार
हाल ही में केंद्र सरकार ने पुराने श्रम कानूनों की जगह चार नई श्रम संहिताएं लागू करने की घोषणा की है, जिनमें वेतन संहिता, 2019, औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य व कार्य शर्त संहिता, 2020 शामिल हैं। सरकार इसे आजादी के बाद मजदूरों के लिए सबसे बड़े और प्रगतिशील सुधारों में से एक मान रही है। सरकार का दावा है कि इससे मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी की गारंटी मिलेगी और हर पांच साल में इसकी समीक्षा की जाएगी। यही नहीं, श्रमिकों को समय पर वेतन की गारंटी दी जाएगी तथा महिला व पुरुषों को समान वेतन मिलेगा। लेकिन अधिकतर मजदूर संगठनों का मानना है कि नई श्रम संहिता श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है।वास्तव में, सरकार ने सुधार के नाम पर जो किया है, वह सुधार नहीं है, बल्कि कमजोर श्रमिकों को एक तरह से मालिकों (नियोक्ताओं) की दया पर छोड़ दिया है। हमारे देश में संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों को मिलाकर 50 करोड़ से अधिक कामगार काम करते हैं। इनमें से लगभग 90 फीसदी असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं। ये चारों श्रम संहिताएं इन सभी पर लागू होंगी। सरकार को नए कानून में अस्थायी कामगार को स्थायी कामगार बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए, लेकिन उसने किया यह है कि उन्हें स्थायी तौर पर अस्थायी कामगार ही बने रहने का प्रावधान कर दिया है। इसे एक उदाहरण से समझिए कि सरकार रेलवे में स्थायी व अस्थायी तौर पर कामगारों को नियुक्त करती है। रेलवे में कुछ वर्षों तक अस्थायी तौर पर काम करने के बाद उन्हें स्थायी करने का प्रावधान था, लेकिन नए कानून में उन कामगारों को स्थायी करने का प्रावधान ही खत्म कर दिया गया है। सरकार का यह भी दावा है कि इसमें पहली बार सीमित समय के लिए ठेके पर काम करने वाले गिग वर्कर्स को भी शामिल किया गया है और उनके हित में कई प्रावधान लाए गए हैं। यह अच्छी बात है कि सरकार ने गिग वर्कर्स की सुविधा का प्रावधान किया है, लेकिन उन्हें वे सुविधाएं तो उपभोक्ता देंगे। उसमें सरकार की भूमिका क्या है?
यह ठीक है कि महिला कामगारों को भी अब समान काम के लिए समान वेतन देने का प्रावधान किया गया है, लेकिन नए कानून के तहत अब रात में भी महिलाओं से काम कराया जा सकेगा, जो कि पहले संभव नहीं था। हालांकि, इसके लिए नियोक्ताओं को महिलाओं से सहमति लेनी होगी। इसके अलावा, सरकार ने फैक्टरी एक्ट कानून में भी बदलाव किया है। जैसे-पहले किसी फैक्टरी में 15-20 कर्मचारी काम करते थे, तो उस पर फैक्टरी एक्ट लागू होता था, लेकिन अब उसकी संख्या बढ़ाकर सौ कर दी गई है। ऐसे में, बहुत-सी छोटी फैक्टरियां उसके दायरे से बाहर हो जाएंगी, ऐसे में श्रमिकों का अधिकार कहां रहेगा? मौजूदा कानून के तहत, यदि किसी फैक्टरी में 100 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं, तो उसे बंद करने के लिए सरकार की मंजूरी लेनी जरूरी होती थी, जबकि नए कोड में यह संख्या 300 कर दी गई है, यानी यदि किसी फैक्टरी में 300 से कम कामगार काम कर रहे हों, तो उसे बंद करने के लिए सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। इसलिए भले ही इसे सरकार श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर लागू कर रही है, लेकिन नए कानून मजदूरों के दूरगामी हित में नहीं हैं। यदि सरकार का ऐसा दावा है, तो उसे मजदूर संगठनों से बात करनी चाहिए और पूछना चाहिए कि आपकी आपत्ति कहां पर है। इसके अलावा, देश में जितने भी मजदूर संगठन हैं, वे संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के हैं। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का तो कोई संगठन है ही नहीं। ऐसे में, सरकार को संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों के श्रमिक प्रतिनिधियों के साथ बात करनी चाहिए। सर्वाधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं और सबसे ज्यादा कठिनाई भी इन्हें ही होती है।
यह कानून असल में उद्योग जगत को फायदा पहुंचाने के लिए है, श्रमिक वर्ग को इससे बहुत फायदा नहीं होने वाला है। आउटसोर्सिंग किए जाने वाले श्रमिकों के लिए कोई ज्यादा सुविधाजनक प्रावधान नहीं किया गया है। मसलन, विभिन्न दफ्तरों, कोठियों, अपार्टमेंटों में ठेकेदारों के माध्यम से ठेके पर सिक्योरिटी गार्ड रखे जाते हैं। उनसे जितने वेतन पर हस्ताक्षर करवाया जाता है, उतना वेतन वास्तव में उन्हें नहीं मिलता है। ऐसे श्रमिकों के हित के लिए नए कानून में क्या प्रावधान हैं।
असल में नए श्रम कानून से नियोक्ताओं के लिए श्रमिकों को नौकरी से निकालना तो आसान हो ही जाएगा, मालिकों के लिए फैक्टरी को बंद करना भी काफी आसान हो जाएगा। इससे श्रमिकों के लिए मजदूर संगठन बनाना व हड़ताल करना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए सरकार को पहले देश के संगठित एवं असंगठित मजदूर प्रतिनिधियों से चर्चा करके राष्ट्रीय विमर्श चलाना चाहिए, ताकि देश की भावनाओं का समावेश हो सके।