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सेना है, तो भरोसा है: राष्ट्र को सामूहिक रूप से सैनिकों का ख्याल रखना चाहिए, उन लोगों के लिए हृदय से प्रार्थना

Virendar Kapoor वीरेंदर कपूर
Updated Wed, 15 Jan 2025 06:34 AM IST
सार
जिस तरह दुनिया अराजकता का जश्न मना रही है, हथियारों की मारक क्षमता बढ़ाई जा रही है, और जो अब तक भारतीयों के लिए ‘बहुत दूर की बात’ थी, पर अब पड़ोसी देशों के हालात देखते हुए हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है, उससे पूरब को बचाने की जो शंकाएं हैं, उनको लेकर आश्वस्त सेना ही कर सकती है।
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Indian army behind trust nation should collectively take care of soldiers heartfelt prayers for them
भारतीय सेना के जवान - फोटो : अमर उजाला / एजेंसी

विस्तार
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आज सेना दिवस के मौके पर नॉर्मन श्वार्जकोफ की एक प्रसिद्ध उक्ति ध्यान देने योग्य है- ‘जवानों को युद्ध में जाने का आदेश देने के लिए किसी नायक की जरूरत नहीं होती। युद्ध में जाने वालों में से एक बनने के लिए नायक की आवश्यकता होती है।’ भारत में अपना बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली संस्थाओं में सेना निस्संदेह अव्वल होगी, जिसमें थल सेना, नौसेना और वायु सेना शामिल है।



 यह पूरी तरह से गैर-राजनीतिक है। हालांकि हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व कई मौकों पर इस स्तर पर खरा नहीं उतरा। कई दफे, गौरव और देशभक्ति पर गर्व करने वाली इस विशिष्ट संस्था को बदनाम करने की कोशिश की गई और दबाव भी डाला गया। कई बार उन्हें अनुचित व्यवहार का भी सामना करना पड़ा। जब कश्मीर में उन पर हर रोज पत्थर फेंके जाते थे, तब भी उन्हें जवाबी कार्रवाई की छूट नहीं थी, बल्कि कहें कि उनके हाथ बंधे हुए थे। भारतीय सेना की ताकत या कमजोरी यही है कि यह बहुत ज्यादा आज्ञाकारी है। राजनेताओं और नौकरशाहों ने उनकी इस भलमनसाहत का फायदा उठाया है और कई मौकों पर उन्हें हल्के में लिया है। मगर आज भी यदि आप किसी भी रंग, जाति या धर्म के भारतीय से पूछें, तो वे बिना शर्त इस बेहतरीन संगठन पर भरोसा करते हैं। सशस्त्र बल किसी भी स्थिति, चाहे वह मानव निर्मित हो या प्राकृतिक आपदा, में तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं। वे भरोसेमंद हैं और कार्रवाई के लिए बुलाए जाने पर तुरंत मौके पर पहुंचते हैं, जबकि अन्य वर्दीधारी संगठनों पर कुछ मामलों में सुस्ती के आरोप लगते रहे हैं।


हाल में हमारी अपनी राजनीतिक व्यवस्था ने अपने ही ‘रक्षकों’ में असंतोष के बीज बोने की कोशिश की है। ‘अग्निवीर’ जैसी अच्छी पहल का मजाक उड़ाकर विविधता में एकता के मूल तत्व पर संदेह किया गया। कल्पना कीजिए कि कोई तथाकथित जिम्मेदार व्यक्ति यह कहे कि 'देश में दो तरह के जवान बनाए गए हैं। एक गरीब, दलित, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक समुदाय का बेटा है और दूसरा अमीर परिवार का बेटा है। गरीब परिवार के बेटे को नया नाम दिया गया है: अग्निवीर।' एक अच्छे, पूरी तरह से भरोसेमंद संगठन को नीचा दिखाने के लिए इससे ज्यादा अपमानजनक कुछ नहीं हो सकता। यह स्पष्ट रूप से देशभक्तिहीन आचरण है, जो किसी भी हिंदुस्तानी के लिए अनुचित है। मत भूलिए कि जब वे (दुश्मन) आते हैं, तो सत्ताधारी दल या विपक्ष को नहीं देखते-वे सबको कुचल देते हैं। इसलिए हिम्मत रखिए और कभी भी वर्दीधारी बिरादरी का अपमान मत कीजिए। निक लैम्पसन ने कहा है, 'अपने देश के लिए अपनी जान जोखिम में डालने से बढ़कर कोई महान कार्य नहीं है।'

ऐसा लगता है कि दुनिया अराजकता का जश्न मना रही है। कोई नहीं जानता कि कौन किससे और क्यों लड़ रहा है, लेकिन वे लड़ रहे हैं। हथियारों की मारक क्षमता पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। दुनिया खुद को खत्म कर रही है, दिन-ब-दिन हजारों लोग मर रहे हैं।

गाजा और यूक्रेन में चल रहे युद्धों को आप ऐसे देख रहे हैं, मानो वीडियो गेम देख रहे हों! आप चैनल बदलते हैं और देखते हैं कि इमारतें ढह रही हैं, पुल उड़ रहे हैं, शरीर के अंग इधर-उधर उड़ रहे हैं, जैसे कि हॉलीवुड की कोई फिल्म हो! लेकिन रुकिए-यह सब सच है। शुक्र है कि आप अपने टीवी पर लाशों की बदबू नहीं सूंघ सकते। भूत भी ऐसी स्थिति में होने से डरेंगे। अब तक भारतीयों के लिए यह ‘बहुत दूर की बात’ थी। पर अब यह आपके दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। वह संकेत दे रहा है कि चक्रवात की तरह आ सकता है, जिसका पूर्वानुमान मौसम विभाग भी नहीं लगा सकता। जिस बांग्लादेश को हमने आजाद कराया, उसने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है और उसकी कीमत हम भारतीयों को चुकानी पड़ सकती है। पूरब को कौन बचाएगा? यह काम तो हमारी सशस्त्र बल यानी सेना ही कर सकती है। सबसे खतरनाक लोग तो हमारे देश के भीतर ही हैं, जो थोड़े से डॉलर के लिए अपनी मातृभूमि को बेच देंगे। पेड़ की हर शाख पर उल्लू की तरह बैठे अवसरवादी उन गिद्धों की तरह हैं, जो लाशें गिरने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, ताकि वे दावत कर सकें और ये लाशें हमारी आपकी होंगी, जिन्हें वे नोच खाएंगे।

हर नागरिक को यह समझना चाहिए कि हमारे देश के साथ-साथ पूरी दुनिया बहुत मुश्किल दौर से गुजर रही है। जब कोई व्यापारी या फिल्म स्टार अमीर और मशहूर हो जाता है, तो उसे धमकियां मिलने लगती हैं और फिरौती के लिए फोन आने लगते हैं। भारत भी इसी तरह की सफलता और प्रसिद्धि की राह पर है। इसलिए, हैरानी नहीं कि इस प्रगति से ईर्ष्या करने वाले लोग हमें परेशान कर रहे हैं। दुर्भाग्य से, बाहरी ताकतों का काम आसान बनाने के लिए देश में पर्याप्त दगाबाज किस्म के लोग हैं। जबकि प्रशासन द्वार पर दुश्मन से लड़ रहा है, हर देशभक्त भारतीय को ‘अंदर के गद्दारों’ की पहचान करने और उन्हें बाहर निकालने के लिए सतर्क रहने की जरूरत है।

याद रखें, यदि हमारा देश आसपास के कई देशों की तरह अस्थिर हो जाता है, तो हमारी संपत्ति, सोना, बचत, स्टॉक, हीरे, कार और बॉन्ड एक बड़े शून्य में बदल जाएंगे। राष्ट्र पहले आता है, क्योंकि आपको राष्ट्र की आवश्यकता उससे कहीं अधिक है, जितनी राष्ट्र को आपकी आवश्यकता है। याद रखिए, 10 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हैं और तीन करोड़ शरणार्थी हैं, जो दुनिया भर के 170 देशों में शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, आज दुनिया में हर 125 लोगों में से एक शरणार्थी है। इन शिविरों में जीवन बहुत बुरा है, नरक के करीब।

यदि आप नहीं चाहते कि आप किसी तंबू या मलबे में दबे रहें और अगले दिन अपने लिए सूर्योदय की प्रार्थना करते रहें, तो अपने देश को बचाने के लिए कड़ी मेहनत और प्रार्थना करें। भारत के लिए पश्चिम, पूर्व और उत्तर में समस्याएं हैं और हमारे पास अतीत की विरासत है, जो हमारी संस्कृति और अस्तित्व पर भीतर से बोझ डाल रही है। सत्ता में बैठे लोगों की आलोचना करने के बजाय समर्थन देकर समाधान का हिस्सा बनें। अंत में, सबसे महत्वपूर्ण बात कि अपने सैनिकों का सम्मान करें। राष्ट्र को सामूहिक रूप से उन लोगों का ख्याल रखना चाहिए, जो स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। वे आपके कल के लिए अपना आज न्योछावर कर रहे हैं। उन लोगों के लिए हृदय से प्रार्थना करें, जो आपके लिए लड़ते हैं। हो सकता है, कल यह मौका न मिले।

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