Zara Hatke Zara Bachke Review: सरकारी योजनाओं में धांधली की पोल खोलती फिल्म, लक्ष्मण उतेकर की हिम्मत को सलाम


विकी कौशल और सारा अली खान फिल्म ‘जरा हटके जरा बचके’ के जोड़ीदार हैं। दोनों की बतौर लीड कलाकार पिछली फिल्में सिनेमाघरों में तीन साल पहले एक हफ्ते के अंतराल पर रिलीज हुईं। ‘भूत पार्ट वन द हॉन्टेड शिप’ और ‘लव आजकल’ का बॉक्स ऑफिस पर हश्र एक जैसा ही रहा। इसके बाद विकी की दो और सारा की तीन फिल्में सीधे ओटीटी पर रिलीज हो चुकी हैं। दोनों के पिता फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अपनी जगह अब भी दमदार तरीके से टिके हुए हैं और इन दोनों को हिंदी सिनेमा में टिकाए रखने की जिम्मेदारी भी सिनेमा के दिग्गजों ने ले रखी है। इस लिहाज से दोनों के लिए फिल्म ‘जरा हटके जरा बचके’ किसी लिटमस टेस्ट के कम नहीं है। अपने प्रचार के दौरान इन दोनों ने जाहिर यही करने की कोशिश की कि ये फिल्म एक प्रेम कहानी है लेकिन लक्ष्मण उतेकर ने असल में क्या बनाया है, इस पर फिल्म के पूरे प्रचार के दौरान परदा ही डाले रखा गया।
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विकी कौशल का किरदार उनकी ओटीटी पर रिलीज पिछली फिल्म ‘गोविंदा नाम मेरा’ का ही एक्सटेंशन नजर आता है। जनेऊ पहनकर गुसलखाने में नहाते विकी कौशल का शरीर सौष्ठव उनके कुछ बड़ा एक्शन फिल्म में कराएगा, ऐसा आभास लक्ष्मण उतेकर एक दो बार देते हैं, लेकिन ऐसा कुछ कहीं खास होता नहीं है। फिल्म की कहानी का सारा एक्शन सारा अली खान के पास है और विकी कौशल की भूमिका बस उनके सामने एक सहायक कलाकार जैसी है। पूरी फिल्म में हीरो जैसा अगर वह कुछ करते हैं तो वह है सरकारी आवास योजना में अपनी पूर्व पत्नी को मिले मकान को सोसाइटी के चौकीदार को सौंप देने का। और, तरस आता है फिल्म के लेखकों पर जिन्हें ये नहीं पता कि किसी भी सरकारी आवास योजना में मिला मकान लाभार्थी यूं ही किसी और को नहीं दे सकता। उसके हाउस लोन की ईएमआई किसी और से भरवाना तो बहुत दूर की बात है। आकाश खुराना, राकेश बेदी और नीरज सूद पुरुष टीम की तरफ से बैटिंग करने वाले काबिल सितारे हैं। खासतौर से घर जमाई बनकर रह रहे अपने किरदार में पत्नी के अस्पताल में भर्ती होने के बाद वाले दृश्य में नीरज सूद ने फिल्म को जबर्दस्त भावुक सहारा दिया है। लेकिन, फिल्म में सबसे ज्यादा ध्यान खींचने अभिनय अगर किसी कलाकार ने किया है तो वह हैं इनामुल हक। दिन में चपरासी बनने और रात में चांदी काटने वाले किरदार में इनामुल ने फिल्म ‘जॉली एलएलबी 2’ के बाद फिर प्रभावित किया है।
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लक्ष्मण उतेकर को ये फिल्म बनाने के लिए सलाम करने को मन करता है। गिनती के लोग बचे हैं सिनेमा में जो वर्तमान पर नजर बनाए हुए हैं और बजाय किसी पूर्वाग्रह के सीधे एक घटना को निष्पक्ष नजरिये से पेश करने की कोशिश करते हैं। कहानी उनकी अच्छी है। पटकथा बेहतर है और इंदौरी लहजे के कलाकारों के संवाद बहुत ही बढ़िया हैं। हां, फिल्म खटकती है उन छोटी छोटी गलतियों और लंबे लंबे दृश्यों की वजह से जो सिर्फ फिल्म की लंबाई बढ़ाने के लिए लिख दिए गए हैं। और, ये कमी बतौर कप्तान उनकी ही मानी जाएगी। कहानी पर 90 मिनट की फिल्म शानदार बनती और बिना इंटरवल ऐसी किसी फिल्म को देखने दर्शक भी सिनेमाघर में खूब आते। बेमतलब के दृश्यों और अटपटे संवादों ने फिल्म का मजा किरकिरा कर दिया है क्योंकि इनके चलते फिल्म न तो पूरी तरह से कॉमेडी फिल्म बन पाती है और जिस लव स्टोरी के तौर पर इसका प्रचार किया गया, उस पर यह खरी उतरती नहीं है। राघव रामदॉस की सिनेमैटोग्राफी ने फिल्म को इंदौर की टूरिज्म फिल्म बनाने में कसर नहीं छोड़ी है अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे और सचिन जिगर के संगीतबद्ध किए गाने बेहतर हैं। खास तौर से अरिजीत का गाया गाना ‘तू है तो मुझे फिर और क्या चाहिए’ कमाल है।