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जेन जी: रील की लत... बात-बात में टकराता है पर्सनल इगो, ये दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहते; सुधीर हत्याकांड
अमर उजाला नेटवर्क, गोरखपुर
Published by: शाहरुख खान
Updated Mon, 29 Dec 2025 03:36 PM IST
सार
कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट डॉ. आकृति पांडेय ने स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले 200 छात्र-छात्राओं पर अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि जेनजी (वर्ष 1997 से 2012 तक में जन्मे बच्चे) में बर्दाश्त करने की क्षमता बहुत कम है। वह छोटी-छोटी बात से निराश हो जाते हैं। स्मार्टफोन और गैजेट्स में हमेशा व्यस्त रहने की वजह से जेनजी का दिमाग दूसरी दिशा में ही रहता है। वह खुद को सीमित दायरे में रखते हैं।
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मृतक सुधीर और परिजनों को समझाती पुलिस
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
जेनजी सोशल मीडिया और रील की दुनिया को ही रियल मानते हैं। वह छोटी-छोटी बात से निराश हो जाते हैं और उनका पर्सनल इगो टकरा जाता है। वह अक्सर भावनाओं को प्रकट नहीं कर पाते, जिसकी वजह से तनाव में रहते हैं। पिपराइच हत्याकांड में भी रील और स्टेटस से ही विवाद शुरू हुआ। पर्सनल इगो टकराया तो छात्र की हत्या कर दी गई।
कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट डॉ. आकृति पांडेय ने स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले 200 छात्र-छात्राओं पर अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि जेनजी (वर्ष 1997 से 2012 तक में जन्मे बच्चे) में बर्दाश्त करने की क्षमता बहुत कम है। वह छोटी-छोटी बात से निराश हो जाते हैं। स्मार्टफोन और गैजेट्स में हमेशा व्यस्त रहने की वजह से जेनजी का दिमाग दूसरी दिशा में ही रहता है। वह खुद को सीमित दायरे में रखते हैं।
इसी वजह से उनका हैप्पीनेस इंडेक्स कम हो रहा है। डॉ. आकृति ने बताया कि गोरखपुर में जेनजी का हैप्पीनेस इंडेक्स 15 से 20 है, जबकि इसे 50 से 80 के बीच में रहना चाहिए। बच्चे खुश नहीं रहते। वह अपने आप में ही परेशान रहते हैं।
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कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट डॉ. आकृति पांडेय ने स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले 200 छात्र-छात्राओं पर अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि जेनजी (वर्ष 1997 से 2012 तक में जन्मे बच्चे) में बर्दाश्त करने की क्षमता बहुत कम है। वह छोटी-छोटी बात से निराश हो जाते हैं। स्मार्टफोन और गैजेट्स में हमेशा व्यस्त रहने की वजह से जेनजी का दिमाग दूसरी दिशा में ही रहता है। वह खुद को सीमित दायरे में रखते हैं।
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इसी वजह से उनका हैप्पीनेस इंडेक्स कम हो रहा है। डॉ. आकृति ने बताया कि गोरखपुर में जेनजी का हैप्पीनेस इंडेक्स 15 से 20 है, जबकि इसे 50 से 80 के बीच में रहना चाहिए। बच्चे खुश नहीं रहते। वह अपने आप में ही परेशान रहते हैं।
मृतक सुधीर और सूचना देने वाला युवक
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
यदि बगल के किसी छात्र ने उससे अच्छे अंक प्राप्त कर लिए तो उस बात का भी तनाव हो जाता है। जो सामने है, उससे बात नहीं करते। सोशल मीडिया पर मिले पार्टनर को ज्यादा तवज्जो देते हैं। परिवार से भी बात नहीं करते।
मृतक सुधीर की फाइल फोटो
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
बात-बात में आ रहा पर्सनल इगो
डॉ. आकृति ने बताया कि जेनजी में बात-बात में पर्सनल इगो (व्यक्तिगत अहंकार) आ जाता है। सोशल मीडिया पर यदि उनकी फोटो को किसी ने नहीं लाइक किया तो परेशान हो जाते हैं। ये दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। इनका स्क्रीन टाइम काफी ज्यादा है, जिस वजह से तनाव में रहते हैं।
डॉ. आकृति ने बताया कि जेनजी में बात-बात में पर्सनल इगो (व्यक्तिगत अहंकार) आ जाता है। सोशल मीडिया पर यदि उनकी फोटो को किसी ने नहीं लाइक किया तो परेशान हो जाते हैं। ये दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। इनका स्क्रीन टाइम काफी ज्यादा है, जिस वजह से तनाव में रहते हैं।
परिजनों को समझाती पुलिस
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
यदि ये किसी बात को लेकर परेशान हैं तो भी अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं कर पाते। यह धीरे-धीरे डिप्रेशन का कारण बन जाता है। छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करने लगते हैं। हर चीज में नकारात्मकता खोजते हैं। इसी वजह से अगर किसी ने कुछ कहा तो तुरंत उससे बदला लेने के ख्याल आ जाते हैं।
शव के पास रोते-बिलखते परिजन
- फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
दोस्तों और परिवार संग बिताएं समय
डॉ. आकृति ने बताया कि यदि किसी के मन में कोई परेशानी है तो वह अपने दोस्त या अभिभावकों को बताएं। उनके साथ समय बिताएं। एआई से बताने पर कोई फायदा नहीं है। दोस्त और अभिभावक भी इन चीजों को महसूस करें। यदि किसी के व्यवहार में कोई बदलाव दिखे तो उससे बात करें। उसकी भावनाओं को समझें, जिससे वह थोड़ा हल्का महसूस करें। ज्यादा परेशानी होने पर काउंसलर से मिलना चाहिए। इससे उसकी समस्या का समाधान हो सकेगा।
डॉ. आकृति ने बताया कि यदि किसी के मन में कोई परेशानी है तो वह अपने दोस्त या अभिभावकों को बताएं। उनके साथ समय बिताएं। एआई से बताने पर कोई फायदा नहीं है। दोस्त और अभिभावक भी इन चीजों को महसूस करें। यदि किसी के व्यवहार में कोई बदलाव दिखे तो उससे बात करें। उसकी भावनाओं को समझें, जिससे वह थोड़ा हल्का महसूस करें। ज्यादा परेशानी होने पर काउंसलर से मिलना चाहिए। इससे उसकी समस्या का समाधान हो सकेगा।
