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सेहत की बात: दिल की तरह हो रहा पैर की नसों का इलाज, अब काटने की जरूरत नहीं; बिना चीरा-टांका लगाए उपचार संभव

अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ Published by: भूपेन्द्र सिंह Updated Tue, 16 Sep 2025 11:39 AM IST
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सार

लखनऊ में पैर की नसों का इलाज दिल की तरह हो रहा है। अब पैर काटने की जरूरत नहीं होगी। एसजीपीजीआई के इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग में मरीजों को राहत मिल रही है। अत्याधुनिक उपकरणों की मदद से बिना चीरा-टांका लगाए इलाज किया जा रहा है।

veins of legs are being treated like heart In SGPGI now there is no need to cut them
बिना चीरा-टांका लगाए लेजर के जरिये बंद नसों को खोला जाता है। - फोटो : विभाग
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विस्तार
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मधुमेह या अन्य कारणों से पैर की धमनियों में होने वाली रुकावट का इलाज अब आसान हो गया है। मरीज समय पर अस्पताल पहुंच जाए तो दिल की तरह पैर की नसों को भी खोला जा सकता है। इससे पैर काटने की जरूरत नहीं पड़ती है। यहां तक कि चीरा-टांका भी नहीं लगाना पड़ता है। यह संभव हुआ है अत्याधुनिक एंजियोप्लास्टी व एंडोवस्कुलर तकनीक से।

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एसजीपीजीआई का इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग इस तकनीक से कई मरीजों के पैर बचाने में कामयाब हुआ है। मधुमेह अथवा अत्यधिक धूम्रपान करने वालों के पैर की धमनियों में रुकावट आती है। नसों में खून का बहाव कम होने से मरीज के पैर का निचला हिस्सा पहले नीला फिर काला पड़ने लगता है। इसका समय पर उपचार नहीं होने पर पैर काटने की नौबत आ जाती है। 

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बिना चीरा-टांका लगाए लेजर के जरिये इलाज

एसजीपीजीआई के इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. तान्या बताती हैं कि पैर या अंगुलियों के काला पड़ने, पैर में हुए घाव के न भरने, संक्रमण बढ़ते रहने की स्थिति में सर्जरी करनी पड़ती है। सीधे-सीधे प्रभावित हिस्से को काटना (अम्प्यूटेशन) होता है, लेकिन अब विभाग में बिना चीरा-टांका लगाए लेजर के जरिये बंद नसों को खोला जा रहा है। एंडोवस्कुलर उपचार में एंजियोप्लास्टी की सुविधा उपलब्ध होने से मरीजों के पैर कटने से बच जा रहे हैं। इससे मरीजों को राहत मिल रही है।

ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सावधान

डॉ. तान्या ने बताया कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप वाले मरीजों को अपने पैर व अन्य अंगों की निगरानी रखनी चाहिए। जैसे ही अंगूठा, किसी अंगुली अथवा अन्य हिस्से में कालापन दिखे, चलने फिरने या आराम के वक्त पैर में दर्द, ठंडा या पीला पैर दिखे, नाड़ी महसूस न हो, अचानक दर्द/सूजन (धमनियों में थक्का बनने पर) पर तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें। 

ज्यादा धूम्रपान करने वाले, किडनी के मरीजों और जिन लोगों का कोलेस्ट्रॉल लगातार अधिक रहता है उनमें भी ऐसे लक्षण दिखते हैं। ऐसे लोगों के पैरों की धमनियां संकरी हो जाती हैं। खून की कमी से छोटे घाव भी नहीं भरते हैं और संक्रमण बढ़ता रहता है और गैंग्रीन हो जाता है।
 

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डॉ. तान्या - फोटो : विभाग

ये है उपचार की नई तकनीक

डॉ. तान्या ने बताया कि जिस तरह से हार्ट का इलाज होता है, उसी तरह से पैर की बंद नसों का भी इलाज होता है। खून की नली को अंदर से खोला जाता है। पैर तक खून का बहाव फिर से शुरू किया जाता है। इसके लिए नस में आई रुकावट का आकलन कर उसी हिसाब से उपचार की रणनीति तय की जाती है। इसमें नली को खोलने के लिए बैलून/स्टेंट का प्रयोग होता है। यदि डायबिटिक फुट अल्सर है तो उसमें टखने के नीचे की छोटी धमनियों को लक्ष्य बनाकर खोला जाता है।

जरूरी नहीं है कि पैर काला पड़े तो काटना जरूरी

एसजीपीजीआई इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. रजनीकांत यादव ने बताया कि यह गलत धारणा है कि पैर काला पड़ गया है तो उसे काटना ही है। अब उपचार की तमाम अत्याधुनिक तकनीक आ गई हैं जो बंद नसों को खोल कर खून का बहाव बढ़ा सकती हैं। यदि पैर ठंडा रहता है और घाव नहीं भर रहा है तो तत्काल वस्कुलर मूल्यांकन कराना चाहिए। समय पर एंजियोप्लास्टी और घाव की देखभाल से पैर कटने से बचाया जा सकता है।

केस 1

जौनपुर के 60 साल के राज कुमार (बदला नाम) खूब बीड़ी पीते थे। मधुमेह भी हो गया। पैर के अंगूठे में घाव बढ़ा तो डॉक्टर ने काट दिया। घाव बढ़ता गया तो डॉक्टर ने पैर काटने की सलाह दी। वे एसजीपीजीआई आए। यहां बिना चीरा और टांका लगाए पहले उनकी बंद नसें खोली गईं। फिर उपचार शुरू हुआ। पैर कटने से बच गया।

केस 2

सीतापुर के 55 साल के देवव्रत (बदला नाम) का पैर पहले नीला फिर धीरे-धीरे काला पड़ गया। डॉक्टर ने पैर कटवाने की सलाह दी। वह एसजीपीजीआई आए। यहां से उन्हें इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग भेजा गया। यहां उनके पैर की नसों को खोला गया। कुछ दिन उपचार के बाद उनका पैर फिर पहले जैसा हो गया।
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