मजरूह सुल्तानपुरी का यह शेर अक्सर लोगों की जुबां पर आ जाता है। मगर देखा जाए तो यह शेर खुद सुल्तानपुरी पर सबसे सटीक बैठता है। मजरुह सुल्तानपुरी को लोग शायर, गजलकार, गीतकार के रूप में जानते हैं। लेकिन, सुल्तानपुरी बनने से पहले वह असरारुल हसन खान थे। पेशे से हकीम थे, जो नब्ज देखकर लोगों की तबीयत का हाल बता देते थे। हकीमगीरी के साथ-साथ उनका शायरी का शौक चलता रहा और शौक बड़ी चीज है...! असरारुल हसन खान के शौक ने उन्हें मायानगरी पहुंचाया। इस तरह हिंदी सिनेमा को एक बड़ा गीतकार मिला, जिसने दर्द, खुशी, इश्क हर अहसास को शब्दों में बांधा। आज भी लोग सुकून की तलाश के लिए उनके गीतों का सहारा लेते हैं...। आज उनकी पुण्यतिथि है। तो चलिए जानते हैं हकीम असरारुल हसन खान के शायर गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी बनने तक का सफर...
Majrooh Sultanpuri: नब्ज देखने वाले हकीम से दिल छूने वाले शायर ऐसे बने मजरूह सुल्तानपुरी, खाई थी जेल की भी हवा
मजरूह सुल्तानपुरी का यह शेर अक्सर लोगों की जुबां पर आ जाता है। मगर देखा जाए तो यह शेर खुद सुल्तानपुरी पर सबसे सटीक बैठता है। मजरुह सुल्तानपुरी को लोग शायर, गजलकार, गीतकार के रूप में जानते हैं। लेकिन, सुल्तानपुरी बनने से पहले वह असरारुल हसन खान थे। पेशे से हकीम थे, जो नब्ज देखकर लोगों की तबीयत का हाल बता देते थे। हकीमगीरी के साथ-साथ उनका शायरी का शौक चलता रहा और शौक बड़ी चीज है...! असरारुल हसन खान के शौक ने उन्हें मायानगरी पहुंचाया। इस तरह हिंदी सिनेमा को एक बड़ा गीतकार मिला, जिसने दर्द, खुशी, इश्क हर अहसास को शब्दों में बांधा। आज भी लोग सुकून की तलाश के लिए उनके गीतों का सहारा लेते हैं...। आज उनकी पुण्यतिथि है। तो चलिए जानते हैं हकीम असरारुल हसन खान के शायर गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी बनने तक का सफर...
लखनऊ में यूनानी दवाओं की ट्रेनिंग ली
जैसा कि नाम से पता चलता है कि मजरूह सुल्तानपुरी, सुल्तानपुर के रहने वाले थे। लेकिन, इनका जन्म 1 अक्टूबर 1919 को आजमगढ़ के निजामाबाद में हुआ था। इनके पिता पुलिस इंस्पेक्टर थे और वह नहीं चाहते थे कि बेटा अंग्रेजी मीडियम से पढ़ाई करे। लिहाजा सुल्तानपुरी को मदरसे में दाखिला दिला दिया गया। इसका असर यह हुआ कि इनकी अरबी-फारसी भाषाएं समृद्ध हुईं। इसके बाद ये लखनऊ रवाना हुए और यहां से यूनानी दवाओं की ट्रेनिंग लेने लगे। ट्रेनिंग के बाद हकीम बनकर सामने आए। उस वक्त खुद मजरूह सुल्तानपुरी की भी यही योजना रही होगी कि एक हकीम के रूप में लोगों का इलाज करेंगे। मगर किस्मत और शायरी का शौक से वह एक नई इबारत लिखने वाले थे।
मुशायरों में मिली तारीफ तो बढ़ा हौसला
एक हकीम के रूप में सुल्तानपुरी का काम ठीक-ठाक नहीं जम पा रहा था। हालांकि, इस दौरान वह अपनी गजलों और शायरी के शौक को जरूर पूरा कर रहे थे। एक शाम सुल्तानपुर के मुशायरे में इन्होंने अपनी गजल पढ़ी। उनकी वह गजल वहां बैठे सभी लोगों पर असर कर गई। लोग चर्चा करने लगे कि एक नया शायर आ गया है। तारीफें मिलीं तो सुल्तानपुरी का गजलों का शौक धीरे-धीरे और बढ़ा। वह हर मुशायरे में अपनी गजल पढ़ने लगे।
जिगर मुरादाबादी का साथ मिला और...
सुल्तानपुरी की मुशायरों में शिरकत चलती रही और इसी दौरान उन्हें जिगर मुरादाबादी का साथ मिला। जिगर मुरादाबादी ने सुल्तानपुरी को काफी प्रेरित किया और फिर यह तय हुआ कि अब मुंबई का रुख किया जाए। वर्ष 1945 में मजरूह सुल्तानपुरी मुंबई पहुंचे। यहां साबू सिद्धिकी इंस्टीट्यूट में एक मुशायरा था। सुल्तानपुरी ने शेर पढ़े। सुनने वाले मंत्रमुग्ध रह गए। श्रोताओं में एक जबरदस्त शख्सियत भी थी। वह थे फिल्म प्रोड्यूसर ए आर करदार। इन्होंने जिगर मुरादाबादी से बात की और कहा कि वह मजरूह सुल्तानपुरी से मिलना चाहते हैं। उन्होंने इच्छा जताई कि सुल्तानपुरी हमारी फिल्म के गाने लिखें। लेकिन, मजरूह ने साफ मना कर दिया। दरअसल यह वक्त ऐसा था, जब इंडस्ट्री को अच्छी जगह नहीं माना जाता था। बड़े-बड़े कलाकार यहां कदम रखने से पीछे हटते थे।
नौशाद ने लिया जबरदस्त टेस्ट
जब सुल्तानपुरी गीत लिखने को राजी नहीं हुए तो जिगर मुरादाबादी ने उन्हें समझाया और उनका मन बदला। मुरादाबादी ने कहा कि तुम फिल्मी गाने लिखो। जैसे गाने तुम लिखना चाहते हो। इससे कुछ पैसे मिलेंगे और तुम अपने परिवार की देखरेख अच्छी तरह कर पाओगे। साथ-साथ शायरी भी चलती रहेंगी। सुल्तानपुरी को यह बात जम गई। और वह राजी हो गए। इसके बाद फिल्म प्रोड्यूसर ए आर करदार मजरूह सुल्तानपुरी को संगीतकार नौशाद के पास ले गए। वहां नौशाद ने सुल्तानपुरी का जबरदस्त टेस्ट लिया। उन्होंने एक धुन सामने रखी और उस पर लिखने को कहा। मजरूह सुल्तानपुरी भी कम नहीं पड़े। उन्होंने लिखा, 'जब उसने गेसू बिखराए, बादल आया झूमकर....'। यह लाइन नौशाद साहब को पसंद आ गई। उन्होंने तुरंत सुल्तानपुरी को फिल्म 'शाहजहां' के लिए साइन कर लिया। यह बात है वर्ष 1946 की। फिल्म का गाना काफी हिट हुआ। इसके बाद सुल्तानपुरी का फिल्मी गीत लिखने का सिलसिला चल पड़ा और एक ऐसे गीतकार बने जिन्होंने इतिहास रच दिया। 'ओ मेरे दिल के चैन...', 'यूं तो हमने लाख हंसी देखे हैं, तुम सा नहीं देखा...', 'देखो जी सनम हम आ गए..,' 'मोहब्बत से तेरी खफा हो गए हैं...', 'चला जाता हूं किसी की धुन में तड़पते दिल के तराने लिए...','सिर पे टोपी लाल...', 'करके आंखों में...',;छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा...'! उनके लिखे फिल्मी गानों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।