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Independence Day 2021: क्रांतिकारियों की शहादत का गवाह है ये घंटाघर, इतिहास जानकर गर्व करेंगे आप

अमर उजाला नेटवर्क, गोरखपुर। Published by: vivek shukla Updated Sun, 15 Aug 2021 01:48 PM IST
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Independence Day 2021 special story of Ghantaghar witness to martyrdom of revolutionaries in gorakhpur
गोरखपुर घंटाघर। - फोटो : अमर उजाला।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के हिंदी बाजार में स्थित घंटाघर स्वतंत्रता आंदोलन के वीर बलिदानियों के शहादत की गौरव-गाथा को अपने भीतर समेटे हुए है। वर्तमान में जहां यह घंटाघर है वहां 1857 में एक विशाल पाकड़ का पेड़ हुआ करता था। इसी पेड़ पर पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अली हसन के साथ दर्जनों स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी गई थी। वहीं महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की शव यात्रा भी यहां रुकी थी। यहीं उनकी मां ने एक प्रेरणादायी भाषण दिया था।


यहां रुकी थी बिस्मिल की शवयात्रा
दरअसल 19 दिसंबर 1927 में जब जिला कारागार में बिस्मिल को फांसी दी गई तो शहर में निकली उनकी शवयात्रा इसी घंटाघर में आकर रुकी थी। यहां पर कुछ देर के लिए उनका शव रखा गया था और उसी दौरान बिस्मिल की माता ने यहां पर एक प्रेरणादायी भाषण भी दिया था। इस घटना के बाद ये स्थान पूरी तरह से पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को समर्पित हो गया।
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Independence Day 2021 special story of Ghantaghar witness to martyrdom of revolutionaries in gorakhpur
गोरखपुर घंटाघर। - फोटो : अमर उजाला।
1930 में हुआ था घंटाघर का निर्माण
घंटाघर के निर्माण का श्रेय रायगंज के सेठ राम खेलावन और सेठ ठाकुर प्रसाद को जाता है। उन्होंने 1930 में अपने पिता सेठ चिगान साहू की याद में इसी स्थान पर एक मीनार की तरह ऊंची इमारत का निर्माण कराया, जो देश के शहीदों को समर्पित थी।
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Independence Day 2021 special story of Ghantaghar witness to martyrdom of revolutionaries in gorakhpur
गोरखपुर घंटाघर। - फोटो : अमर उजाला।
सेठ चिगान के नाम पर काफी दिनों तक इस इमारत को चिगान टॉवर भी कहा जाता रहा।
Independence Day 2021 special story of Ghantaghar witness to martyrdom of revolutionaries in gorakhpur
गोरखपुर घंटाघर। - फोटो : अमर उजाला।
इमारत पर एक घंटे वाली घड़ी लगाई गई, जिसकी वजह से बाद में यह इमारत घंटाघर के नाम से मशहूर हो गई। 
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गोरखपुर घंटाघर। - फोटो : अमर उजाला।
घंटाघर के निर्माण की कहानी हिंदी और उर्दू भाषा में घंटाघर की दीवारों पर अंकित है। वहीं दीवार पर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की तस्वीर भी लगी है।
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