आज हम आपको एक ऐसी सच्ची घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आपको हैरानी होगी। बता दें कि बिहार बार्डर के नजदीक उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में स्थित तरयासुजान थाने के गांव मठिया श्रीराम में प्रतिशोध की ज्वाला नौ दशक से धधक रही है। वर्चस्व और जमीनी रंजिश में इस गांव की धरती पर अक्सर ही खून के धब्बे लगते रहे हैं। आजादी के दो दशक पहले शुरू हुआ हत्या का सिलसिला अब तक नहीं रुका है।
गांव के बुजुर्ग और प्रबुद्धजनों की माने तो यहां की कुल आबादी करीब पांच हजार है। आबादी का बड़ा हिस्सा एक जाति विशेष का है। इनके बीच वर्चस्व की लड़ाई की बात करें तो अब तक 30 से अधिक लोगों की हत्या हो चुकी है। आगे की स्लाइड्स में पढ़िए पूरी कहानी...
गांव के लोगों के अनुसार इसकी शुरूआत वर्ष 1930 में रतनदेव तिवारी हत्याकांड से हुई थी। बताया जाता है कि उस साल अरहर की फसल के बंटवारे को लेकर हुए विवाद में रतनदेव तिवार की हत्या हो गई थी। इसके प्रतिशोध में गांव के तपेसर तिवारी की हत्या कर दी गई।
गांव के लोग कर रहे हैं पलायन
कालांतर में झुनझुना तिवारी, हरेराम तिवारी, नन्हे तिवारी, नथुनी तिवारी, रमा तिवारी, रमाशंकर तिवारी, ग्राम प्रधान रहे राजेश तिवारी, टुन्ना तिवारी, कमलेश तिवारी आदि की हत्याएं हुईं। जानकार बताते हैं कि हत्या व जेल जाने के इस क्रम में गांव के कई नौजवानों का संबंध बिहार के अपराधियों से भी हो गया।
अब तो मामूली बात में भी गोली चला देने की फितरत रखने वाले इस गांव से प्रबुद्ध लोग धीरे-धीरे पलायन करने लगे हैं। ग्रामीण अमन की तलाश में गांव से निकलकर दूर दराज के कस्बों व शहर में अपना ठिकाना बनाने लगे हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि आए दिन होने वाले अपराध के चलते पुलिस वाले भी इस गांव में आने से कतराते हैं। प्रशासन ने इसे वर्नेबल विलेज (ज्वलनशील गांव) की श्रेणी में रखा है।