उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक खास कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं। इस कहानी को पढ़कर आप जान जाएंगे की एक छोटी सी उम्र में ही कैसे योगी नायक बन गए थे। कहानी सन् 1999 की है। उस समय सीएम योगी गोरखपुर के सांसद थे। उस समय योगी आदित्यनाथ का आजमगढ़ आना जाना था, इस दौरान एक पुजारी की हत्या हो गई थी, जिसे लेकर योगी ने बड़ा प्रदर्शन किया था। इसके बाद 2005 में मऊ दंगे के बाद हिंदू युवा वाहिनी ने आजमगढ़, मऊ और अन्य आसपास के जिलों में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी थी।
तस्वीरें: हमलावरों से बचने के लिए सीएम योगी ने बनाया था ये मास्टर प्लान, ऐसे दिया था लोगों को चकमा
दिन तय हुआ, 7 सितंबर 2008, जगह- डीएवी कॉलेज आजमगढ़ का मैदान। सीएम योगी उसमें मुख्य वक्ता थे। रैली की सुबह, गोरखनाथ मंदिर से करीब 40 वाहनों का काफिला निकला। उन्हें आजमगढ़ में विरोध की पहले से ही आशंका थी, इसलिए टीम योगी पहले से ही तैयार थी।
काफिले में योगी की लाल एसयूवी सातवें नंबर पर थी। आजमगढ़ के करीब पहुंचने तक काफिले में करीब 100 चार पहिया और सैकड़ों की संख्या में बाइक जुड़ चुकी थीं। एक पत्थर काफिले में मौजूद सातवीं गाड़ी यानि सीएम योगी के गाड़ी पर लगा।
योगी के काफिले पर हमला हो चुका था। हमला सुनियोजित था। काफिला तीन हिस्सों में बंट चुका था। हमलावर अपने लक्ष्य को ढूंढ रहे थे। लेकिन योगी आखिर थे कहां? हर कोई यही सवाल कर रहा था। उनकी तलाश में लोग व्याकुल हो रहे थे, तभी पता चला कि योगी आगे गई छह कारों के साथ निकल चुके थे, वास्तव में वो काफिले के पहले एसयूवी में थे।
रैली तीन घंटे तक चली। योगी ने आतंकी हमलों और बशीर की गिरफ्तारी को राजनीतिक रंग देने पर तीखा हमला बोला, लेकिन अपने ऊपर हुए जानलेवा हमले पर एक शब्द भी नहीं कहा। रैली के करीब 10 दिन बाद ही, दिल्ली पुलिस ने जामिया नगर स्थिति के बाटला हाउस में इंडियन मुजाहिदीन की तलाश में छापे मारे, जिसमें दो संदिग्ध मारे गए। वहीं दो फरार होने में सफल रहे। जांच में पता चला कि ये सभी सदस्य आजमगढ़ के थे।