परिस्थितियां भले ही विपरीत हों पर कुछ कर गुजरने का जज्बा है तो मंजिल जरूर मिलती है। कुछ ऐसे ही इरादे लेकर पादरी बाजार के आगे जंगल में सौ से ज्यादा खिलाड़ी पसीना बहा रहे हैं। दिन में मेहनत-मजदूरी कर परिवार के भरण पोषण में हाथ बंटाते हैं और शाम को एथलीट और वालीबॉल के अभ्यास में जुट जाते हैं। अभ्यास करने वाले खिलाड़ियों की उम्र पांच से 19 साल है। नतीजा भी सामने है। सुमन नेशनल जूनियर एथलीट प्रतियोगिता में भाग ले चुकी हैं, जबकि पांच खिलाड़ी राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हैं।
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जुगाड़ से ट्रेनिंग: जंगल में तैयार हो रहे ओलंपिक के होनहार, पीटी उषा बनने के लिए बहा रहे पसीना
निखिल तिवारी, गोरखपुर। Published by: vivek shukla Updated Tue, 20 Feb 2024 12:15 PM IST
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खेल का अभ्यास करते खिलाड़ी।
- फोटो : अमर उजाला।

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खेल का अभ्यास करते खिलाड़ी।
- फोटो : अमर उजाला।
पादरी बाजार के जंगल तिनकोनिया नंबर दो में खिलाड़ियों की पौध को कोच शिवशंकर यादव तराशने में जुटे हुए हैं। गांव के बाहर मंदिर के पास एक खाली जमीन को अभ्यास का जगह बना लिया। इसमें डंठल और ईंट के सहारे ये ट्रेनिंग करते हैं।
ट्रेनिंग के दौरान भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे से खुद के अंदर जोश भरते हैं। दौड़ने के लिए जगह नहीं है तो जंगल के रास्ते को ही ट्रैक बना लिया। इसमें ज्यादातर खिलाड़ी एथलेटिक्स और वॉलीबॉल के हैं। अभ्यास के लिए रोज शाम चार बजे ये खिलाड़ी मैदान पर पहुंच जाते हैं।
ट्रेनिंग के दौरान भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे से खुद के अंदर जोश भरते हैं। दौड़ने के लिए जगह नहीं है तो जंगल के रास्ते को ही ट्रैक बना लिया। इसमें ज्यादातर खिलाड़ी एथलेटिक्स और वॉलीबॉल के हैं। अभ्यास के लिए रोज शाम चार बजे ये खिलाड़ी मैदान पर पहुंच जाते हैं।
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खेल का अभ्यास करते खिलाड़ी।
- फोटो : अमर उजाला।
दिन में मजदूरी और शाम में ट्रेनिंग
जंगल में अभ्यास करने वाली कुछ लड़कियां प्रदेश स्तर की प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर चुकी हैं। ये लड़कियां अपने खेल को जारी रखने के लिए दूसरे के घर और खेत में मजदूरी भी करती हैं। अधिकतर खिलाड़ियों के माता-पिता किसान या फिर मजदूर हैं। घर से इन्हें कोई सुविधा नहीं मिल पाती। अच्छी डाइट के लिए भी इनके पास पैसे नहीं हैं। डाइट में गेंहू और चने के दाने भिंगोकर खाती हैं। इन खिलाड़ियाें का कहना है कि एक दिन वह भी देश के लिए मेडल जीतना चाहते हैं।
जंगल में अभ्यास करने वाली कुछ लड़कियां प्रदेश स्तर की प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर चुकी हैं। ये लड़कियां अपने खेल को जारी रखने के लिए दूसरे के घर और खेत में मजदूरी भी करती हैं। अधिकतर खिलाड़ियों के माता-पिता किसान या फिर मजदूर हैं। घर से इन्हें कोई सुविधा नहीं मिल पाती। अच्छी डाइट के लिए भी इनके पास पैसे नहीं हैं। डाइट में गेंहू और चने के दाने भिंगोकर खाती हैं। इन खिलाड़ियाें का कहना है कि एक दिन वह भी देश के लिए मेडल जीतना चाहते हैं।

सुमन।
- फोटो : अमर उजाला।
नेशनल खेलने गई थी सुमन
जुगाड़ के इसी मैदान पर अभ्यास करके सुमन राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर चुकी हैं। हाल ही में गुजरात में संपन्न हुई 19वीं नेशनल इंटर डिस्टि्रक्ट जूनियर एथलेटिक्स मीट में सुमन ने 600 मीटर रेस में प्रतिभाग किया था। प्रतियोगिता में मेडल लाने में सुमन असफल रहीं हैं, लेकिन इससे बाकी खिलाड़ियों में उत्साह बढ़ा। सुमन पिछले चार साल से अभ्यास कर रही हैं।
जुगाड़ के इसी मैदान पर अभ्यास करके सुमन राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर चुकी हैं। हाल ही में गुजरात में संपन्न हुई 19वीं नेशनल इंटर डिस्टि्रक्ट जूनियर एथलेटिक्स मीट में सुमन ने 600 मीटर रेस में प्रतिभाग किया था। प्रतियोगिता में मेडल लाने में सुमन असफल रहीं हैं, लेकिन इससे बाकी खिलाड़ियों में उत्साह बढ़ा। सुमन पिछले चार साल से अभ्यास कर रही हैं।
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खेल का अभ्यास करते खिलाड़ी।
- फोटो : अमर उजाला।
अब दिखने लगा है मेहनत का फल
कोच शिवशंकर वालीवॉल में प्रदेश स्तर, इंटर यूनिवर्सिटी और प्रदेश स्तर के मैच में रेफरी की भूमिका भी अदा कर चुके हैं। शिवशंकर ने बताया कि मेहनत का फल अब धीरे-धीरे दिख रहा है। अब खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन यदि हमें एक मैदान मिल जाता तो इनकी ट्रेनिंग और भी बेहतर हो जाती।
कोच शिवशंकर वालीवॉल में प्रदेश स्तर, इंटर यूनिवर्सिटी और प्रदेश स्तर के मैच में रेफरी की भूमिका भी अदा कर चुके हैं। शिवशंकर ने बताया कि मेहनत का फल अब धीरे-धीरे दिख रहा है। अब खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन यदि हमें एक मैदान मिल जाता तो इनकी ट्रेनिंग और भी बेहतर हो जाती।