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Republic Day 2025: जब गढ़ा जा रहा था संविधान, तब मध्यप्रदेश ने निभाई थी अहम भूमिका, जानिए इसके पीछे की कहानी

न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: अरविंद कुमार Updated Sun, 26 Jan 2025 01:00 AM IST
सार

Republic Day 2025: भारतीय संविधान का इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जिले सहित अन्य जगहों से गहरा नाता रहा है। योगदान देने वालों में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर सहित कई नाम मध्यप्रदेश से जुड़े। इस खबर में जानिए उन सभी के बारे में...

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Republic Day 2025 When Constitution was being framed Madhya Pradesh played an important role know story
एमपी के संविधान निर्माता - फोटो : अमर उजाला

26 जनवरी को देश अपना 76वां गणतंत्र मनाने जा रहा है। वर्ष 1950 में इसी दिन भारत ने संविधान को अंगीकार किया था और भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था। आपको बता दें कि संविधान का इंदौर से गहरा नाता रहा है। मप्र के लोगों को योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता।




आजादी के बाद देश में किस प्रकार के मौलिक अधिकारों का निर्माण किया जाए, इसके लिए जून 1947 में एक समिति बनाई गई थी। इसमें 299 सदस्य नामित किए गए थे। देश के पहले कानून एवं न्याय मंत्री बाबा साहब भीमराव आंबेडकर को स्वतंत्र भारत में नए संविधान की निर्माण की रचना के लिए बनी संविधान की मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में इंदौर के निकट महू में हुआ था। प्रतिवर्ष उनके जन्मदिन पर महू में कार्यक्रम आयोजित होता है।

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दीनानाथ भार्गव और विनायक सीताराम सरवटे - फोटो : अमर उजाला

संविधान के पृष्ठों के चित्रकार भार्गव
देश के संविधान का प्रथम पेज जिसमें राष्ट्रीय चिन्ह अशोक और सिंह का चित्रांकन किया गया है, उसे बनाने वाले पंडित दीनानाथ भार्गव का जन्म बैतूल में हुआ था, पर उनका परिवार इंदौर में ही रहने लगा था। दीनानाथ भार्गव को संविधान के पृष्ठों के चित्र तैयार करने के लिए प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस ने चुना था। उस वक्त दीनानाथ भार्गव की उम्र 20 वर्ष थी और वे शांतिनिकेतन के फाइन आर्ट में पढ़ाई कर रहे थे। संविधान के प्रमुख चित्रों में दीनानाथ भार्गव का महत्वपूर्ण योगदान है। दिसंबर 2016 में दीनानाथ भार्गव का इंदौर में निधन हो गया, उनका परिवार वर्तमान में इंदौर में रहता है।

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संविधान का मुख्य पेज - फोटो : अमर उजाला

संविधान सभा के सदस्य
संविधान निर्माण के लिए बनाई गई समिति में वर्तमान मध्यप्रदेश से 19 व्यक्ति सम्मिलित थे। इंदौर से विनायक सीताराम सरवटे और झाबुआ जिले के थांदला से कुसुमकांत जैन थे। थांदला में जन्मे कुसुमकांत जैन सबसे कम उम्र के सदस्य थे। कुसुमकांत जैन काफी समय तक इंदौर में रहे। 23 जुलाई 1921 को जन्मे जैन ने 15 साल की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। उनके गुरु मामा बालेश्वर दयाल थे। जैन आजादी के बाद झाबुआ स्टेट में मंत्री, मध्य भारत यूनियन में कैबिनेट मंत्री, भारतीय संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य, मध्य भारत विधानसभा सहित कई पदों पर रहे। 2013 को उनका इंदौर में निधन हो गया।

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कृष्णकांत जैन के हस्ताक्षर - फोटो : अमर उजाला

अप्रैल 1884 में विनायक सीताराम सरवटे का जन्म इंदौर में हुआ था। उन्होंने कानून की पढ़ाई की थी और एक अच्छे कानूनविद थे। इनके नाम से इंदौर में स्थित बस स्टैंड का नाम सरवटे बस स्टैंड रखा गया था। 1972 में उनका निधन हो गया था। इस तरह संविधान के निर्माण में नगर के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।


सरवटे जी के हस्ताक्षर

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संविधान की मूल प्रति - फोटो : अमर उजाला

ग्वालियर में आज भी रखी है संविधान की मूल प्रति
सबसे खास और गौरवान्वित वाली बात यह है कि एमपी के ग्वालियर में आज भी संविधान की मूल प्रति सुरक्षित रखी हुई है। भारतीय संविधान तो हमारी संसद का हिस्सा है, लेकिन ग्वालियर के लिए बड़े गौरव की बात है कि इस संविधान का ग्वालियर से भी एक भावनात्मक रिश्ता है। ग्वालियर में संविधान की मूल प्रति सुरक्षित है और गणतंत्र दिवस पर यह सबको दिखाई जाती है, इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में युवक और युवतियां यहां पहुंचते हैं।

ग्वालियर में महाराज बाड़ा स्थित केंद्रीय पुस्तकालय में आज भी भारतीय संविधान की एक मूल दुर्लभ प्रति सुरक्षित रखी हुई है, जिसे हर वर्ष संविधान दिवस, गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर आम लोगों को दिखाने की व्यवस्था की जाती है। अब यह पुस्तकालय डिजिटल हो चुका है। लिहाजा इसकी डिजिटल कॉपी भी देखने को मिलती है। हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग अपने संविधान की इस मूल प्रति को देखने ग्वालियर पहुंचते हैं। 1927 में सिंधिया शासकों द्वारा निर्मित कराए गए इस केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना कराई गई थी। तब यह मोतीमहल में स्थापित किया गया था। तब इसका नाम आलीजा बहादुर लाइब्रेरी था। कालांतर में इसे महाराज बाड़ा स्थित एक भव्य स्वतंत्र भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। स्वतंत्रता के पश्चात इसका नाम संभागीय केंद्रीय पुस्तकालय कर दिया गया।

आखिरकार ग्वालियर के इस केंद्रीय पुस्तकालय में रखी संविधान की यह मूल प्रति यहां पहुंची कब और कैसे? यह सवाल सबके जेहन में आना लाजमी है। अंग्रेजी भाषा में लिखे गए पूरी तरह हस्तलिखित इस महत्वपूर्ण दस्तावेज की कुल 11 प्रतियां तैयार की गई थी। इसकी एक प्रति संसद भवन में रखने के साथ कुछ प्रतियां देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजना तय हुआ था, ताकि लोग अपने संविधान को देख सकें। इसी योजना के तहत एक प्रति ग्वालियर के केंद्रीय पुस्तकालय में भेजी गई। इसकी सुरक्षा और संरक्षण की खास व्यवस्था भी की गई।

इसकी सभी ग्यारह प्रतिलिपियों के अंतिम पन्ने पर संविधान सभा के सभी 286 सदस्यों ने मूल हस्ताक्षर किये थे, जो आज भी इस पर अंकित हैं। इसमें सबसे ऊपर पहला हस्तक्षर राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के हैं। इनके अतिरिक्त संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु और लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के भी हस्ताक्षर हैं। इतने बड़े नेताओं के ऑरिजनल दस्तखत देखने वालों में एक रोमांच पैदा हो जाता है।

वहीं, केंद्रीय पुस्तकालय के अधिकारी विवेक का कहना है कि वे अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। उनका कहना है कि यह पूरा संविधान हस्तलिखित है और सुन्दर शब्दांकन करने के लिए कैलीग्राफी करवाई गयी है। संविधान की इस पांडुलिपि की रूप सज्जा भी अद्भुत है। इसके पहले पेन को स्वर्ण से सजाया गया है। इसके अलावा हर पृष्ठ की सज्जा और नक्काशी पर भी स्वर्ण पॉलिश से लिपाई की गई है।

इसके अलग-अलग पन्नों पर इतिहास के विभिन्न कालखंडों यानी मोहन जोदाड़ो, महाभारत काल, बौद्ध काल, अशोक काल से लेकर वैदिक काल तक मुद्राएं, सील और चित्र अंकित इस बात को परिलक्षित किया गया है कि हमारी भारतीय संस्कृति,परम्पराएं, राज-व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्थाएं अनादिकाल से ही गौरवशाली और व्यवस्थित थी। संविधान की प्रति देखने बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंच रहे हैं, अब यहां इसका डिजिटल वर्जन ही लोगों को देखने को मिलता है। सुरक्षा की दृष्टि से ऐसा पिछले वर्ष से ही किया गया है, यहां पहुंचे युवा इसे देखकर खुश और गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

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