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यादें देवी अहिल्या की: होलकर रियासत में कंपेल अहम परगना था, कई मंदिर और अहिल्या कचहरी के लिए है प्रसिद्ध
कंपेल, पूर्व में होलकर रियासत का प्रमुख परगना था, जहां देवी अहिल्या बाई की कचहरी और ऐतिहासिक मंदिर स्थित हैं। इंदौर मुख्यालय बनने से इसका महत्व घटा। अब ये स्थल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। 300वीं जयंती पर इन्हें संरक्षित कर राज्य स्मारक घोषित करने की मांग उठी है।
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देवी अहिल्या की 300वीं जन्म जयंती पर विशेष
- फोटो : अमर उजाला
शहर के समीप स्थित कंपेल कस्बा होलकर रियासत का एक महत्वपूर्ण परगना था। अचानक यह चर्चा में आ गया है। कंपेल में कई मंदिर और देवी अहिल्या बाई की कचहरी वर्तमान में मंदिर जीर्ण शीर्ण हालत में है। देवी अहिल्या बाई होलकर की 300वीं जयंती पर इन स्थलों को राज्य स्मारक का दर्जा देकर इनके विकास की चर्चा हो रही है। कंपेल में काफी ऐतिहासिक सामग्री समय रहते मिल सकती थी, परंतु समय पर ध्यान नहीं देने से इतिहास के अवशेषों की दुर्दशा हो गई।
कंपेल का इतिहास
कंपेल का इतिहास बहुत ही गौरवशाली है। भोज परमार (1010 से 1055 ई.) के पिपल्दा ताम्रपत्र से ज्ञात होता है की कंपेल का प्राचीन नाम काम्पिल्य था। परमार काल में यह मुख्यालय था। आईना-ए-अकबरी में कंपेल को मालवा सूबा उज्जैन के अधीन महल के मुख्यालय के रूप में बताया गया था। मुगल काल और मांडव सुल्तानों के काल में कंपेल का महत्व अधिक था।
मंडलोई परिवार की अहम भूमिका थी
मुगल काल में कंपेल के मंडलोई परिवार की अहम भूमिका रही। मुगल सेनाओं के लिए रसद की व्यवस्था यहां के जमीदारों ने की थी। उन्होंने ही इंदौर को बसाया था। कंपेल में प्रवेश करते ही भव्य प्रवेश द्वार है, जिसके दोनों और मंदिर है एक और शिव और दूसरी और मगरमच्छ की प्रतिमा है। नर्मदा जी का वाहन होने से मगरमच्छ को प्रवेश पर स्थापित किया गया था
गोवर्धननाथ मंदिर का निर्माण कराया गया
होलकरों के आरंभ के दौर में कंपेल जिला मुख्यालय था। देवी अहिल्या बाई की कचहरी और गादी कंपेल में थी। ऐसी मान्यता है कि अहिल्या बाई के कार्यकाल के दौरान कंपेल में गोवर्द्धन नाथ मंदिर का निर्माण कर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी। सुविधा की दृष्टि से अहिल्या बाई ने मुख्यालय कंपेल से इंदौर बना दिया था।
इंदौर मुख्यालय बनने से कंपेल का महत्व घटा
इंदौर मुख्यालय बन जाने से कंपेल का महत्व कम हो गया। कंपेल में अहिल्या बाई की महल कचहरी कायम रही। समय से साथ इस भवन में कई परिवर्तन होते गए। कचहरी उत्तरमुखी है। परिसर का प्रवेश पश्चिमी मुखी है, कचहरी कंपेल के पूर्व में स्थित है। इसी परिसर में एक शिव मंदिर भी है, जिसमें शिव-पार्वती नंदी की प्रतिमा है। परिसर में एक बावड़ी भी थी।
बेचा जा चुका है कचहरी भवन
अहिल्या कचहरी को बचाना और संरक्षित करना कठिन कार्य है। यह भूमि एवं भवन करीब आठ दस वर्ष पूर्व बेच दिया गया था अब इस कचहरी भवन को प्राप्त कठिन कार्य है, पर शासन चाहे तो इस कार्य को कर सकता है। वर्तमान में अहिल्या कचहरी और मंदिर देखरेख के अभाव में जीर्णशीर्ण हो रहे हैं। देवी अहिल्या बाई के त्रिशताब्दी वर्ष में कंपेल के ऐतिहासिक महत्व को समझ कर इसके जीर्णोद्धार का कार्य सरकार करे, ताकि आगामी पीढ़ी देवी अहिल्या बाई के महत्व को जान सके।
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