गणतंत्र का सीधा मतलब है गण का तंत्र यानी आम आदमी का तंत्र। इसके मायने हैं देश में रहने वाले लोगों की सर्वोच्च शक्ति और सही दिशा में उनका प्रयास देश की सूरत बदल सकता है। देश अपना गणतंत्र दिवस मना रहा है और ऐसे में उस दौर में रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व आम जन के मन में गणतंत्र पर अपने-अपने विचार हैं। पढ़े विस्तार से, अगली स्लाइड में...
Republic Day 2021: स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और प्रबुद्धजनों की जुबानी, 26 जनवरी 1950 के बाद कितनी बदली देश की सूरत
वंदे मातरम सेनानियों के लिए बीज रत्न था: सीताराम शास्त्री
राजातालाब क्षेत्र के डीह गंजारी निवासी 100 वर्ष से अधिक उम्र के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सीताराम शास्त्री बताते हैं कि भारतीय गणतंत्र विश्व के महान देशों में से एक है। यह अपने गणतंत्रात्मक देश की विशेषता है कि एक देश एक संविधान की ओर बढ़ रहा है। 26 जनवरी 1950 को याद करते हुए सीताराम शास्त्री बताते हैं कि वह जगतपुर इंटर कॉलेज में बतौर शिक्षक कार्यरत थे। उस समय विद्यालय में देश के बड़े सेनानियों को बुलाकर बच्चों से परिचित कराया गया था। उस समय लोगों का यही एक सपना था कि भारत भविष्य में और मजबूत हो और यहां का लोकतंत्र विश्व में जाना जाए। उन्होंने बंकिम चंद्र चटर्जी के वंदे मातरम के गीत को गाते हुए कहा कि उस समय यह सेनानियों के लिए बीज रत्न था। आज सशक्त भारत अपने दुश्मनों का मर्दन करने में भी सक्षम है। भारत की समृद्धि पर उन्हें नाज है।
बूढ़ी आंखों से पूरा होते देख रहा हूं देश की खुशहाली का सपना
राजातालाब के बभनियाव गांव के 45 साल तक ग्राम प्रधान रहे 93 वर्षीय माया शंकर सिंह कहते हैं कि भारत को अपने जीवन काल में सशक्त होते देख उनके रगों में फिर से जवानी का खून दौड़ने लगता है। देश खुशहाल होने का जो सपना आंखों में सजाया था वह बूढ़ी आंखों से पूरा होते देख रहा हूं। तब अपने भारत के संविधान और अखंडता को लेकर थोड़ी बहुत चिंता हुआ करती थी पर अब वह चिंता लेस मात्र भी नहीं रह गई है। वर्तमान में भारत की सरकार, नौजवान, किसान, अधिकारी, सैनिक और मजदूर देश के विकास के लिए कटिबद्ध नजर आते हैं। देश के नौनिहालों ने आजादी के पूर्व से लेकर वर्तमान समय तक देश को अपना सर्वस्व न्योछावर किया। उन्हीं लोगों की देन है कि आज हमें भारत की शक्ति पर गर्व होता है। आने वाली पीढ़ियां इस अनुभूति को बनाए रखें तो वह मरने के बाद भी प्रसन्न रह सकेंगे।
गणतंत्र दिवस के उल्लास को बयां करना मुश्किल
केराकतपुर के रहने वाले नंद कुमार मौर्य (91) ने बताया कि पहला गणतंत्र दिवस जब मनाया गया तो उस समय उम्र 20 साल थी। आज भी सब कुछ आंखों के सामने ताजा हो जाता है। गणतंत्र दिवस का जो उल्लास था उसको शब्दों में बयां कर पाना बेहद मुश्किल है। इस भाव को केवल महसूस किया जा सकता है। नंद कुमार ने बताया कि वह उस दौरान चेतगंज में स्थित जायसवाल जूनियर हाईस्कूल में पढ़ाई कर रहे थे। उस समय का जो व्यवहार था, समाज में आज वह नजर नहीं आता है। उस समय प्रशासन लोगों की बातों और उनकी कद्र किया करता था। आज तो स्थितियां एकदम उलट गई हैं।
विकास की राह पर आगे बढ़ रहा देश
धौरहरा के हरिहरपुरा के रहने वाले अजीमुल्ला अंसारी (82) ने बताया कि 1950 और 2021 के भारत में बहुत अंतर है। जैसा अब दिखाई दे रहा है स्थितियां वैसी नहीं थीं। भारत विकास की राह पर निरंतर बढ़ रहा है। दुनिया में भारत के विकास का डंका बज रहा है। गणतंत्र दिवस पर सुबह से ही प्रभातफेरियां निकालने का दौर शुरू हो जाता था। उत्सव का माहौल घर से लेकर गांव और गलियों तक नजर आता था। बच्चों में मिठाई लेने की होड़ मची रहती थी।