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पुराने पन्ने: गंभीरता से चुनाव न लड़ने वालों को रोकना चाहता था चुनाव आयोग, तैयार थी योजना...पर लागू न हो सकी
अशोक सिंह, आगरा
Published by: धीरेन्द्र सिंह
Updated Sun, 24 Mar 2024 11:58 AM IST
सार
ये बात है 15 अक्तूबर, 1965 की चुनाव सुधारों के लिए चुनाव आयोग ने ऐसे उम्मीदवारों पर सख्ती करने का मन बनाया था, जो चुनाव में सिर्फ नाम गिनाने के लिए खड़े हो जाते हैं लेकिन गंभीरता से चुनाव लड़ते नहीं थे। इसके पीछे की सोच ये थी कि इनके चुनाव लड़ने से आयोग का महज खर्च बढ़ता है।
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- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
एक समय चुनाव आयोग की योजना निर्दलीय प्रत्याशियों पर प्रतिबंध लगाने की थी। आयोग और प्रशासन के लिए सिर दर्द माने जाने वाले निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव न लड़ सकें, इसके लिए चुनाव आयोग ने विचार-विमर्श किया था। आयोग का मानना था कि निर्दलीय प्रत्याशियों से चुनाव में व्यवधान आता है।
अमर उजाला के 15 अक्तूबर, 1965 के अंक में इसे लेकर समाचार प्रकाशित हुआ था। समाचार के अनुसार, तत्कालीन चुनाव आयुक्त सुंदरम ने लखनऊ में यह जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि निर्दलीय प्रत्याशियों पर रोक की योजना चुनाव आयोग में विचाराधीन है। निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। कुछ तो केवल वोट काटने के लिए ही खड़े होते हैं। सुदंरम का कहना था कि कुछ निर्दलीय सदस्यों का लोकतंत्र में चुने जाने का कोई लाभ नहीं है। चुनाव में किसी एक दल को बहुमत न मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशियों की खरीद-फरोख्त की आशंका रहती है।
बड़ी संख्या में थे निर्दलीय उम्मीदवार
1967 के आम चुनाव में यूपी में बड़ी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में थे। अमर उजाला के 22 जनवरी, 1967 के अंक में प्रकाशित समाचार के अनुसार लोकसभा के लिए 157 और विधानसभा के लिए 1296 नामांकन पत्र दाखिल हुए थे। यह संख्या 1962 के चुनाव की अपेक्षा काफी अधिक थी।
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अमर उजाला के 15 अक्तूबर, 1965 के अंक में इसे लेकर समाचार प्रकाशित हुआ था। समाचार के अनुसार, तत्कालीन चुनाव आयुक्त सुंदरम ने लखनऊ में यह जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि निर्दलीय प्रत्याशियों पर रोक की योजना चुनाव आयोग में विचाराधीन है। निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। कुछ तो केवल वोट काटने के लिए ही खड़े होते हैं। सुदंरम का कहना था कि कुछ निर्दलीय सदस्यों का लोकतंत्र में चुने जाने का कोई लाभ नहीं है। चुनाव में किसी एक दल को बहुमत न मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशियों की खरीद-फरोख्त की आशंका रहती है।
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बड़ी संख्या में थे निर्दलीय उम्मीदवार
1967 के आम चुनाव में यूपी में बड़ी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में थे। अमर उजाला के 22 जनवरी, 1967 के अंक में प्रकाशित समाचार के अनुसार लोकसभा के लिए 157 और विधानसभा के लिए 1296 नामांकन पत्र दाखिल हुए थे। यह संख्या 1962 के चुनाव की अपेक्षा काफी अधिक थी।