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परेशानी: आगरा आरटीओ दफ्तर में नहीं बन रहे नाबालिग के लाइसेंस, ये है मुख्य कारण
अमर उजाला ब्यूरो, आगरा
Published by: Abhishek Saxena
Updated Mon, 13 Dec 2021 10:42 AM IST
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सार
परिवहन मुख्यालय के सितंबर में आए आदेश से पहले आरटीओ में माइनर लाइसेंस रोजाना दो से तीन तक बनाए जा रहे थे। प्राविधिक निरीक्षक ने बताया कि पहले अभिभावक दोपहिया सौ सीसी की गाड़ी से ही टेस्ट दिला देते थे।

ड्राइविंग लाइसेंस (फाइल फोटो)
- फोटो : amar ujala
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विस्तार
तीन महीने से आगरा में नाबालिग (नॉन गियर गाड़ी चलाने का ड्राइविंग लाइसेंस) का ड्राइविंग लाइसेंस बनाना बंद कर दिया गया है। परिवहन विभाग के आदेश के बाद ऐसा हुआ। सिंतबर में आए इस आदेश में कहा गया था कि इस तरह के लाइसेंस के लिए 50 सीसी से कम क्षमता के दोपहिया से टेस्ट लिया जाए। इस वर्ग में कोई गाड़ी बाजार में उपलब्ध नहीं है। मंडलभर में यह समस्या है।

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बाजार में कम इंजन क्षमता की गाडियां नहीं
नॉन गियर गाड़ी चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने का आवेदन करने वालों में छात्र-छात्राओं की संख्या अधिक रहती है। परिवहन मुख्यालय के आदेश के मुताबिक 16 से 18 साल के बीच के किशोर-किशोरियों को कार्यालय में अपनी 50 सीसी से कम इंजन क्षमता वाली गाड़ी से टेस्ट देना होगा। यह गाड़ी परिवार के किसी सदस्य के नाम से पंजीकृत होनी चाहिए। जब अभिभावक अपने नाबालिग बच्चों के ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए पहुंचते हैं तो उन्हें दोनों शर्त पूरी करने के लिए कहा जाता है। 50 सीसी से कम इंजन क्षमता की गाड़ियां अब मार्केट में नहीं हैं। लाइसेंस नहीं बन पाते।
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आरटीओ
- फोटो : अमर उजाला
गाड़ियां बाजार में नहीं आ रही हैं
परिवहन मुख्यालय से आए आदेश के बाद आरटीओ में नाबालिग छात्र-छात्राओं के लाइसेंस नहीं बन पा रहे हैं। इसमें आवेदक को अपनी गाड़ी लाकर ही टेस्ट देना है। बाजार में 50 सीसी से कम क्षमता वाली गाड़ी ही उपलब्ध नहीं है। पहले कभी लूना, टीवीएस जैसी गाड़ियां आती थीं। -अनिल कुमार सिंह, एआरटीओ (प्रशासन)
नया आदेश आने तक लाइसेंस बंद
तकनीकी रूप से परिवहन एक्ट-1988 के तहत पंजीकृत गाड़ियों से ही नाबालिग आवेदकों का टेस्ट लिया जाना है। इस तरह की गाड़ियां ही नहीं हैं। ऐसे में नाबालिग लाइसेंस बनना बंद हो गए हैं। जब तक कोई नया आदेश नहीं आता, यह नहीं बन सकेंगे। -उमेश कटियार, प्राविधिक निरीक्षक, आरटीओ
रोजाना बनते थे तीन तक लाइसेंस
परिवहन मुख्यालय के सितंबर में आए आदेश से पहले आरटीओ में माइनर लाइसेंस रोजाना दो से तीन तक बनाए जा रहे थे। प्राविधिक निरीक्षक ने बताया कि पहले अभिभावक दोपहिया सौ सीसी की गाड़ी से ही टेस्ट दिला देते थे।
साढ़े आठ साल में बने 7,339 डीएल
आरटीओ के रिकॉर्ड के मुताबिक जनवरी, 2013 से जुलाई, 2021 तक जिले में बिना गियर की गाड़ी चलाने के लाइसेंस 7,339 बनाए गए। प्राविधिक निरीक्षक ने बताया कि इस तरह के लाइसेंस लेने वालों में 95 फीसदी छात्र-छात्राएं हैं। पांच फीसदी बुजुर्गों ने भी यह लाइसेंस बनवाए हैं।
बेटे के लिए लाइसेंस बनवाना है
बेटे के लिए माइनर लाइसेंस बनवाने पहुंचा तो नॉन गियर की गाड़ी लाने की शर्त बताई गई। लाइसेंस नहीं बनवा पा रहे हैं। दलील ये है कि परिवहन एक्ट के तहत यह व्यवस्था है। अगर खामी है तो बदलाव होना चाहिए। -दीपक खंडेलवाल, बेलनगंज
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परिवहन मुख्यालय से आए आदेश के बाद आरटीओ में नाबालिग छात्र-छात्राओं के लाइसेंस नहीं बन पा रहे हैं। इसमें आवेदक को अपनी गाड़ी लाकर ही टेस्ट देना है। बाजार में 50 सीसी से कम क्षमता वाली गाड़ी ही उपलब्ध नहीं है। पहले कभी लूना, टीवीएस जैसी गाड़ियां आती थीं। -अनिल कुमार सिंह, एआरटीओ (प्रशासन)
नया आदेश आने तक लाइसेंस बंद
तकनीकी रूप से परिवहन एक्ट-1988 के तहत पंजीकृत गाड़ियों से ही नाबालिग आवेदकों का टेस्ट लिया जाना है। इस तरह की गाड़ियां ही नहीं हैं। ऐसे में नाबालिग लाइसेंस बनना बंद हो गए हैं। जब तक कोई नया आदेश नहीं आता, यह नहीं बन सकेंगे। -उमेश कटियार, प्राविधिक निरीक्षक, आरटीओ
रोजाना बनते थे तीन तक लाइसेंस
परिवहन मुख्यालय के सितंबर में आए आदेश से पहले आरटीओ में माइनर लाइसेंस रोजाना दो से तीन तक बनाए जा रहे थे। प्राविधिक निरीक्षक ने बताया कि पहले अभिभावक दोपहिया सौ सीसी की गाड़ी से ही टेस्ट दिला देते थे।
साढ़े आठ साल में बने 7,339 डीएल
आरटीओ के रिकॉर्ड के मुताबिक जनवरी, 2013 से जुलाई, 2021 तक जिले में बिना गियर की गाड़ी चलाने के लाइसेंस 7,339 बनाए गए। प्राविधिक निरीक्षक ने बताया कि इस तरह के लाइसेंस लेने वालों में 95 फीसदी छात्र-छात्राएं हैं। पांच फीसदी बुजुर्गों ने भी यह लाइसेंस बनवाए हैं।
बेटे के लिए लाइसेंस बनवाना है
बेटे के लिए माइनर लाइसेंस बनवाने पहुंचा तो नॉन गियर की गाड़ी लाने की शर्त बताई गई। लाइसेंस नहीं बनवा पा रहे हैं। दलील ये है कि परिवहन एक्ट के तहत यह व्यवस्था है। अगर खामी है तो बदलाव होना चाहिए। -दीपक खंडेलवाल, बेलनगंज
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