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बैंड-बाजा न बराती, 17 मिनट में हो गई शादी
बैंड-बाजा न बराती, 17 मिनट में हो गई शादी
Updated Tue, 15 Nov 2016 12:57 AM IST
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बैंड-बाजा न बराती, 17 मिनट में हो गई शादी
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो
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आगरा के शास्त्रीपुरम के किशन और धनौली के नगला लेखराज की सुधा ने कबीरपंथी परंपरा की सादगी से शादी कर युवा पीढ़ी के सामने अनूठी मिसाल पेश की है। न बैंड-बाजा बजा। न बरात गई। और न ही दहेज दिया गया। सिर्फ 17 मिनट में शादी हो गई। इसके बाद भंडारा किया गया। इसका 15 हजार खर्च वर-वधू पक्ष ने मिलकर वहन किया।
शास्त्रीपुरम के करनदास का पुत्र किशन प्राइवेट स्कूल में टीचर है। उसकी शादी नगला लेखराज गांव के भीकमदास की बेटी सुधा से तय हुई थी। उसी वक्त तय कर लिया गया था कि रस्म ओ रिवाज कबीरपंथी परंपरा से होंगे। न ढोल नगाड़ा होगा और न ही धूम धड़ाका।
रविवार को किशन बगैर बरात के अपने परिवार के साथ सुधा से शादी करने पहुंचा। घुड़चढ़ी और चढ़त जैसी कोई रस्म नहीं हुई। उधर दुल्हन को हल्दी लगाने जैसी रस्म भी नहीं की गई। न ही दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लिए।
दोनों आमने-सामने बैठ गए। 17 मिनट कबीरवाणी का पाठ (रमैणी) किया गया। इसके तुरंत बाद किशन ने सुधा की मांग में सिंदूर भर दिया और दोनों एक -दूजे के हो गए। कबीरपंथ के संत जितेंद्र दास और करन दास मौजूद रहे। किशन के भाई रविंद्र दास ने बताया कि कबीरपंथ में सादगी से शादी की यह व्यवस्था है लेकिन लोग इसे भूल चुके थे। उनके परिवार में भी इसका पालन नहीं हो रहा था। कबीरपंथी परंपरा के संत रामपाल की प्रेरणा से आगरा में इसकी फिर से शुरुआत हुई है। किशन और सुधा की शादी में मौजूद सभी लोगों ने संकल्प लिया है कि भविष्य में उनके परिवार में इसी परंपरा से शादी की जाएगी।
शास्त्रीपुरम के करनदास का पुत्र किशन प्राइवेट स्कूल में टीचर है। उसकी शादी नगला लेखराज गांव के भीकमदास की बेटी सुधा से तय हुई थी। उसी वक्त तय कर लिया गया था कि रस्म ओ रिवाज कबीरपंथी परंपरा से होंगे। न ढोल नगाड़ा होगा और न ही धूम धड़ाका।
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रविवार को किशन बगैर बरात के अपने परिवार के साथ सुधा से शादी करने पहुंचा। घुड़चढ़ी और चढ़त जैसी कोई रस्म नहीं हुई। उधर दुल्हन को हल्दी लगाने जैसी रस्म भी नहीं की गई। न ही दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लिए।
दोनों आमने-सामने बैठ गए। 17 मिनट कबीरवाणी का पाठ (रमैणी) किया गया। इसके तुरंत बाद किशन ने सुधा की मांग में सिंदूर भर दिया और दोनों एक -दूजे के हो गए। कबीरपंथ के संत जितेंद्र दास और करन दास मौजूद रहे। किशन के भाई रविंद्र दास ने बताया कि कबीरपंथ में सादगी से शादी की यह व्यवस्था है लेकिन लोग इसे भूल चुके थे। उनके परिवार में भी इसका पालन नहीं हो रहा था। कबीरपंथी परंपरा के संत रामपाल की प्रेरणा से आगरा में इसकी फिर से शुरुआत हुई है। किशन और सुधा की शादी में मौजूद सभी लोगों ने संकल्प लिया है कि भविष्य में उनके परिवार में इसी परंपरा से शादी की जाएगी।