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Health: गंभीर बीमारियों में बेअसर हो रही हैं ये 25 एंटीबायोटिक दवाएं, चिकित्सकों ने बताई हैरान करने वाली वजह
अमर उजाला न्यूज नेटवर्क, आगरा
Published by: आगरा ब्यूरो
Updated Tue, 25 Nov 2025 01:05 PM IST
सार
जुकाम-खांसी और गले में खराश होने पर झट से एंटीबायोटिक दवा खाना, बीमारी में दवा का असर जल्द हो इसके लिए डॉक्टरों की ओर से अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक देना एक नए खतरे को जन्म दे रहा है।
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एसएन मेडिकल कॉलेज में आयोजित सेमिनार का शुभारंभ करते प्राचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता और डॉ. अंकुर
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विस्तार
आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी और फार्माकोलॉजी विभाग की ओर से एंटीबायोटिक सप्ताह के समापन पर आयोजित सेमिनार में विशेषज्ञों ने एंटीबायोटिक के रेजिस्टेंट (बैक्टीरिया को मारने में अक्षम) और दुष्प्रभाव पर चिंता जताई। डॉक्टरों ने बताया कि करीब 25 एंटीबायोटिक दवाएं गंभीर बीमारियों में बेअसर हो रही हैं। इससे गंभीर रोगों का इलाज मुश्किल हो रहा है।
माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अंकुर गोयल ने बताया कि जिले के अधिकांश चिकित्सक विभिन्न रोगों में करीब 35 एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग कर रहे हैं। इनमें से मर्ज ठीक नहीं होने या फिर देर से प्रभावी होने पर माइक्रोबायोलॉजी विभाग में कल्चर की जांच कराई गई। इसमें करीब 25 एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर या 10-20 फीसदी ही प्रभावी मिलीं। इनमें टायफायड, निमोनिया, पेशाब में संक्रमण समेत कई अन्य संक्रमण में उपयोग की जाने वाली एंटीबायोटिक हैं।
माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. विकास गुप्ता ने बताया कि बिना कल्चर की जांच कराए ही एंटीबायोटिक दवाएं मरीजाें को दी जा रही हैं। नई एंटीबायोटिक दवाओं पर शोध नहीं हो रहे हैं और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट होने के कारण ये सीमित होती जा रही हैं। ये दवाएं बेअसर होने से आईसीयू के मरीजों को बचाना और मुश्किल हो जाएगा।
प्राचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता ने सेमिनार का उद्घाटन किया। फार्माकोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. अल्का यादव, बायोकेमिस्ट्री विभागाध्यक्ष डॉ. कामना सिंह, ईएनटी रोग के डॉ. अखिल प्रताप सिंह, डाॅ. दिव्या श्रीवास्तव, डॉ. गीतू सिंह, डॉ. सपना गोयल, डॉ. प्रज्ञा शाक्य, डॉ. गौरव, डॉ. पारुल गर्ग ने भी व्याख्यान दिए।
अस्पतालों में संक्रमण से भी बढ़ा एंटीबायोटिक का उपयोग
माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. आरती अग्रवाल ने कहा कि अस्पतालों में संक्रमण बढ़ने से भी एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बढ़ा है। ऐसे में ऑपरेशन थिएटर, आईसीयू और वार्ड में तय दूरी पर बेड हों, कर्मचारी ग्लव्स पहनें और मास्क लगाकर रहें। दूसरे मरीज के इलाज से पहले हाथों को साफ रखें। ग्लव्स बदलें और अन्य सावधानियां बरतें।
एंटीबायोटिक की ओवरडोज से भी परेशानी:
एंटीबायोटिक की ओवरडोज से पेट की बीमारियां बढ़ रही हैं। इससे पेट के अच्छे बैक्टीरिया भी नष्ट हो रहे हैं। इससे दस्त, पेट में दर्द की परेशानी हो रही है। एलर्जी की दिक्कत बनने से शरीर पर चकत्ते भी हो रहे हैं। बार-बार और लंबे समय तक दवाओं के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। मुंह और गुप्तांग में फंगल इंफेक्शन का भी खतरा रहता है।
इन बातों का रखें ध्यान
- जुकाम-खांसी समेत किसी परेशानी में खुद एंटीबायोटिक दवा न लें।
- डाॅक्टर गंभीर मरीजों को एंटीबायोटिक देने से पहले कल्चर जांच कराएं।
- बैक्टीरियल संक्रमण होने पर मरीज को पहले फर्स्ट लाइन की एंटीबायोटिक दें।
- मरीजों को लंबे समय तक एंटीबायोटिक दवाएं न दें, तय कोर्स तक ही दें।
- मर्ज पर जल्दी असर के फेर में झोलाछाप से इलाज कतई न कराएं।
- आईसीयू, ओटी और वार्ड में एंटी बैक्टीरियल सिस्टम डेवलप करें।
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माइक्रोबायोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अंकुर गोयल ने बताया कि जिले के अधिकांश चिकित्सक विभिन्न रोगों में करीब 35 एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग कर रहे हैं। इनमें से मर्ज ठीक नहीं होने या फिर देर से प्रभावी होने पर माइक्रोबायोलॉजी विभाग में कल्चर की जांच कराई गई। इसमें करीब 25 एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर या 10-20 फीसदी ही प्रभावी मिलीं। इनमें टायफायड, निमोनिया, पेशाब में संक्रमण समेत कई अन्य संक्रमण में उपयोग की जाने वाली एंटीबायोटिक हैं।
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माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. विकास गुप्ता ने बताया कि बिना कल्चर की जांच कराए ही एंटीबायोटिक दवाएं मरीजाें को दी जा रही हैं। नई एंटीबायोटिक दवाओं पर शोध नहीं हो रहे हैं और एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट होने के कारण ये सीमित होती जा रही हैं। ये दवाएं बेअसर होने से आईसीयू के मरीजों को बचाना और मुश्किल हो जाएगा।
प्राचार्य डॉ. प्रशांत गुप्ता ने सेमिनार का उद्घाटन किया। फार्माकोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. अल्का यादव, बायोकेमिस्ट्री विभागाध्यक्ष डॉ. कामना सिंह, ईएनटी रोग के डॉ. अखिल प्रताप सिंह, डाॅ. दिव्या श्रीवास्तव, डॉ. गीतू सिंह, डॉ. सपना गोयल, डॉ. प्रज्ञा शाक्य, डॉ. गौरव, डॉ. पारुल गर्ग ने भी व्याख्यान दिए।
अस्पतालों में संक्रमण से भी बढ़ा एंटीबायोटिक का उपयोग
माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. आरती अग्रवाल ने कहा कि अस्पतालों में संक्रमण बढ़ने से भी एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बढ़ा है। ऐसे में ऑपरेशन थिएटर, आईसीयू और वार्ड में तय दूरी पर बेड हों, कर्मचारी ग्लव्स पहनें और मास्क लगाकर रहें। दूसरे मरीज के इलाज से पहले हाथों को साफ रखें। ग्लव्स बदलें और अन्य सावधानियां बरतें।
एंटीबायोटिक की ओवरडोज से भी परेशानी:
एंटीबायोटिक की ओवरडोज से पेट की बीमारियां बढ़ रही हैं। इससे पेट के अच्छे बैक्टीरिया भी नष्ट हो रहे हैं। इससे दस्त, पेट में दर्द की परेशानी हो रही है। एलर्जी की दिक्कत बनने से शरीर पर चकत्ते भी हो रहे हैं। बार-बार और लंबे समय तक दवाओं के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। मुंह और गुप्तांग में फंगल इंफेक्शन का भी खतरा रहता है।
इन बातों का रखें ध्यान
- जुकाम-खांसी समेत किसी परेशानी में खुद एंटीबायोटिक दवा न लें।
- डाॅक्टर गंभीर मरीजों को एंटीबायोटिक देने से पहले कल्चर जांच कराएं।
- बैक्टीरियल संक्रमण होने पर मरीज को पहले फर्स्ट लाइन की एंटीबायोटिक दें।
- मरीजों को लंबे समय तक एंटीबायोटिक दवाएं न दें, तय कोर्स तक ही दें।
- मर्ज पर जल्दी असर के फेर में झोलाछाप से इलाज कतई न कराएं।
- आईसीयू, ओटी और वार्ड में एंटी बैक्टीरियल सिस्टम डेवलप करें।