{"_id":"63c13d4aaf3493352d343ca3","slug":"kashmiri-poet-rahman-rahi-no-more-condolences-expressed-in-amu-2023-01-13","type":"story","status":"publish","title_hn":"AMU: नहीं रहे कश्मीरी कवि रहमान राही, अमुवि में शोक संवेदना व्यक्त","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
AMU: नहीं रहे कश्मीरी कवि रहमान राही, अमुवि में शोक संवेदना व्यक्त
अमर उजाला नेटवर्क, अलीगढ़
Published by: चमन शर्मा
Updated Fri, 13 Jan 2023 04:45 PM IST
विज्ञापन
सार
साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कश्मीरी कवि और लेखक, पद्मश्री प्रोफेसर रहमान राही के निधन पर एएमयू में शोक व्यक्त किया। वह एक आदर्श शिक्षक, एक महान कवि, आलोचक और कश्मीरी साहित्य के अद्वितीय व्याख्याकार थे।

ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कश्मीरी कवि और लेखक, पद्मश्री प्रोफेसर रहमान राही
- फोटो : साेशल मीडिया
विज्ञापन
विस्तार
ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कश्मीरी कवि और लेखक, पद्मश्री प्रोफेसर रहमान राही अब नहीं रहे। 9 जनवरी को उनका इंतकाल हो गया। एएमयू में प्रो रहमान राही के निधन पर शोक व्यक्त किया गया।

Trending Videos
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के शिक्षकों और छात्रों ने साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कश्मीरी कवि और लेखक, पद्मश्री प्रोफेसर रहमान राही के निधन पर शोक व्यक्त किया। एएमयू के वाइस चांसलर प्रो तारिक मंसूर ने कहा कि प्रो राही एक महान साहित्यकार थे, जिन्होंने अपना जीवन कश्मीरी भाषा और साहित्य के नए क्षेत्रों की खोज में समर्पित कर दिया था। एएमयू समुदाय उनके परिवार और दोस्तों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता है।
विज्ञापन
विज्ञापन

विभागाध्यक्ष प्रो. मुश्ताक अहमद ज़रगर ने कहा कि प्रोफेसर राही, अपने छात्रों और सहयोगियों में व्यापक रूप से लोकप्रिय थे। वह एक आदर्श शिक्षक, एक महान कवि, आलोचक और कश्मीरी साहित्य के अद्वितीय व्याख्याकार थे। उन्होंने कश्मीरी भाषा और साहित्य में बहुत बड़ा योगदान दिया। वह हमेशा नए विचारों के प्रति ग्रहणशील थे। वह अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन सभी के लिए उनकी ईमानदारी और करुणा को हमेशा याद किया जाएगा। शोक सभा में विभाग के शिक्षक, रिसर्च स्कॉलर और छात्र-छात्राऐं शामिल हुए।
कवि रहमान राही के बारे में
रहमान राही का जन्म 6 मई, 1925 को श्रीनगर में हुआ, वह 1948 में लोकनिर्माण विभाग में लिपिक बने। 1964 से उन्होंने कश्मीर यूनिवर्सिटी के फ़ारसी विभाग प्राध्यापक के रूप में अध्यापन किया. 2002 में भारत सरकार की ओर से उन्हें पद्मश्री और 2004 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। डाक्टर फाउस्टस और बाबा फ़रीद इत्यादि अनेक कृतियों का उन्होंने अंग्रेजी से कश्मीरी में अनुवाद किया.