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Aligarh News: हरदुआगंज में जन्मे नाथूराम और जैनेंद्र, हिन्दी साहित्य के हीरा हुए साबित

इकराम वारिस Published by: चमन शर्मा Updated Mon, 23 Jan 2023 01:16 AM IST
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सार

कल्याण-रामघाट मार्ग पर अपर गंग नहर के पास महाकवि पंडित नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ की जन्मभूमि हरदुआगंज रही। कौड़ियागंज में 2 जनवरी 1905 को जन्मे जैनेंद्र कुमार का क्षेत्र में साहित्य के कहानी में अहम भूमिका है।

Nathuram and Jainendra born in Harduaganj Aligarh
नाथूराम शर्मा शंकर - फोटो : फाइल फोटो
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विस्तार
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महाकवि नाथूराम शर्मा शंकर ने हरदुआगंज की शान बढ़ाई। कल्याण-रामघाट मार्ग पर अपर गंग नहर के पास महाकवि पंडित नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ की जन्मभूमि हरदुआगंज रही। वर्ष 1859 में जन्मे नाथूराम शर्मा का वर्ष 1932 में निधन हुआ था। नाथूराम शर्मा हिंदी, उर्दू, फारसी और संस्कृत के जानकार  थे। उनमें बचपन से ही कविता लिखने का शौक था। उन्होंने रीतिकालीन परंपरा में ‘अनुराग-रतन व ‘शंकर-सरोज’ लिखे हैं। फुटकर कविताओं का संग्रह ‘शंकर-सर्वस्व’ के नाम से 1951 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद वह महाकवि कहलाए। उन्हें ‘भारत-ब्रजेंदु’ व ‘साहित्य-सुधाकर’ की उपाधि दी गई।

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शंकर की कविताएं  
नाथूराम शर्मा शंकर ने कालजयी कविताएं लिखीं। उनकी बानगी पढ़िए ‘आंख से न आंख, लग जाए इसी कारण से,  कौन मान लेगा कीरतुंड की कठोरता में, आनन की ओर चले आवत चकोर मोर, झूम-झूम चखन को चूम-चूम चंचरीक, छबि छाई ऋतुराज की, हिंदी नहीं जाने उसे हिंदी नहीं जानिए, ओमाराधन, ओमर्थज्ञान, विश्वरूप ब्रह्म, कर्त्तार-कीर्तन, जागती ज्योतिए निर्लेप ब्रह्म, परमात्मा का प्यार, हिरण्यगर्भ, प्रभु का रुद्र रूप, सत्य विश्वास, हितकारी नाथ, सत्य सनातन धर्म, अभिलाषा, व्याकुल विलाप, अबोध अधम, अबधि अधम, हताश, विनय,  सद्गुरु-महिमा, सद्गुरु गौरव, गजेंद्र मोक्ष, कर भला होगा भला, नरक निदर्शन, आत्म-शोधन, अर्थाभिमानी आदि।
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जैनेंद्र कुमार जैन
 
जैनेंद्र कुमार बने साहित्य के ‘इंद्र’
साहित्यकार जैनेंद्र कुमार साहित्य में ‘इंद्र’ माने गए। अलीगढ़ जिले के गांव कौड़ियागंज में 2 जनवरी 1905 को जन्मे जैनेंद्र कुमार का क्षेत्र में साहित्य के कहानी में अहम भूमिका है। जैनेंद्र कुमार का प्रेमचंद केबाद के उपन्यासकारों में अहम स्थान है। वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेंद्र कुमार का बचपन का नाम आनंदीलाल था। जन्म के दो वर्ष के बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। माता और मामा ने जैनेंद्र कुमार का पालन-पोषण किया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हस्तिनापुर स्थित गुरुकुल में हुई। वर्ष 1912 में गुरुकुल छोड़ दिया। पंजाब से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। 

जैनेंद्र कुमार की उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हुई। जैनेंद्र कुमार ने माता की सहायता से व्यापार भी किया, लेकिन सफल नहीं हो सके। नागपुर में राजनीतिक पत्रों में संवाददाता के रूप में कार्य किया। इसमें भी उनका मन नहीं रचा-बसा। आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के चलते तीन महीने के लिए जेल गए। नौकरी की तलाश में कलकत्ता (कोलकाता) गए, लेकिन सफलता नहीं मिली। उपन्यास परख, सुनीता,  त्यागपत्र, कल्याणी, सुखदा आदि से जैनेंद्र कुमार साहित्य के क्षेत्र में विशेष पहचान मिली। 24 दिसंबर 1988 को जैनेंद्र कुमार का निधन हो गया।

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