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सिरसा है इस गांव का नाम: सीमा पर तैनात है हर घर से एक जवान, गांव के हर बच्चे को है सेना में जाने का जुनून

राहुल श्रोत्रिय, अमर उजाला, अलीगढ़ Published by: चमन शर्मा Updated Fri, 09 May 2025 10:20 AM IST
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सार

यूपी के अलीगढ़ में एक ऐसा गांव है, जिसे सैनिकों का गांव कहते हैं। यहां हर घर से एक जवान बॉर्डर पर देश सेवा कर रहा है। इस गांव के 250 बेटे सेना में हैं। 300 से अधिक पूर्व सैनिक भी इस गांव में हैं।

Sirsa, a village of soldiers in Aligarh
अपनी पत्नी के साथ श्योदान सिंह मेडल दिखाते हुए - फोटो : संवाद
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अलीगढ़ में छर्रा ब्लॉक के सिरसा गांव की मिट्टी सीमाओं की रखवाली करने वाले सैनिक तैयार करती है। यहां हर घर से कोई न कोई बेटा देश की सेवा में जुटा है। यहां के युवा भारतीय सेना, बीएसएफ, सीआरपीएफ में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस गांव के 250 बेटे सेना में हैं और वर्तमान में देश की अलग-अलग सीमाओं पर तैनात हैं। 300 से अधिक पूर्व सैनिक भी इस गांव में हैं।

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जिले में सर्वाधिक सैन्यकर्मी इसी गांव में हैं। कई पूर्व सैनिक ऐसे भी हैं, जिन्होंने भारत-चीन युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्धों में भाग लिया। पूर्व सैनिकों ने बताया कि शुरू से ही गांव के हर बच्चे में सेना में जाने का जुनून सवार रहता है। उनकी परवरिश भी उसी तरह की जाती है। गांव से हर साल करीब पांच से छह युवा सेना में भर्ती होते हैं। दर्जनों युवा सेना भर्ती की तैयारी में जुटे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि गांव के बेटे पाकिस्तान से युद्ध जैसे हालात के दौरान देश की अलग-अलग सीमाओं और देश के अंदर सुरक्षा के लिए तैनात हैं।

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सन 1957 में हुई इस परंपरा की शुरुआत

गांव के 90 वर्षीय हरपाल सिंह सन 1957 में जाट रेजिमेंट में हवलदार के पद पर भर्ती हुए। इन्होंने भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान से हुए युद्धों में भाग लिया। हरपाल सिंह कहते हैं कि भारत ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले का बदला बहादुरी से लिया गया है। हरपाल सिंह के सेना में जाने के बाद से गांव में इसकी परंपरा शुरू हो गई।

अफ्रीका में कांगो युद्ध लड़ा
87 वर्षीय श्योदान सिंह सन 1960 में जाट रेजिमेंट में सिपाही के पद पर तैनात हुए। इन्होंने भी भारत-चीन युद्ध में बहादुरी से दुश्मन का सामना किया। भारत-पाकिस्तान से हुए युद्ध में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में कांगो युद्ध में शामिल हुए। सेवानिवृत्ति से पूर्व इन्हें सात मेडल देकर सम्मानित भी किया गया था।

अब तीसरी पीढ़ी दे रही सेवाएं
श्योदान सिंह ने बताया कि उनके दो भाई हरी सिंह, शेर सिंह और चार बेटे अशोक कुमार, विनोद कुमार, भूरा सिंह, योगेंद्र सिंह भी सेना में भर्ती हुए। सभी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। अब पौत्र रोहन सिंह, मोहन सिंह, पंकज सिंह, दीपू सिंह सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जो देश की अलग-अलग सीमाओं पर तैनात हैं।

पांच भाइयों ने लड़े युद्ध

सेवानिवृत्त कैप्टन केहरी सिंह ने बताया कि 1961 में वह सेना में भर्ती हुए। बाद में उनके चार भाई सरदार सिंह, रामेंद्र सिंह, सूबेदार मुख्तियार सिंह और शौली सिंह भी सेना से जुड़ गए। पांचों भाइयों ने भारत-पाकिस्तान से हुए युद्धों में भाग लिया। वर्तमान में उनका पौत्र और एक भतीजा सेना में हैं। पौत्र ऋषि चौधरी की जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में तैनाती है।

ओमवीर ने लड़ा कारगिल युद्ध
नायब सूबेदार पद से सेवानिवृत्त ओमवीर सिंह वर्ष 1998 में जाट रेजिमेंट में लगे। इन्होंने कारगिल युद्ध में भाग लिया था। उनके पिता स्व. नन्नू सिंह हवलदार के पद से 1982 में सेवानिवृत्त हुए थे। नन्नू सिंह ने भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया था। ओमवीर सिंह ने कहा कि अगर बुलावा आया तो वह पाकिस्तान से जंग लड़ने के लिए जरूर जाएंगे।

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