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हाईकोर्ट : स्वर्ण जयंती ग्राम स्वराज योजना घोटाले की आपराधिक कार्यवाही पर रोक से हाईकोर्ट का इन्कार

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Fri, 18 Aug 2023 11:43 AM IST
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सार

हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने तीनों याचियों की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। यह मामला वर्ष 2006 में उस वक्त सुर्खियों में तब आया था।

High Court refuses to stay the criminal proceedings of Swarna Jayanti Gram Swaraj Yojana scam
इलाहाबाद हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो दशक पहले कौशाम्बी में स्वर्ण जयंती ग्राम स्वराज योजना में हुए 21.85 लाख रुपये के घोटाले के आरोपी परियोजना निदेशक राजेंद्र प्रसाद यादव, लेखाधिकारी विजय कुमार मिश्रा और उर्दू अनुवादक सैयद सईद मुस्तफा के विरुद्ध चल रही आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। हालांकि, कोर्ट ने तीनों आरोपियों की अग्रिम जमानत मंजूर कर ली है। हाईकोर्ट मामले में आरोपी सीडीओ (आईएएस) अरविंद सिंह की याचिका भी 2021 में खारिज कर चुका है।

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हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने तीनों याचियों की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। यह मामला वर्ष 2006 में उस वक्त सुर्खियों में तब आया था, जब कौशाम्बी जिले के थाना मंझनपुर में तत्कालीन सीडीओ अरविंद सिंह, परियोजना अधिकारी राजेंद्र प्रसाद यादव, लेखाधिकारी विजय कुमार मिश्रा, उर्दू अनुवादक सैयद सईद मुस्तफा और उप्र उपभोक्ता सहकारी संघ के प्रबंधक अरविंद कुमार के विरुद्ध हेराफेरी, गबन और भ्रष्टाचार की एफआईआर दर्ज हुई।

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आरोप लगा कि स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के अंतर्गत वर्ष 2003-2004 में बिना टेंडर निकाले ही किताबों के प्रकाशन और उनकी सामग्रियों की खरीद कर ली गई। 21.85 लाख रुपये सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया। 14 साल तक चली जांच के बाद आईएएस अरविंद सिंह समेत पांचों आरोपियों के खिलाफ वर्ष 2020 में आरोप पत्र दाखिल हुआ। इसका संज्ञान लेते हुए कौशाम्बी की भ्रष्टाचार निरोधी विशेष अदालत ने 2021 में सभी आरोपियों के विरुद्ध तलबी आदेश जारी किया था।

इस आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देते हुए याचीगण ने अग्रिम जमानत अर्जी हाईकोर्ट में दाखिल की थी। परियोजना निदेशक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वीपी श्रीवास्तव ने दलील दी कि याची ने किताबों का प्रकाशन और छपाई सामग्री की खरीद शासनादेश के अनुरूप की थी। विभागीय जांच में मात्र 21 लाख 85 हजार की अनियमितता पाई गई थी। आरोप सिर्फ छपाई और खरीद बिना टेंडर के होने का लगा। विभागीय जांच के दौरान ही आपराधिक कार्यवाही शुरू कर दी गई, जो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

उर्दू अनुवाद के अधिवक्ता ने दलील दी कि याची को नाजिर का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया था। वह मात्र नोट शीट बनाता था। उसे खरीद के लिए अधिकृत नहीं किया गया था। कोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। हालांकि, तीनों के प्रार्थना पत्र पर सशर्त अग्रिम जमानत मंजूर कर ली।

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