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High Court : ईसाई धर्म अपनाने के बाद भी आरक्षण का लाभ लेने के लिए हिंदू बने रहना संविधान के साथ धोखाधड़ी

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Wed, 03 Dec 2025 01:27 PM IST
सार

Allahabad High Court : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन जाता है तो वह अपनी मूल जाति का दर्जा खो देता है। ऐसे में उसे एससी/एसटी का लाभ लेने का अधिकार नहीं रह जाता।

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High Court : Remaining a Hindu after converting to Christianity to get caste-based reservation
इलाहाबाद हाईकोर्ट। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन जाता है तो वह अपनी मूल जाति का दर्जा खो देता है। ऐसे में उसे एससी/एसटी का लाभ लेने का अधिकार नहीं रह जाता। ऐसा करना संविधान के साथ धोखाधड़ी है। इस टिप्पणी संग कोर्ट ने मुख्य सचिव (यूपी सरकार), अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव/अपर मुख्य सचिव, समाज कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव व यूपी के सभी डीएम को आदेश दिया कि वे चार महीने में ऐसे मामलों को रोकने के लिए कानून के अनुरूप कार्रवाई करें। वहीं, भारत सरकार के कैबिनेट सचिव को आदेश भेजने का निर्देश दिया है।

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यह आदेश देते हुए न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की पीठ ने जितेंद्र साहनी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में दर्ज मुकदमे की कार्यवाही को रद्द करने की मांग खारिज कर कहा कि ट्रायल कोर्ट ही साक्ष्यों की जांच करेगा। महाराजगंज के सिंदुरिया थाने के जितेंद्र के खिलाफ विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ाने व धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में मुकदमा किया गया। साहनी ने अपनी जमीन पर यीशु मसीह के उपदेशों पर आधारित प्रार्थना सभाएं आयोजित करने की अनुमति मांगी थी, जिसे सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट ने तीन अप्रैल 2023 को मंजूरी दी।

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पहले थे हिंदू, अब बन गया पादरी

स्थानीय हिंदू समुदाय के विरोध के बाद यह अनुमति तीन मई 2023 को वापस ले ली गई। सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के 10 दिसंबर 2023 के आदेश में कहा गया कि साहनी ने चौराहे पर पंडाल लगाकर बड़ी संख्या में लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए उकसाया, जिससे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी। इस पर पुलिस की ओर से दर्ज कराए गए मुकदमे की कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए साहनी ने हाईकोर्ट में अर्जी दायर की थी।

सरकारी वकील ने दलील दी कि याची पहले हिंदू था पर अब पादरी बन गया है। गवाह लक्ष्मण विश्वकर्मा ने बयान में आरोप लगाया था कि आवेदक हिंदू देवी-देवताओं के बारे में अपमानजनक भाषा का प्रयोग करता था, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। वहीं, याची के अधिवक्ता ने इन दलीलों को विरोध किया। कोर्ट ने मुकदमा रद्द करने की अर्जी खारिज कर दी।

याची ने स्वयं को बताया हिंदू
 

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याची ने हलफनामे में स्वयं को हिंदू बताया था। इस विरोधाभास को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश-1950 के अनुसार हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।
 

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के सी.सेल्वरानी बनाम विशेष सचिव मामले का हवाला दिया, जिसके अनुसार धर्मांतरण के बाद भी आरक्षण व अन्य लाभ प्राप्त करने के लिए जाति-आधारित पहचान का दावा करना संविधान के साथ धोखाधड़ी है। इसके साथ ही महाराजगंज के डीएम को तीन महीने में याची के धर्म की जांच करने और यदि हलफनामे में धोखाधड़ी पाई जाती है तो कानून के अनुसार कड़ी कार्रवाई करने को कहा है।

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